नेपाल में बनते हुए काम को बिगड़ता देख चीन ने उतारी अपनी ‘फौज’

काठमांडू । नेपाल में बढ़ते ‘भारत प्रेम’ के चलते चीन की नींद उड़ गई है । चीन पिछले कुछ समय से जिस प्रकार नेपाल को भारत के विरुद्ध उकसाने का काम कर रहा था और वहां के प्रधानमंत्री ओली जिस प्रकार भारत के विरुद्ध जहर उगलने का काम कर रहे थे उसमें अचानक आए अप्रत्याशित परिवर्तन को लेकर चीन लगभग घबराहट की स्थिति में है । ज्ञात रहे कि चीन के इशारों पर चाहे वहां की सरकार कुछ भी कर रही थी लेकिन नेपाली जनमानस अपने भविष्य को दृष्टिगत यह भली प्रकार जानता वह समझता है कि चीन के साथ उसका भविष्य रक्षित नहीं है जबकि भारत के साथ वह पूर्ण से अपने आप को सुरक्षित अनुभव करता है ।


नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के मास्‍टर स्‍ट्रोक से घबराए चीनी ड्रैगन ने सत्‍तारूढ़ नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी में जारी विवाद को सुलझाने के लिए अपनी पूरी ‘फौज’ उतार दी है। पीपीई सूट पहनकर चार्टर्ड विमान से काठमांडू पहुंचे चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के उपमंत्री गुओ येझु ताबड़तोड़ बैठकें कर रहे हैं। गुओ ने अभी तक राष्‍ट्रपति ब‍िद्यादेवी भंडारी, पीएम ओली, उनके विरोधी पुष्‍प कमल दहल प्रचंड के साथ बैठकें की हैं। इस बीच नेपाल की आंतरिक राजनीति में चीन के सीधे-सीधे हस्‍तक्षेप पर भारत ने भी अपनी पैनी नजर बना रखी है।

नेपाली अखबार काठमांडू पोस्‍ट के मुताबिक चीनी उप मंत्री ने सोमवार को नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के शीर्ष नेताओं से दिनभर मुलाकात की। मंगलवार को भी उनका अन्‍य नेताओं के साथ मुलाकात करने का कार्यक्रम है। चीनी मंत्री की पूरी कोशिश है कि नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी के दोनों ही धड़ों को साथ लाया जाय। इससे पहले 20 दिसंबर को पीएम ओली के संसद को भंग करने के फैसले से कम्‍युनिस्‍ट पार्टी स्‍पष्‍ट रूप से दो फाड़ हो गई है। चीनी मंत्री के साथ अधिकारियों की पूरी ‘फौज’ आई। बताया जा रहा कि मंत्री के अलावा 11 अन्‍य चीनी अधिकारी ओली सरकार पर दबाव डालने के लिए नेपाल पहुंचे हैं।
यह वही नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी है जिसके गठन के लिए चीन ने एक वर्ष 2018 में ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया था। यही नहीं चीन ने जिस उपमंत्री गुओ येझु को नेपाल भेजा है, उन्‍होंने ही ओली और प्रचंड की पार्टियों को वर्ष 2018 में मिलाकर नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी बनाने में बेहद अहम भूमिका निभाई थी। सूत्रों के मुताबिक चीनी नेता नेपाल कम्‍युनिस्‍ट पार्टी में टूट जैसी स्थिति से बेहद चिंतित हैं और वे यह जानना चाहते हैं कि बदलते भूराजनीतिक शिफ्ट के बीच इस संभावित राजनीतिक अस्थिरता का नेपाल-चीन रिश्‍तों पर क्‍या असर पड़ेगा।
नेपाल पर करीबी नजर रखने वालों का कहना है कि चीनी राष्‍ट्रपति के नेतृत्‍व में चीन की कम्‍युनिस्‍ट पार्टी चाहती है कि पीएम ओली की सरकार संसद को भंग करने के आदेश को वापस ले। इसके बदले में चीन ओली को 5 साल पीएम बने रहने का गारंटी देना चाहता है। नेपाल में 30 अप्रैल और 10 मई को चुनाव कराए जाने का ऐलान हो चुका है और चीनी प्रतिनिधिमंडल यह जानने का प्रयास कर रहा है कि क्‍या चुनाव संभव है। देश में मध्‍यावधि चुनाव कराए जाने ओली को छोड़कर बाकी सभी दल विरोध कर रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक ओली जहां अब चीनी हस्‍तक्षेप के सामने झुकने के मूड में नहीं हैं, वहीं प्रचंड स्‍पष्‍ट रूप से लगातार चीन से वर्तमान राजनीतिक संकट में हस्‍तक्षेप की गुहार लगा रहे हैं।
इस बीच भारत ने नेपाल के राजनीतिक संकट को आंतरिक मामला बताते हुए हस्‍तक्षेप नहीं करने का फैसला किया है। इसके बाद भी भारत ने चीन के बढ़ते हस्‍तक्षेप पर पैनी नजर बनाई हुई है। द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक पिछले सप्‍ताह ही नेपाल में भारत के राजदूत विनय क्‍वात्रा ने पीएम ओली से मुलाकात के बाद नई दिल्‍ली की यात्रा की थी। इसके बाद ऐसी अटकलें लगाई गई थीं कि भारतीय राजदूत पीएम ओली का संदेश लेकर दिल्‍ली आए थे। पूर्व राजनयिकों का कहना है कि भारत ने चीन के विपरीत सार्वजनिक रूप से पूरे मामले में नहीं कूदकर सही कदम उठाया है।
वास्तव में नेपाल में इस समय जो हालात बने हुए हैं उसमें भारत की विदेश नीति की बहुत बड़ी परीक्षा का काल चल रहा है। बहुत ही सधी हुई नीति के अंतर्गत हमें निर्णय लेने होंगे। इस समय पिक्चर बहुत साफ है कि नेपाल की जनता भारत का साथ चाहती है, दूसरे वैश्विक समुदाय भी भारत की शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की नीति से पूरी तरह वाकिफ हैं ,ऐसे में भारत को अपने पड़ोसी और सबसे अच्छे मित्र नेपाल की संप्रभुता का सम्मान रखते हुए चीन को क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ने से भी बाज रखने के लिए कदम उठाने होंगे।

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