वैदिक संपत्ति अध्याय – संप्रदाय प्रवर्तन ..गीता और उपनिषदों में मिश्रण

 

गतांक से आगे…

गीता के प्रमाणों से ज्ञात हुआ कि, उपनिषदों का सत् – असत् का झगड़ा परमात्मासंबंधी नहीं है, प्रत्युत वह झगड़ा भौतिक है। क्योंकि उपनिषदों में परमात्मा के लिए तो पृथक ही कह दिया गया है कि एक के मत से आदि में केवल आत्मा ही था। इस अकेले आत्मा से सृष्टि माननेवालों के अतिरिक्त उस समय एक दल ऐसा था जो कहता था की असत् अर्थात भौतिक पदार्थों के अभाव में सृष्टि हुई है और दूसरा दल ऐसा भी था जो कहता था कि सत् अर्थात भौतिक पदार्थों के भाव से ही सृष्टि हुई है। क्योंकि बिना भूतों के अग्नि और जल की उत्पत्ति नहीं हो सकती। इस प्रकार के झगड़े यूरोप के वैज्ञानिकों में आजकल भी होते हैं।एक दल कहता है कि मैटर (परमाणुओ) की उत्पत्ति इनर्जी (शक्ति) से ही हुई है, पर दूसरा दल कहता है कि प्रकृति के भौतिक परमाणु भी है। इस विषय में साइंस के प्रसिद्ध विद्वान प्रोफेसर डब्ल्यू.बी. बाॅटली ‘विज्ञान और धर्म’ नामी पुस्तक में कहते हैं कि विज्ञान शक्ति के सिद्धांत तक पहुंचा है, परंतु अनेक विद्वान है, जो मूल प्रकृति को अब तक परमाणुवाली ही मानते हैं।
कहने का मतलब यह है कि यूरोप की भांति उपनिषदों में भी आत्मा, सत् और असत् आदि तीन सिद्धांतों का वर्णन है, जिससे यह सूचित होता है कि उपनिषदों में इन तीनों प्रकार के वर्णन करने वाले तीन संप्रदायों के लोग हैं। तीनों के तीन सिद्धांत लिखे हुए हैं, इसलिए तीनों सिद्धांत एक ही धर्म के नहीं हो सकते।इन तीनों में आर्यों का एक भी सिद्धांत नहीं है। आर्यों का वेदिक सिद्धांता अनिश्चित हो ही नहीं सकता। अतएव ये सिद्धांत मिश्रण से ही उपनिषदों में आये है,इसमें संदेह नहीं।
जिस प्रकार इस सिद्धांत विरोध से प्रक्षेप ज्ञात होता है, उसी तरह उपनिषदों में नवीन बातों के होने से भी मिश्रण पाया जाता है।हमने प्रथम खंड में जहां लोकनायक तिलक महोदय के ज्योतिष संबंधी सिद्धांतो की आलोचना की है, वहाँ ब्राह्मणग्रंथों में आये हुए प्रमाणों से बताया है कि ब्राह्मणों के कुछ भाग बाईस हजार वर्ष के प्राचीन हैं।उपनिषद् भी ब्राह्मण ग्रंथों के ही भाग हैं, परंतु इनके बहुत से स्थल बहुत ही नवीन ज्ञात होते हैं,जिससे प्रमाणित होता है कि, इनमें वे भाग पीछे से मिलाए गये हैं। बृहदारण्यक 2/4/ 10 में लिखा है।
ऋक् ,यजु,साम, अथर्वाडिग्रस, इतिहास, पुराण, उपनिषद् , श्लोक, सूत्र ,व्याख्यान और अनुव्याख्यान आदि सब अपौरूषेय हैं।इस वर्णन में उपनिषद् , श्लोक, सूत्र और व्याख्यान आदि पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इनमें भी सूत्रग्रंथ तो बहुत ही आधुनिक हैं।कोई भी सूत्रग्रंथ, चाहे वह गृह्म हो या स्रोत, दर्शन हो या व्याकरण, ब्राह्मणग्रंथों के पूर्व का नहीं है। उन सूत्रों की व्याख्या तो बहुत ही नवीन है।परंतु ब्राह्मणग्रंथों से संबंध रखने वाले ये उपनिषद् सूत्रों और उनकी व्याख्याओं का वर्णन करते हैं,इससे प्रतीत होता है कि इनका यह भाग बहुत ही नवीन है। कुछ लोग कहते हैं कि वेदों में ही इतिहास, पुराण, श्लोक सूत्र और व्याख्यान आदि सम्मिलित है। परंतु यदि ऐसा होता, तो ऋग्वेदादि कहने से ही सब का समावेश हो जाता, अलग-अलग सबके नाम कहने की आवश्यकता न होती।इसके अतिरिक्त वेदों में न श्लोक है और न सूत्र ही है।ऐसा दशा में उपनिषदों का यह भाग बहुत ही आधुनिक सिद्ध होता है।
क्रमशः

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