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आज का चिंतन

क्या है यह संसार और कैसे चल रहा है?

आचार्या विमलेश बंसल आर्या

किसी ने पूछा ये संसार क्या है? कैसे चल रहा है??
उत्तर –
संसृति इति संसारः जो सरक रहा है वही संसार है।
मजे की बात है प्रकृति से उत्पन्न जड़ धर्म होते हुए भी चल रहा है बदल रहा है। आखिर कैसे?? जब जड़ है तो, कौन शक्ति है? जो सरका रही है। चला रही है अपने आप तो एक बीज में भी अंकुरण नहीं हो सकता। अपने आप तो अंकुरण पौधा में भी नहीं बदल सकता अपने आप तो वृक्ष भी नहीं बन सकता जबकि बीज में तो चेतन आत्मा है।
क्योंकि जड़ में स्वयं क्रिया होती नहीं। अतः चेतन परमात्मा ही क़र्त्ता है जो कि सर्वत्र स्थिर है स्वयं में बिन गति के संसार को गति दे रहा है ठीक उस तरह जैसे गाड़ी में भीतर एक ड्राइवर स्थिर सीट पर बैठा है बैठा हुआ ही बस को गति दे रहा है चला रहा है।


यदि ड्राइवर चलने लगे तो बस नहीं चलेगी।
अतः चेतन स्थिर परमात्मा सर्वत्र सर्वशक्तिमत्ता सर्वज्ञता से विद्यमान है और सारे जड़ संसार को गतिमान किये हुए है। बनना बढना मिटना यही तीन काम मुख्यतः संसार में दिखाई दे रहे हैं। इसी से पता चलता है कि संसार परिवर्तनशील है। परन्तु यह सांसारिक परिवर्तन अपरिणामी चेतन परमात्मा के कारण हो रहा है। क्योंकि प्रकृति स्वयं में जड़,निष्क्रिय है, परन्तु परिणाम को प्राप्त होने के धर्म वाली है। मिट्टी से पिंड फिर घड़ा बनना, टूटकर फिर मिट्टी हो जाना, यह परिवर्तन बनना और मिटना यह बिना किसी चेतन शक्ति के नहीं हो सकता। स्थिर परमात्मा की चेतन शक्ति सर्वत्र व्यापक क़र्त्ता रूप में रहने पर ही संसार गतिमान हो रहा है। संसार की अपनी बिसात नहीं न ही चेतन जीवात्मा की, कि संसार को चला सके। जीवात्मा अपने पिंड को भी परमात्मा की ही दी हुई शक्ति से चला रहा है।
क्योंकि पिंड का निर्माण क़र्त्ता शक्तिदाता स्वयं परमात्मा है अल्पशक्तिमान, अल्पज्ञ जीवात्मा नहीं।
यह समझने योग्य है।।
अतः उस परमात्मा को सर्वशक्ति सम्पन्न जान उससे अतुलित शक्ति बल ज्ञान आनंद प्राप्त करने उस परमात्मा की शरण को प्राप्त

 

भोर की उषा

आचार्या विमलेश बंसल आर्या

कौन कहता है रात घनी है,
भोर की उषा भी तो आकर तनी है।
यह तो तुम्हारे देखने का नजरिया है।
किसी को रात नजर आती है तो
किसी को दिन।
किसी ने रोशनी में भी दिल जलाए हैं
तो किसी ने अंधेरे में भी दिए।
एक ज्ञानी व्यक्ति तो वही है
जो रात के अंधेरे को भी शांति का द्वार समझ चैन पाता है।
और दिन के उजाले को चंहुँ ओर लुटाता है।
मित्रो!
ईश्वर के बनाये दिन रात सब अच्छे हैं।
जिसने इस परिणामी- जगत में अपने अपरिणामी-स्वरूप से चलना सीख लिया वे ही प्रभु के बच्चे हैं।
फिर दो पंक्तियाँ कहती हूँ-
तुम कैसे जानोगे उस प्रभु की इस खूबसूरत व्यवस्था को।
जब जान न सके स्वयं की ही दिन रात बदलती अवस्था को।

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