यदि वृक्ष के फल चाहिए तो पहले वृक्ष का विकास और उसकी सुरक्षा करनी होगी : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक

“यदि वृक्ष के फल चाहिएँ, तो पहले वृक्ष का विकास एवं उस की सुरक्षा करनी होगी।”


फल कहां लगते हैं? वृक्षों पर। अतः फल प्राप्त करने के लिए पहले वृक्षों की आवश्यकता है। उसके बाद ही फल मिल सकते हैं।
इस बात को यदि दार्शनिक भाषा में कहें, तो ऐसे कहेंगे, कि “कारण के बिना कार्य नहीं होता।” इसी प्रकार से वृक्ष के बिना फल भी नहीं होता। अतः वृक्ष कारण है, और फल उसका कार्य है। “जैसे आटे के बिना रोटी नहीं बनती। वैसे ही वृक्ष के बिना फल भी नहीं मिलते।”
संसार का यह नियम है, कि “यदि कारण सुरक्षित रहे, तो उसके आधार पर आगे कार्य उत्पन्न हो सकता है। जैसे कि यदि आटा सुरक्षित होगा, तभी रोटी बन पाएगी।” यदि आटा ही न हो, अथवा आटे को बिगाड़ दिया जाए, नष्ट कर दिया जाए, तो भी रोटी नहीं बन पाएगी। इसलिए अच्छी रोटी बनाने के लिए पहले आटे की सुरक्षा करना आवश्यक है। इसी प्रकार से फल भी वृक्षों पर आधारित है। यदि वृक्ष होगा और वह विकसित एवं सुरक्षित होगा, तभी उस पर फल लगेंगे।
“मनुष्य जीवन में भी एक वृक्ष है, जिसका नाम है चरित्र। यह बहुत उत्तम वृक्ष है। इसके फल बहुत मीठे होते हैं। इसके फल हैं, धन सम्मान सेवा इत्यादि।” जिस व्यक्ति का चरित्र विकसित एवं सुरक्षित होगा, अर्थात चरित्र उत्तम होगा, तो उसके चरित्र रूपी वृक्ष पर फल भी बहुत उत्तम आएंगे। “उसे बहुत सा धन मिलेगा, धन की कोई कमी नहीं रहेगी।” बहुत धन से तात्पर्य है, कि उसको जीवन जीने में साधनों की कमी नहीं रहेगी। कोई कठिनाई नहीं होगी। बहुत धन का तात्पर्य ‘कोई करोड़पति अरबपति सेठ बन जाएगा’, ऐसा नहीं है। “क्योंकि धन जीवन रक्षा के लिए आवश्यक होता है। बस इतना ही धन चाहिए, कि उससे जीवन रक्षा हो सके। यदि जीवन रक्षा से अधिक मात्रा में धन होगा, तो वह अनेक चिंताओं और दुखों का कारण बनेगा। इसलिए बहुत धन होना, कोई बहुत अच्छी बात नहीं है।”
“उस चरित्रवान व्यक्ति को धन के अतिरिक्त सम्मान भी बहुत मिलेगा।” क्योंकि यह भी चरित्र रूपी वृक्ष का एक उत्तम फल है। सम्मान प्राप्त करने से उसे बहुत सा सुख मिलेगा।
“यदि उसका चरित्र उत्तम है, तो उस चरित्रवान व्यक्ति की सेवा भी खूब होगी। उसकी सेवा में कोई कमी नहीं रहेगी।” अच्छे-अच्छे बुद्धिमान धार्मिक सदाचारी प्रतिष्ठित लोग उसे अनेक प्रकार की वस्तुएं भेंट में लाकर देंगे। जैसे उत्तम सात्विक भोजन वस्त्र फल मिठाई आदि। उसे किसी स्थान से लाना हो, या किसी स्थान पर पहुंचाना हो, तो वे ऐसी सब प्रकार की सेवा भी करेंगे। ये धन सम्मान और सेवा आदि चरित्र रूपी वृक्ष के उत्तम फल हैं।
“इसलिए चरित्र रूपी वृक्ष का विकास और उसकी सुरक्षा सबको अवश्य करनी चाहिए, ताकि अच्छे-अच्छे मीठे फल प्राप्त हो सकें।”
‌ “अब आश्चर्य की बात यह है, कि संसार में अधिकांश लोग इन फलों की कामना तो करते हैं, कि उन्हें बहुत सा धन मिले, सम्मान मिले, उनकी सेवा हो। परंतु ये फल, चरित्र रूपी जिस वृक्ष पर लगते हैं, उसका विकास और सुरक्षा बहुत कम ही लोग करते हैं।” “वृक्ष की तो सुरक्षा न करना और उसके फलों के इच्छा करना, यह तो नहीं हो सकता। क्योंकि यह कार्य सृष्टि के नियम से विरुद्ध है।”
“अतः जो लोग धन सम्मान सेवा आदि उत्तम फलों की प्राप्ति करना चाहते हैं, वे इनके आश्रयभूत चरित्र रूपी वृक्ष का विकास एवं उसकी सुरक्षा करें। तभी उनकी इच्छा पूरी हो सकेगी। फिर उन्हें ईश्वर की कृपा से किसी प्रकार की कोई कमी नहीं रहेगी।”
—- स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

प्रस्तुति : आर्य सागर खारी

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