पंजशीर घाटी बन चुकी है एक अभेद्य किला

अरुण नैथानी

अब जब अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो चुका है और देश में अराजकता का दौर है, एक बुलंद आवाज तालिबान के खिलाफ उठी है। राष्ट्रपति अशरफ गनी के पलायन के बाद अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने खुद को अफगानिस्तान का राष्ट्रपति घोषित किया। वे तालिबानी निरंकुशता के खिलाफ भयाक्रांत अफगान जनता की आवाज बने। आज की तारीख में सालेह तालिबान की आंख की किरकिरी बने हुए हैं। दरअसल, सारे अफगानिस्तान में तालिबान के लिये पंजशीर घाटी एक चुनौती बनी हुई है। यह वह वीरों की घाटी है जो कभी भी न तो सोवियत सेनाओं और न ही तालिबान के कब्जे में आयी है। हाल ही में तालिबान लड़ाकों को इस पर कब्जे की कोशिश में भारी क्षति उठानी पड़ी, फिलहाल एक दूसरे पर हमला न करने का दोनों पक्षों में समझौता हुआ है। दरअसल, तालिबान अफगानिस्तान में पैर जमाने की कोशिश में है।

अच्छी बात यह है कि अमरुल्लाह सालेह भारत के करीबी दोस्त माने जाते हैं और उनके भारतीय गुप्तचर संस्थाओं से बेहतर संबंध रहे हैं। दबंग व मुखर अमरुल्लाह सालेह लगातार पाक पर हमलावर रहे हैं। वे दुनिया को बताते रहे हैं कि अफगानिस्तान की अस्थिरता पाक की वजह से है। यह भी कि तालिबान पाक का पैदा किया हुआ भस्मासुर है। यहां तक कि वे पाक के मुखिया रहे जनरल मुशर्रफ को अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर पटखनी दे चुके हैं। वे लगातार तालिबान की निरंकुश सत्ता के खात्मे का संकल्प जताते रहे हैं। दरअसल, पंजशीर घाटी के वीरों ने हमेशा तालिबानियों को कड़ी चुनौती दी है। यहां की भौगोलिक संरचना ने तालिबान को घुसने की कभी इजाजत ही नहीं दी। हालांकि तालिबान ने कई बार अमरुल्लाह सालेह पर जानलेवा हमले किये। वे तालिबान के खिलाफ ऐलान-ए-जंग कर चुके हैं।

दरअसल, अमरुल्ला सालेह ने पंजशीर के शेर कहे जाने वाले अफगान हीरो कमांडर अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में जंग का हुनर सीखा। किसी समय पाकिस्तान में हथियार चलाने का प्रशिक्षण लेने वाले सालेह आज पाक की पोल-पट्टी खोलते रहते हैं। वे अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति बनने से पहले देश की खुफिया एजेंसी एनडीएस के प्रमुख थे। दरअसल, अमरुल्ला सालेह का संबंध अफगानिस्तान के ताजिक जातीय समूह से है। यही वजह है कि अल्पसंख्यक समुदाय का होने के कारण वे तालिबान के निशाने पर रहे हैं। इस संघर्ष में अमरुल्ला सालेह ने बड़ी कीमत भी चुकायी है। सालेह तक पहुंचने के लिये तालिबानी आतंकियों ने उनकी एक बहन का अपहरण करके यातानाएं दीं, बाद में उसकी मौत हो गई थी। कालांतर में जब देश पर तालिबान ने कब्जा करना शुरू किया तो वे कमांडर अहमद शाह मसूद के नेतृत्व में संघर्ष में कूद गये। जिन्होंने अहमद शाह मसूद से भारत के बेहतर रिश्ते बनाने में मदद की।

दरअसल, अफगानिस्तान में अमेरिकी दखल के बाद जब तालिबान के खिलाफ मुहिम शुरू हुई तो सालेह इस दौरान खुफिया एजेंसियों के प्रभारी थे। कालांतर वे अफगानिस्तान की खुफिया एजेंसी एनडीएस के प्रमुख भी बने। इस दौरान उन्होंने अफगान सरकार व अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं को ठोस खुफिया रिपोर्ट उपलब्ध करायी कि पाकिस्तान किस तरह अफगानिस्तान में आतंकी हमलों व तालिबान को मदद पहुंचाने के काम में जुटा है। कैसे विदेशों से मिलने वाला धन तालिबान को उपलब्ध कराया जा रहा है। कालांतर में यदि हामिद करजई की सरकार के दौरान भारत व अफगानिस्तान के रिश्ते बेहतर हुए तो उसके मूल में सालेह की बड़ी भूमिका रही है। वे पहले ही इस बात की घोषणा कर चुके थे कि अमेरिकी-नाटो सेनाओं के हटते ही तालिबान अफगानिस्तान में हावी हो जायेगा। आज जब अमेरिकी सेना के निकलने के बाद सत्ता पर तालिबान का कब्जा हुआ है तो सालेह के निष्कर्षों के अनुरूप ही है। हालांकि, एक दशक पहले उनकी जमीनी हकीकत की रिपोर्ट के निष्कर्षों को अफगानिस्तान के सत्ताधीश भी स्वीकार नहीं कर रहे थे। यहां तक कि ओसामा बिन लादेन के पाक के आवासीय इलाके में रहने की सूचना अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों को देने वाले सालेह ही थे।

पाकिस्तान के मुखर विरोधी व तालिबान से लगातार लोहा लेने वाले सालेह सत्ता पलट के बाद विरोधियों के निशाने पर थे, लेकिन उनकी पकड़ में आने से पहले ही वे अपने अभेद्य किले पंजशीर घाटी सुरक्षित पहुंच गये। इससे पहले आईएसआई, तालिबानियों व पाक के निशाने पर रहने वाले सालेह पर कई जानलेवा हमले हो चुके हैं। बेहद दबंग माने जाने वाले सालेह कुछ मौकों पर जनरल मुशर्रफ व आईएसआई प्रमुख से भिड़ंत कर चुके हैं, जिससे उनकी बौखलाहट बार-बार सामने आई। आज सालेह अफगानिस्तान के राष्ट्रभक्त नागरिकों से तालिबान के खिलाफ नॉर्दन अलायंस की तर्ज पर मुहिम चलाने का आह्वान कर रहे हैं। वे अमेरिका व नाटो देशों को भी आड़े लेते हुए कह रहे हैं कि अफगानिस्तान वियतनाम नहीं है। बहरहाल, पंजशीर घाटी एक ऐसा अभेद्य किला है कि जहां के भूल-भुलैया का समझने में विफल तालिबानी वहां जाने से कतराते हैं। यह इलाका सालेह को सुरक्षा कवच देता है। यहां तक कि पिछले चालीस सालों में सोवियत सेनाएं, तालिबान व अमेरिकी सेनाएं कभी जमीनी कार्रवाई न कर सकी हैं। सालेह कह रहे हैं वे उन लाखों लोगों की आकांक्षाओं पर खरे उतरेंगे, जिन्होंने उन पर विश्वास जताया है। कहा जा रहा है कि वे अपने कमांडर अहमद शाह मसूद की विरासत संभाल सकते हैं।

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