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इतिहास के पन्नों से हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

मोहम्मद बिन बख्तियार खिलजी को जब धूल चटाई थी असम के राजा पृथु ने

बख्तियार खिलज़ी तू ज्ञान के मंदिर नालंदा को जलाकर कामरूप (असम) की धरती पर आया है…अगर तू और तेरा एक भी सिपाही ब्रह्मपुत्र को पार कर सका तो मां चंडी (कामातेश्वरी) की सौगंध मैं जीते-जी अग्नि समाधि ले लूंगा…*
*राजा_पृथु”

27 मार्च 1206 को असम की धरती पर एक ऐसी लड़ाई लड़ी गई जो मानव अस्मिता के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। एक ऐसी लड़ाई जिसमें किसी फौज़ के फौज़ी लड़ने आए तो 12 हज़ार हों और जिन्दा बचे सिर्फ 100….जिन लोगों ने युद्धों के इतिहास को पढ़ा है वे जानते हैं कि जब कोई दो फौज़ लड़ती है तो कोई एक फौज़ या तो बीच में ही हार मान कर भाग जाती है या समर्पण करती है…लेकिन 12 हज़ार लड़े और बचे सिर्फ 100 वो भी घायल…. ऐसी मिसाल दुनिया भर के इतिहास में संभवतः कोई नहीं….
आज भी गौहाटी के पास वो शिलालेख मौजूद है जिस पर इस लड़ाई के बारे में लिखा है। मुहम्मद बख्तियार खिलज़ी बिहार बंगाल के कई राजाओं को जीतते हुए असम की तरफ बढ़ रहा था। उसने नालंदा विश्वविद्यालय को जला दिया था और हजारों बौद्ध, जैन और हिन्दू विद्वानों का कत्ल कर दिया था। नालंदा विवि में विश्व की अनमोल पुस्तकें, पाण्डुलिपियाँ, अभिलेख आदि जलकर खाक हो गये थे। यह खिलज़ी मूलतः अफगानिस्तान का रहने वला था और मुहम्मद गोरी व कुतुबुद्दीन एबक का रिश्तेदार था। बाद के दौर का अलाउद्दीन खिलज़ी भी उसी का रिश्तेदार था।
खिलज़ी नालंदा को खाक में मिलाकर असम के रास्ते तिब्बत जाना चाहता था। तिब्बत उस वक्त चीन, मंगोलिया, भारत, अरब व सुदूर पूर्व के देशों के बीच व्यापार का एक महत्वपूर्ण केंद्र था तो खिलज़ी इस पर कब्जा जमाना चाहता था….लेकिन उसका रास्ता रोके खड़े थे असम के राजा पृथु जिन्हें राजा बरथू भी कहा जाता था…
गौहाटी के पास दोनों के बीच युद्ध हुआ। राजा पृथु ने सौगन्ध खाई कि किसी भी सूरत में वो खिलज़ी को ब्रह्मपुत्र नदी पार कर तिब्बत की और नहीं जाने देंगे…उन्होने व उनके आदिवासी यौद्धाओं नें जहर बुझे तीरों, खुकरी, बरछी और छोटी लेकिन घातक तलवारों से खिलज़ी की सेना को बुरी तरह से काटा। खिलज़ी खुद और कई सिपाही जंगल में भागे, पहाड़ों में भागे लेकिन असम वाले तो जन्मजात यौद्धा थे..आज भी दुनिया में उनसे बचकर कोई नहीं भाग सकता….उन्होने उन भगोडों खिलज़ियों को अपने पतले लेकिन जहरीले तीरों से बींध डाला….अन्त में खिलज़ी महज अपने 100 सैनिकों को बचाकर ज़मीन पर घुटनों के बल बैठकर क्षमा याचना करने लगा….
राजा पृथु ने तब उसके सैनिकों को अपने पास बंदी बना लिया और खिलज़ी को अकेले को जिन्दा छोड़ दिया उसे घोड़ेपर लादा और कहा कि “तू वापस अफगानिस्तान लौट जा…रास्ते में जो भी मिले उसे कहना कि तूने नालंदा को जलाया था फ़िर तुझे राजा पृथु मिल गया…बस इतना ही कहना लोगों से….”
खिलज़ी रास्ते भर इतना बेइज्जत हुआ कि जब वो वापस अपने ठिकाने पंहुचा तो उसकी दास्ताँ सुनकर उसके ही भतीजे अली मर्दान ने उसका सर काट दिया….
अजब कहानी है कि इस बख्तियार खिलज़ी के नाम पर बिहार में एक कस्बे का नाम बख्तियारपुर है और वहां रेलवे जंक्शन भी है, जबकि राजा पृथु के नाम के शिलालेख को भी ढूंढना पड़ता है, लेकिन जब अपने ही देश भारत का नाम भारत करने के लिए कोर्ट में याचिका लगानी पड़े तो समझा जा सकता है कि क्यों ऐसा होता होगा…..
उपरोक्त लेख पढ़ने के बाद भी कायर, नपुंसक एवं तथाकथित गद्दार धर्म निरपेक्ष बुद्धिजीवी व स्वार्थी हिन्दूओं में एकता की भावना नहीं जागती तो लानत है ऐसे लोगों पर, ईश्वर ऐसे लोगों को सद्बुद्धि दे।

जय आर्य जय आर्यावर्त

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