जीव कर्म करने में स्वतंत्र है, लोग करते हैं इसका दुरुपयोग : स्वामी विवेकानंद परिव्राजक


“जीव कर्म करने में स्वतंत्र है। लोग इस सिद्धांत का दुरुपयोग अधिक करते हैं, और इससे लाभ कम उठाते हैं।”
वेदों के अनुसार यह सिद्धांत ठीक है कि “आत्मा कर्म करने में स्वतंत्र है।” स्वतंत्र का अर्थ होता है — “कानून या संविधान की सीमा में रहते हुए जितने काम करने की छूट दी गई है, उनमें से आत्मा अपनी इच्छा से कोई भी काम करे।” परंतु जब व्यक्ति इस सिद्धांत का दुरुपयोग करता है, “कानून का उल्लंघन करता है, हर जगह अपनी मनमानी करता है, संविधान में निषिद्ध कर्मों को भी करता है, तो उसे स्वच्छंदता कहते हैं।” स्वतंत्रता लाभदायक है। स्वच्छंदता हानिकारक है।
ईश्वर सर्वज्ञ है। शुद्ध स्वरूप है। सर्वव्यापी है, सर्वशक्तिमान है, न्यायकारी है। उसे सब मालूम है, कि कौन सा काम करने से आत्मा और संसार सुखी रहेगा, तथा कौन सा काम करने से आत्मा और संसार दुखी होगा। इसलिए कानून या संविधान बनाने का अधिकार केवल ईश्वर को है। अतः ईश्वर ने संसार के कल्याण के लिए सर्वश्रेष्ठ संविधान बनाया है। तथा सबका न्याय करने में सक्षम होने से न्याय करने का अधिकार भी उसी को है।
“ईश्वर ने सब आत्माओं के सुख, शांति और आनंद के लिए, सबको दुखों से बचाने के लिए चार वेदों में अपना संविधान बताया है। अब हम सब आत्माओं का यह कर्तव्य है, कि हम वेदों को पढ़ें, तथा ईश्वर के संविधान को समझें।” स्वयं तो समझ में नहीं आएगा, इसलिए अन्य वरिष्ठ विद्वानों से पूछें। उनसे निवेदन करें, कि हमें समझाइए, ईश्वर का संविधान कैसा है? फिर उसे समझ कर उस संविधान में जो विहित कर्म हैं, अर्थात जिनको करने की छूट ईश्वर ने दी है, जैसे यज्ञ करना ईश्वर की उपासना करना दान देना माता पिता की सेवा करना प्राणियों को भोजन देना उनकी रक्षा करना सत्य बोलना न्याय से व्यवहार करना इत्यादि। इनमें से अपनी इच्छा अनुसार कोई भी कर्म करें। इसका नाम स्वतंत्रता है। इससे आत्मा अच्छे कर्म करता है, और ईश्वर उसे न्यायपूर्वक सुख देता है। यह उचित है।
“परंतु संविधान में जो निषिद्ध कर्म हैं, अर्थात जिनको करने के लिए ईश्वर ने मना किया है, कि ऐसे काम मत करो।” जैसे झूठ बोलना चोरी करना अन्याय करना धोखा देना शराब पीना अंडे मांस खाना निर्दोष प्राणियों की हत्या करना इत्यादि। यदि आत्मा इनमें से कोई कर्म करता है तो इसका अर्थ हुआ, कि उसने स्वतंत्रता की सीमा का उल्लंघन किया। अब वह स्वच्छंदता के क्षेत्र में प्रवेश कर गया है। बस यही हानिकारक है। “इस
स्वच्छंदता के भूतकाल के उदाहरण आप सब लोग जानते हैं। जैसे रावण दुर्योधन कंस शिशुपाल इत्यादि इन लोगों ने स्वछंदता का आचरण किया। इसलिए ईश्वर की न्याय व्यवस्था से बहुत अधिक दंड भोगा और आज तक बदनाम हो रहे हैं।”

“और श्रीराम जी श्रीकृष्ण जी अर्जुन विभीषण महर्षि पतंजलि महर्षि जैमिनी महर्षि दयानंद जी आदि सज्जन महापुरुषों ने स्वतंत्रता का उपयोग किया। अच्छे वेदविहित कर्म किए। ईश्वर ने न्यायपूर्वक उन्हें बहुत सुख दिया, और आज तक संसार में उनका सम्मान हो रहा है।”
इसलिए इतिहास के उदाहरणों से हमें यह शिक्षा लेनी चाहिए कि हम रावण कंस दुर्योधन इत्यादि की तरह स्वच्छंदता का आचरण न करें। अन्यथा हमें भी वैसा ही दंड भोगना पड़ेगा।
“आज भी रावण दुर्योधन आदि के वंशज नाम बदलकर जीवित हैं। इन्हें देख कर इन्हें पहचानें। इनसे शिक्षा लेवें, कि ये सब दुष्ट लोग भविष्य में ईश्वर की न्याय व्यवस्था से भयंकर दंड भोगेंगे, परंतु हम ऐसे नहीं बनेंगे। श्रीराम जी श्रीकृष्ण जी और महर्षि पतंजलि गौतम कणाद आदि के वंशज भी आज की तारीख में जीवित हैं। उन्हें पहचानने की आवश्यकता है। उन्हें पहचानें, और उनका अनुकरण करके अपने जीवन को सफल बनाएं। क्योंकि अच्छे बुरे लोग सदा से थे, आज भी हैं, और आगे भी रहेंगे।”
स्वामी विवेकानंद परिव्राजक, रोजड़, गुजरात।

 

प्रस्तुति : देवेंद्र सिंह आर्य, चेयरमैन उगता भारत

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