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कविता

…..हो जाते सब मौन

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… हो जाते सब मौन

 

मरण जीवन का अंत है क्यों करता है शोक।
संयोग सदा रहता नहीं, वियोग बनावै योग ।। 1।।

जो फल पकता डार पर पतन से है भयभीत ।
मानव डरता मौत से भूल प्रभु की प्रीत ।। 2 ।।

मजबूत खम्भे गाड़कर महल किया तैयार।
धराधूसरित हो गया जब पड़ी वक्त की मार।। 3 ।।

नदिया लेकर नीर को चली समन्दर ओर ।
रजनी बीती जा रही अब होने वाली भोर।। 4 ।।

जो बीता लौटा नहीं यही जगत की रीत ।
कहां गया बचपन सखे यौवन के वे गीत।। 5 ।।

दिन-रात निरंतर हो रही आयु मेरी क्षीण।
सूरज जल को सोखता तड़प रही है मीन।। 6 ।।

साथ ही चलती बैठती सफर में देती साथ ।
जिससे जग भयभीत है मौत है उसका नाम ।। 7 ।।

सिर पे सफेदी आ गई झुर्री पड़ गईं गात ।
बुढापा धरना दे रहा उठ चल मेरे साथ ।। 8 ।।

बुढापा लाता मौत को हो जाते सब मौन ।
जिसने जीता मौत को है बतलाओ कौन ?।।9।।

देश धर्म की सोच ले धन नहीं जाता साथ।
सखा सनातन धर्म है सदा निभाये साथ ।।10।।

कितना ही धन जोड़ ले होता एक दिन नाश।
जिसको ‘बढ़ना’ कह रहे करता वही विनाश।। 11।।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

 

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