दुनिया में कौन अपना कौन पराया?

*आप किसे अपना मानते हैं, और कौन आपको अपना मानता है? इस बात की पहचान अवश्य करें। अन्यथा बाद में आपको पश्चाताप होगा।*


जीवन में सुख दुख दोनों आते रहते हैं। सब के जीवन में आते हैं। जब आपके जीवन में सुख की परिस्थिति है, समृद्धि है संपत्ति है सब कुछ है, उस समय तो बहुत से लोग आपके साथ होंगे ही, आपके आगे पीछे घूमेंगे, आपके साथ बातें करेंगे, खाएंगे पिएंगे, आपकी संपत्तियों का लाभ उठाएंगे, आपसे प्रेम होने का प्रदर्शन भी करेंगे। यह तो सामान्य बात है। प्रायः सभी ऐसा करते हैं। *और उनके ऐसे व्यवहारों को देखकर आप ऐसा मान भी लेंगे, कि ये तो मेरे अपने हैं। ये तो मेरे सुख दुख के साथी हैं।* ऐसे लोग कौन-कौन हो सकते हैं? आपके घर के सदस्य मित्र रिश्तेदार पड़ोसी ऑफिस के लोग इत्यादि। समृद्धि के समय तो ये सभी आपको *अपने* दिखेंगे।
आप जिनको अपना मानते हैं, उनमें से वास्तव में कौन आपका अपना है? इनकी असली परीक्षा तो दुख के समय में होगी। जब कभी आपके जीवन में प्रतिकूल परिस्थिति आएगी, आपकी समृद्धि कम हो जाएगी, समाज में प्रतिष्ठा कम हो जाएगी, आप रोगी हो जाएंगे, किसी के कर्जदार हो जाएंगे, अथवा इसी प्रकार की कोई और समस्या आपके जीवन में आ जाएगी, तब देखिएगा कौन-कौन आपके पास आता है? कौन आपके पास बैठता है, कौन आपसे बात करता है, कौन आपसे सहानुभूति रखता है,कौन आपकी सहायता और सेवा करता है? उस समय आपको पता चलेगा कि जिन्हें आप *अपना* मानते थे, *उनमें से वास्तव में कौन आपका अपना है?* उस समय केवल वही लोग आपके पास आएंगे, आप की सेवा करेंगे, आपकी सहायता करेंगे, *जो लोग आपको अपना मानते हैं।* ऐसे लोग कौन हो सकते हैं? आपकी पत्नी आपके बच्चे आपके घर के ही कुछ सदस्य। और अपवाद रूप से शायद कोई बाहर का भी एक आध व्यक्ति।
इनमें से भी केवल वही लोग आपकी सेवा करेंगे, जिनको वास्तव में आप से प्रेम होगा। जो धन के लालच से आपके साथ नहीं जुड़े हुए थे । बल्कि आपकी विद्या योग्यता सेवा परोपकार न्यायप्रियता सत्यग्राहिता इत्यादि उत्तम गुणों के कारण आप से जुड़े हुए थे। *केवल वही लोग वास्तव में आपके अपने हैं।* और ऐसी आपत्ति में वही लोग आपकी सहायता करेंगे।
परंतु आपकी समृद्धि के समय में जिन्हें आप अपना माने बैठे हैं, उनमें से जो लोग आपके आपत्तिकाल में आपकी सेवा करने के लिए नहीं आएंगे, तब आपको उनके लिए अवश्य ही अफसोस होगा और अपनी गलती तब समझ में आएगी, कि *जिन्हें मैं अपना समझता रहा, वे लोग तो बहुत स्वार्थी निकले। मैं ही नहीं पहचान पाया।* तब आपको शायद अधिक पश्चाताप भी हो सकता है, कि *जिन लोगों के लिए मैंने अपना जीवन लुटाया, समय लगाया, शक्ति खर्च की, तन मन धन से जिनकी सेवा की, आज वे मुझे पूछने तक नहीं आते!!!*
तो वृद्धावस्था में, कंगाली में अथवा ऐसे ही किसी अन्य आपत्तिकाल में, ऐसा पश्चाताप आपको न करना पड़े, इसलिए समय रहते ही सबकी परीक्षा करें। चाहे घर का सदस्य हो, चाहे रिश्तेदार हो, चाहे मित्र मंडल हो, या कोई भी हो, सबकी परीक्षा करें। *जो आपके दुख में साथ देता हो, वही वास्तव में आपका अपना है।* उसी पर अपना समय शक्ति धन विद्या आदि खर्च करें। किसी के साथ लड़ाई झगड़ा न करें। द्वेष भी किसी से न करें। योग्य व्यक्तियों को पहचान कर उन के साथ अपना जीवन जिएं। यही सुख शांति से जीने का उपाय है।
– *स्वामी विवेकानन्द परिव्राजक*

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