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आओ कुछ जाने इतिहास के पन्नों से

निराशा भाव से भरे इस इतिहास को जला दो

शाहजहां और औरंगजेब के काल में जिस पश्चिम (यूरोपियन देशों के लोग ) से भारत पर नए आक्रमण की तैयारियां प्रारंभ होने लगी थी , भारत अब उनसे जूझने की तैयारियां करने लगा था। मुगल बादशाहों ने इन विदेशी लोगों की हिंदुओं के साथ क्रूरता के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की । समकालीन इतिहास का यह तथ्य विशेष रूप से दृष्टव्य है । विशेषत: तब जब कि इन विदेशी नवमुस्लिमों के साथ हिंदूओ जैसी क्रूरता का या उनके सामूहिक धर्मांतरण का कोई गंभीर प्रयास नहीं किया गया ।

आज तक ये ईसाई मिशनरी हिंदुओं का धर्मांतरण करने पर लगी हैं। मुस्लिमों का सामूहिक धर्मांतरण कहीं नहीं किया जा रहा है । क्योंकि उन्हें पता है कि इस देश को मुस्लिम तो पहले ही शिकारगाह मानता है , तुम भी इसे शिकारगाह मानकर ही कार्य करो तो उत्तम रहेगा। हिंदु इस देश को अपना मानता है और उसका अपना मानने का यह भाव जितनी शीघ्रता से समाप्त किया जाए उतना ही अच्छा रहेगा । हिंदुओं को समाप्त करने के ‘न्यूनतम साझा कार्यक्रम’ पर यह लोग कार्य कर रहे हैं और उनका यह संस्कार सदियों पुराना है।
भारत और भारतीयता को बचाने के लिए भारतीय चेतना ने ऐसे गठबंधन को प्रारंभ से ही समझा और सदा इसके विरूद्ध एक ज्वाला बनकर खड़ी रही । यह ज्वाला भारत का पराक्रम था , पुरुषार्थ था , वीरता थी और भारत भूमि से विदेशी शासकों को खदेड़ बाहर कर देने की योजना थी।
इसी का परिणाम था कि ‘इंपिरियल गैजेटियर ऑफ इंडिया’ ने 1908 – 09 में जब भारत के नेटिव स्टेट्स की सूची तैयार की तो उस सूची में म्यांमार और नेपाल को मिलाकर कुल 693 राज्य थे । उन सबको भारत अपने साथ बड़ी सफलता से बांधे रहा या यह कहिए कि यह स्वेच्छा से और बड़ी श्रद्धा से भारत के साथ स्वाभाविक रूप से जुड़े रहे। इनके जुड़े रहने के पीछे हमारे बलिदानीयों का बलिदान और भारत की महान सांस्कृतिक विरासत थी।
इसके पश्चात 1929 में इंडियन स्टेट समिति की रिपोर्ट आई , जिसमें 562 राज्यों की सूची दिखाई गई थी । हमें इस बात पर कभी विचार नहीं करने दिया गया कि 1908 – 9 से 20 वर्ष पश्चात 1929 तक इतनी रियासतें 693 से घटकर 562 क्यों रह गई ? इस इंडियन स्टेट कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार 108 राजा भारत में उस समय ऐसे थे जिनके राज्य में पूर्ण समृद्धि और संपन्नता थी ।उनके राज्य बहुत बड़े-बड़े थे । इनमें 20 राज्य ऐसे थे जिनका क्षेत्रफल जर्मनी, इंग्लैंड , फ्रांस से ही बड़ा था। साथ ही 88 राज्यों की शक्ति लगभग इंग्लैंड की शक्ति के समान थी ।उस समय 108 राजा ऐसे थे जिन्हें चेंबर ऑफ प्रिंसेस का सदस्य बनाया गया था। जबकि 127 राजा ऐसे थे जिनके प्रतिनिधि उसके सदस्य थे । शेष 327 राज्यों की जागीरों की तरह के थे ।
संपूर्ण भारत पर राज्य स्थापित करने का साहस ब्रिटेन कभी नहीं कर पाया था। इसका कारण यह था कि इंग्लैंड सदा भारत की शक्ति को गहराई से समझता रहा था । सदियों से जिस देश ने गुलामी को कभी स्वीकार नहीं किया और जिसके पास अपना एक समृद्ध इतिहास था , उस देश पर शासन करना सरल नहीं था। उसकी शक्ति को चुनौती देने का अभिप्राय था स्वयं को आपत्ति में डाल लेना । जिस समय इंग्लैंड की ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ भारत में आकर अपनी आंखें खोल रही थी और भांति भांति के अत्याचार कर भारतीयों का उत्पीड़न कर रही थी उसी समय वह यह भी देख रही थी कि भारत की ज्वाला बनी चेतना कितनी शीघ्रता से मुगल साम्राज्य को लील रही थी ?
उस ज्वाला की ऊंची ऊंची लपटों में मुगल साम्राज्य ‘जहन्नम की आग’ में जल रहा था और पूरा देश मराठों के या अन्य हिंदू वीरों के नेतृत्व में एक विशाल राष्ट्रीय यज्ञ कर रहा था । उसमें भारतवासी कितनी तल्लीनता और तन्मयता से मगन थे , यह अंग्रेजो के लिए प्रारंभ से ही समझने का विषय था। इसीलिए उन लोगों ने भारत को कभी भी अपना स्थायी निवास नहीं बनाया । यहां से धन लूट -लूट कर वह स्वदेश ले जाते रहे और अपने लिए कोई सुरक्षित शहर या कॉलोनी ऐसी नहीं बनाई बसाई जिसमें भारत को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात वह रह सकें ।
जब देश आजाद हुआ तो एक-एक अंग्रेज भारत से निकलकर ऐसे भागा जैसे कोई चोर स्वामी की आंखें खुल जाने पर हड़बड़ी में भागता है । उन्होंने चाहे जितना गांधी की अहिंसा को देखा हो , पर यह भली प्रकार जानते थे कि यह देश ‘शिवाजी से सुभाष पर्यंत’ कितने देशभक्त वीर उत्पन्न करने वाला देश है ? यह गांधी की अहिंसा से नहीं चलता बल्कि यहाँ तो शिवाजी व सुभाष की क्रांति ज्वाला में राक्षस जलाए जाते हैं यह देश शिवाजी के संस्कारों से आगे बढ़ रहा है और सुभाष उसकी ध्वजा के वर्तमान में संवाहक हैं । इसलिए देश के लिए मर मिटने और मरने से पहले शत्रु को मिटा देने का हर संभव प्रयास करना भारतीयों का मूल संस्कार है। अपनी स्वतंत्रता को मिटाने वालों के चांटे खाना भारतीयों का स्वभाव नहीं है , अपितु ऐसे शत्रुओं को चांटा मारना भारतीयों का मूल स्वभाव है।
वास्तव में इतिहास के इसी गौरवपूर्ण पक्ष को आज फिर से स्थापित करने की आवश्यकता है। निराशा भाव से भरा वर्तमान इतिहास जितनी शीघ्रता से हमारे विद्यालयों से हटा दिया जाएगा , उतना अच्छा होगा।
बस एक ही आवाहन है कि निराशा भाव से भरे वर्तमान इतिहास को जला दो।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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