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इतिहास के पन्नों से

स्वामी दयानंद और चित्तौड़गढ़

राजपूतों के इस संघ में ऋषि दयानंद को महाराणा प्रताप और दुर्गादास राठोड़ की संतान को देखने का अवसर मिला, कहा वह स्वाधीन शेर?
क्या यह राज्य और इन्द्रियों के बन्धुए? ऋषि दयानंद ने राजपूतने की दशा को रोते हुए ह्रदय से देखा, जो लोग वीरता के आदर्श थे, मान के पुजारी आयर स्वाधीनता के पुतले थे, वे ऋषि दयानंद को विलास के दास, अफीम के पुजारी और अंग्रेज सरकार के बन्धुए दिखाई दिए।

ऋषि दयानंद के शिष्य आत्मानंद ने एक घटना सुनाई।

अपने शिष्यों के साथ ऋषि दयानंद एक दिन चित्तोडगढ़ देखने गये, जिन ऋषि दयानंद की आँखों में पिता, माता और बहिनों का वियोग तरी न ला सका, चित्तोडगढ़ की दशा देखकर उनकी आँखों से झर झर आँसू बहने लगे। ऋषि दयानंद ने एक ठंडी साँस लेकर निम्नलिखित आशय के शब्द कहे- ब्रहमचर्य के नाश होने से भारत वर्ष का नाश हुआ और ब्रहमचर्य का उद्धार करने से ही देश का उद्धार हो सकेगा, आत्मानंद! हम चित्तोड में गुरुकुल बनाना चाहते हैं।

(सन्दर्भ आर्यसमाज का इतिहास प्रथम भाग पृष्ठ १२८)

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