श्रावण माह में श्रीमद वेद भागवत कथाएं सुनना होता है उपयोगी : आचार्य करण सिंह

आचार्य करण सिंह नोएडा

“श्रीमद् वेदभागवत की कथा पढ़ो- सुनो”– वेद में उपदेश है-‘सं श्रुतेन गमेमहि मा श्रुतेन विराधिषि।।अथर्व• भावार्थ- हे परमेश्वर! हम सदा वेद मार्ग पर चलें कभी वेद से विमुख न हो। भारत के प्रसिद्ध महाकवि तुलसीदास जी ने भी मनुष्य को संदेश दिया है- चलहि° कुपन्थ वेद मग छाडे, कुटिल कुचाली कलि मल भांडे। इसका अर्थ तो बहुत सरल है।महाकवि तुलसीदास जी कहते हैं कि वेद के बताए हुए श्रेष्ठ मार्ग को छोड़कर जो कुपन्थ पर चलते हैं।वह कुटिल हैं, कुचाली है, और कलयुग के मल के बर्तन के समान गन्दे है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने भी मनुष्य को वेद मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। इसलिए वेद एवं वेद मार्ग को समझने की महति आवश्यकता है।वेद मार्ग से भटक कर मानवता और मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्य से ही भटक जाते हैं। वेद एवं वेद मार्ग को लोग समझ सके, तो मानवता एवं राष्ट्र का बहुत बड़ा कल्याण हो सकता है।वेद ईश्वर की वाणी है।वेद संपूर्ण धर्म का मूल है। वेद प्रभु का पूर्ण प्रसाद है। ज्ञान-विज्ञान का प्रकाश पुंज है। समस्त विद्याओं का भंडार है। मनुष्य के जानने के लिए जो आवश्यक है। वह सब वेद में समाहित है। मिसाइल मैन पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय श्री ए पी जे अब्दुल कलाम जी से जब किसी व्यक्ति ने प्रश्न किया कि आपको यह विद्या कहां से उपलब्ध हुई, तो उन्होंने तपाक से उत्तर दिया, वेद से वेद में सारा विज्ञान है।यह वेद मार्ग क्या है? इसका स्वरूप महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपने यजुर्वेद भाष्य में इस प्रकार किया है। “पिता के समान कृपाकारक परमेश्वर! सब जीवो के हित और सब विद्याओं के प्राप्ति के लिए कल्प-कल्प की आदि में वेद का उपदेश करता है। जैसे- पिता व अध्यापक अपने शिष्य,पुत्र को शिक्षा प्रदान करता है कि तू ऐसा कर, व ऐसा वचन कह, सत्य वचन बोल इत्यादि शिक्षा को सुनकर बालक व शिष्य भी कहता है कि सत्य बोलूंगा पिता और आचार्य की सेवा करूंगा, झूठ नहीं कहूंगा। इस प्रकार जैसे परस्पर शिक्षक लोग शिष्यों व लड़कों को उपदेश करते हैं, वैसे ही परमात्मा ने वेद का उपदेश किया है। ऋ• मं•१/सू•१/म•१।। वेद का उपदेश परमात्मा द्वारा दिया जाता है। इसीलिए यह उपदेश परमात्मा सृष्टि के आदि में तुरंत बाद करता है। इसमें वेद में प्रमाण भी आया है। तो हमे वेद को परमात्मा की वाणी, सत्य सार्थक, वैज्ञानिक, योगिक, युक्ति युक्त, ज्ञान- विज्ञान मानकर स्वीकार करना चाहिए। अन्य सामान्य पुस्तकों के पढ़ने-पढ़ाने से उतना लाभ नहीं प्राप्त होगा।

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