Categories
संपादकीय

संघ प्रमुख मोहन भागवत का बयान और शिवसेना

 

शिवसेना ने महाराष्ट्र में जोड़-तोड़ कर सरकार तो बना ली और अब जैसे तैसे उसे चला भी रही है, परंतु उसे अपने भविष्य की चिंता भी है । क्योंकि उसने हिंदुत्व के साथ जिस प्रकार दूरी बनाने का निर्णय लिया उससे महाराष्ट्र में ही नहीं बल्कि महाराष्ट्र से बाहर भी उसकी किरकिरी हुई है। अब वह अपनी क्षतिपूर्ति करने के लिए छटपटा रही है। यही कारण है कि मोहन भागवत के हिंदुत्व संबंधी बयान को लेकर अब शिवसेना ने अपने आपको हिंदुत्व के प्रति एक बार फिर निष्ठावान साबित करने का प्रयास किया है ।शिवसेना ने मंगलवार को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत के हिंदुत्व पर विचारों को व्यापक और समग्र बताया और कहा कि उन्होंने उन लोगों को करारा जवाब दिया है जो समझते हैं कि जो लोग भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के साथ नहीं हैं, वे हिंदू नहीं हैं। शिवसेना ने कहा कि भागवत ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान मंदिरों को खोलने की मांग नहीं की, क्योंकि उनके विचार वैज्ञानिक हैं।


शिवसेना ने चाहे बेशक अपने इस बयान में भाजपा की आलोचना की हो, पर उसने यह जरूर दिखाने का प्रयास किया है कि वह भी मोहन भागवत की शरण में रहना चाहती है। यह अलग बात है कि अब शिवसेना को मोहन भागवत का संरक्षण और शरण मिलती है या नहीं?

शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में लिखा है कि ‘वह टीके के विकास में निवेश के पक्षधर रहे हैं। महामारी के दौरान बीजेपी के जो नेता मंदिरों को खोलने के पक्षधर रहें हैं उन्हें पहले भागवत को सुनना चाहिए।’ संपादकीय में लिखा गया है, ‘कुछ ठेकेदारों की विकृत विचारधारा है कि हिंदुत्व पर उनका एकाधिकार है और जो लोग बीजेपी के साथ नहीं हैं, वे हिंदू नहीं हैं। आरएसएस प्रमुख ने उन्हें उनका स्थान दिखा दिया है।’
ऐसा लिखकर शिवसेना ने वास्तव में अपने भीतर के पापबोध को प्रकट किया है। वह स्वयं जिस प्रकार धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों की शरण में गई और सत्ता स्वार्थ के लिए उसने हिंदुत्व का बलिदान दिया उसका पाप अब उसे तंग कर रहा है। जिससे वह अब परेशान दिखाई दे रही है। उसे पता है कि उसके संस्थापक बाल ठाकरे ने किस प्रकार की विषम परिस्थितियों का सामना करते हुए संगठन को आगे बढ़ाया था। निश्चित रूप से उनका हिंदुत्व ही उन्हें मजबूती दे पाया था । जिसके कारण वह हर एक तूफान का सामना करने में सफल रहे थे। अब अपने खिसकते जनाधार को बचाने के लिए शिवसेना भी हिंदुत्व की शरण में जा समझना चाहती है, परंतु उसे यह भी डर है कि यदि वह सीधे-सीधे हिंदुत्व की शरण में गई तो उसकी सत्ता हाथ से जा सकती है। वह सत्ता को भी नहीं छोड़ना चाहती और हिंदुत्व को भी छोड़ना नहीं चाहती । ऐसे ऐसे द्वंद भाव में फंसी शिवसेना अब क्या करे ? बस, इसी हताशा में वह मोहन भागवत के बयान का कहीं ना कहीं समर्थन करती हुई दिखाई दे रही है।
शिवसेना के नए प्रहार पर महाराष्ट्र बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्ये ने कहा, ‘शिवसेना ने हिंदुत्व का परित्याग कर दिया है और अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए उस दल को किसी भी मुद्दे पर बीजेपी की आलोचना करनी है।’
भाजपा की इस प्रकार की आलोचना में दम हो सकता है । शिवसेना कांग्रेस जैसे जिन राजनीतिक दलों की गोद में जाकर बैठी है उनकी नीतियों को कोसते कोसते ही वह यहां तक पहुंची है। पर आज दुर्भाग्य है कि जिस राजनीतिक दल की नीतियों की वह आलोचक रही, उसी के समर्थन से महाराष्ट्र में सरकार चला रही है। जिससे महाराष्ट्र के मतदाता अब उससे दूरी बना रहे हैं।
नागपुर में आरएसएस के वार्षिक दहशरा उत्सव पर भागवत ने कहा था कि हिंदू राष्ट्र की संघ की अवधारणा न तो राजनीतिक है, न ही शक्ति केंद्रित। उन्होंने दावा किया था कि हिंदुत्व शब्द भारत की 130 करोड़ आबादी पर लागू होता है जो भारत के साथ अपनी पहचान, परंपराओं और मूल्यों से जुड़े हुए हैं।
अब शिवसेना को यह कौन समझाए कि मोहन भागवत ने अपने इस बयान में भारत के सभी नागरिकों को सम्मिलित किया है । इसका अभिप्राय है कि उन्होंने भारत को एक हिंदू राष्ट्र माना है और यहां के सभी निवासियों को भी हिंदू ही माना है । उन्होंने हिंदुत्व को राष्ट्रीयता के संदर्भ में लिया है और यह स्पष्ट करने का प्रयास किया है कि भारत में विभिन्न पूजा पद्धतियों के होने के बावजूद भी यहां के सभी निवासी हिंदू हैं । क्या शिवसेना ऐसा कह पाएगी ? और यदि हां तो क्या उसका वह समर्थन भी कर पाएगी ?

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

Comment:Cancel reply

Exit mobile version