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पुस्तक समीक्षा : तेरे शहर के मेरे लोग

तेरे शहर के मेरे लोग

संसार के आज तक के इतिहास में ऐसी अनेकों कहानियां बनी बिगड़ी हैं जिन्हें मैंने अपने ढंग से लिखा है तो आपने अपने ढंग से लिखा है । कहानी का सच क्या था ? – इसे ना तो वक्त ने तय किया और ना ही लोगों ने मिल बैठकर तय किया। अपने -अपने ढंग से अपनी – अपनी मान्यताएं लेकर लोग चलते रहे और कहानियां नए-नए ढंग से आती जाती रहीं।


कुल मिलाकर कहानी की विशेषता होती है कि वह पाठक को उलझाए नहीं। पाठक को सहज ,सरल और एक ऐसे सुगम रास्ते पर डालने में सक्षम हो जहां से सब कुछ चीजें स्पष्ट होती चली जाएं । प्रस्तुत पुस्तक के लेखक प्रमोद कुमार गोविल ने यहां पर अपनी ही आत्मकथा को सहज- सरल ढंग से कहानी के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया है । जिसमें लेखक ने बहुत सारी बातों को बिना उलझाए बड़े सरल
ढंग से प्रस्तुत करने में सफलता प्राप्त की है।
जिंदगी अनेकों प्रकार के उतार-चढ़ाव, दर्द और अनेक प्रकार की अनुभूतियों का एक संगम है । इन सभी चीजों को देखने का अपना – अपना नजरिया हर व्यक्ति का अलग – अलग होता है। लेखक ने जिंदगी की जितनी भी अनुभूतियां की हैं उनको बहुत ही सकारात्मकता के साथ लोगों के समक्ष प्रस्तुत किया है, जो उनकी कलम की जादूगरी और उनके व्यक्तित्व की विशेषता को प्रकट करती है। उन्होंने जिंदगी से शिकायत नहीं की है, ना ही लोगों से शिकायतें की हैं। उन्होंने जो भी रास्ते में मिला है उसे अपना प्रारब्ध मानकर स्वीकार किया है और यही किसी कहानी के पात्र की सबसे बड़ी विशेषता होती है।
लेखक ने अपने बारे में स्पष्ट किया है कि मेरा मन शुरू से ही ‘सुनो सबकी – करो मन की’ – का आदी रहा था । वास्तव में ‘सुनो सबकी – करो मन की’ – वाला व्यक्ति अहंकारी नहीं बल्कि सबके प्रति सहज- सरल और विनम्र रहकर भी अपनी अंतरात्मा की आवाज पर चलने वाला होता है । जो उसके व्यक्तित्व को निरालापन प्रदान करता है । इसके साथ-साथ उसके व्यक्तित्व के स्वाभिमानी पक्ष को उजागर करने में भी सहायक होता है । निश्चित रूप से प्रबोध कुमार गोविल जी इसी सोच और इसी विचार के पोषक हैं। उन्होंने अपने बारे में विशेष प्रशंसा न लिखकर दुनिया के अनुभवों को अपनी कलम से हमारे समक्ष प्रस्तुत करने का प्रयास किया है । जिनसे अनेकों प्रकार के उतार-चढ़ाव से गुजरती जिंदगी दूसरों के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकती है । उन्होंने कहीं पर भी अपनी बौद्धिक संपदा पर गर्वोक्ति नहीं की है । वह एक सितारे हैं और जिस प्रकार सितारे का काम दूसरों के लिए रोशनी फेंकना होता है या दूसरों को मार्ग बताना होता है, कर्तव्य मार्ग पर जो कुछ भी मिले – वही सही, जीवन के इस दार्शनिक पक्ष को प्रस्तुत करने में श्री गोविल जी और उनकी पुस्तक पूर्णतया सफल रही है।
यह उन जैसा लेखक ही हो सकता है जो अतीत को बेचना नहीं चाहता बल्कि उसकी विरासत को सहेज कर रखना चाहता है। दुनिया के इतिहास में ऐसी अनेकों प्रतिभाएं हुईं हैं जिन्होंने छोटे से तनाव में आकर या किसी भी मोड़ पर जाकर अतीत का सौदा कर लिया और वर्तमान को बर्बाद कर अपने भविष्य को भी अनेकों प्रश्न चिन्हों के माध्यम से सुनसान छोड़कर चले गए।
कुल मिलाकर पुस्तक श्री गोविल जी के बारे में यह स्पष्ट करने में सफल हुई है कि :–

‘ जीना है तो जीने की एक ऐसी अदा हो जा ।
जो देखे खुदा तो कह देना मेरा खुदा हो जा।।

पुस्तक के प्रकाशक ‘साहित्यागार’ धामाणी मार्केट की गली, चौड़ा रास्ता , जयपुर (राजस्थान) हैं । पुस्तक प्राप्ति के लिए दूरभाष नंबर 0 141 – 2310785 व 4022 382 हैं। पुस्तक का मूल्य ₹250 है।

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