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इतिहास के पन्नों से

ऐसे बनाया था मदर टेरेसा ने भारत को मूर्ख और फैलाया था अपना मायाजाल

26 अगस्त जन्मदिन पर

भारत में गरीबों और बीमारों की सेवा के नाम पर धर्मांतरण कराने वाली ईसाई एजेंट एग्नेस गोंक्सा बोयाजियू उर्फ मदर टेरेसा के नाम के आगे ‘संत’ जोड़ा जा रहा है। पिछले आधी से ज्यादा सदी से भारत और दुनिया भर में मदर टेरेसा का महिमामंडन होता रहा है। जबकि यह बात लगातार सामने आती रही है कि मदर टेरेसा सेवा जरूर करती थीं, लेकिन इसके बदले में वो गरीबों को बहला-फुसलाकर उनको ईसाई बनाया करती थीं। यही वजह थी कि मशहूर लेखक क्रिस्टोफर हिचेंस ने 2003 में ही मदर टेरेसा को ‘फ्रॉड’ की उपाधि दे दी थी। हम आपको वे बातें बताते हैं जिन्हें जानकर आपको मदर टेरेसा से नफरत हो जाएगी। पहले 3 कारण क्रमशः है –
1. नॉर्थ-ईस्ट की ‘आजादी’ चाहती थीं टेरेसा
नॉर्थ-ईस्ट में अलगाववादी आंदोलनों में मदर टेरेसा की संस्था का बड़ा हाथ माना जाता है। इस इलाके में बरसों से सक्रिय ईसाई संगठनों ने स्थानीय आदिवासियों का धर्म परिवर्तन करवाया। जिसके कारण यहां बसे तमाम समुदायों के बीच टकराव की स्थिति पैदा हुई। आरोप तो यहां तक लगते हैं मदर टेरेसा ने यहां के लोगों में यह भावना भरी कि भारतीय सरकार उन पर अत्याचार कर रही है। आदिवासी के तौर पर इन लोगों को आरक्षण मिला करता था, लेकिन ईसाई बनने के बाद आरक्षण बंद हो गया। मदर टेरेसा ने लोगों को बताया कि जीसस के करीब जाने के कारण भारतीय सरकार उनकी दुश्मन बन गई है।
2. जादू-टोने से गरीबों का इलाज करती थीं
मदर टेरेसा कहा करती थीं कि पीड़ा आपको जीसस के करीब लाती है। वो गरीब-बीमार लोगों के इलाज के लिए चमत्कार और दुआओं का सहारा लिया करती थीं। लेकिन जब खुद बीमार होती थीं तो दुनिया के सबसे महंगे अस्पतालों में इलाज कराने चली जाती थीं। 1991 में बीमार पड़ने पर वो अमेरिका के कैलीफोर्निया में इलाज कराने चली गई थीं, जबकि भारत में भी अच्छी मेडिकल सर्विस उपलब्ध थी। मदर टेरेसा के पास दुनिया भर से करोड़ों रुपये का फंड आता था, लेकिन उन्होंने कोलकाता में कभी एक ढंग का अस्पताल तक नहीं बनवाया। जबकि इतने पैसे में कई अस्पताल बनवाए जा सकते थे।
3. 3. बीमारों की सेवा कम, प्रोपोगेंडा ज्यादा
मदर टेरेसा कहा करती थीं कि वो कलकत्ता की सड़कों और गलियों से बीमार पड़े लोगों को उठाकर अपने सेंटर में लाती हैं। जबकि यह बात पूरी तरह झूठ पाई गई थी। मिशनरीज़ ऑफ चैरिटी में काम कर चुके डॉक्टर अरूप चटर्जी ने अपनी किताब ‘मदर टेरेसा: द फाइनल वरडिक्ट’ में बताया है कि यह दावा गलत था। जब कोई फोन करके बताता था कि फलां जगह कोई बीमार पड़ा है तो ऑफिस से जवाब दिया जाता था कि 102 नंबर पर फोन कर लो।
चटर्जी के मुताबिक संस्था के पास कई एंबुलेंस थीं, लेकिन इनमें ननों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जाता था। मदर टेरेसा हमेशा दावा करती रहीं कि उनकी संस्था कलकत्ता में रोज हजारों गरीबों को खाना खिलाती है। लेकिन यह बात भी समय के साथ फर्जी साबित हो गई थी। दरअसल संस्था के किचन में एक दिन में सिर्फ 300 लोगों का ही खाना बनता था। इतने के लिए ही राशन भी मंगाया जाता था। यह खाना सिर्फ उन लोगों को मिलता था जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया हो।

हिन्दू समाज की मूर्खता

यह सभी जानते है कि मदर टेरेसा सेवा के नाम पर धर्मांतरण का कार्य करती थी और बड़े शातिर तरीके से उन्होंने अपनी मार्केटिंग करी कि जिससे यह लगे की गरीबों की वह सबसे बड़ी हमदर्द है। इसका परिणाम यह निकला की विश्व स्तर पर उनकी बढ़िया छवि बन गई जिससे न केवल अकूत धन की उन पर वर्षा हुई बल्कि नोबेल शांति पुरस्कार से भी मिला। इसका दूरगामी प्रभाव यह हुआ कि हिन्दू समाज उनके धर्मान्तरण के असली उद्देश्य की अनदेखी कर उन्हें संत मानने लग गया।इसी कड़ी में कुछ हिन्दुओं की मूर्खता देखिये उन्होंने इंग्लैंड के वेम्ब्ली में 16 मिलियन पौंड खर्च करके आलीशान मंदिर का निर्माण किया उसमें हिन्दू देवी देवताओं के अतिरिक्त वीर शिवाजी, महाराणा प्रताप या बन्दा बैरागी नहीं अपितु मदर टेरेसा की मूर्ति लगा डाली।

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