रामेश्वर प्रसाद मिश्र
(लेखक गांधी विद्या संस्था, बनारस के निदेशक हैं।)
यदि हम विश्व के सभी समाजों का अध्ययन करें तो पाएंगे कि हिंदू समाज दुनिया का सबसे अधिक समरस, संगठित और सभ्य समाज है। परंतु दुर्भाग्यवश आज इसे सर्वाधिक भेदभावपूर्ण, बिखरा हुआ और संकीर्ण समाज के रूप में चित्रित किया जाता है। ये करने वाले लोग कौन हैं और क्यों ऐसा कर रहे हैं, यह समझना आवश्यक है। समस्या यह है कि हिन्दुओं के समाजरूपी गठरी में जो सबसे बड़ा चोर और सेंधमार लगा है, उसे वे अपना देवतुल्य अतिथि मानकर पूजे जा रहे हैं। यह उनके यानी हम सबके दुर्भाग्य का एकमेव कारण है। इस अर्थ में वह चोर ठग भी है और सेंधमार भी। पर उससे मुक्ति का कोई भी लक्षण हिन्दुओं में अभी तक तो नहीं दिखता। भगवत कृपा से कभी भी संभव है।
वह चोर मेरी समझ में कौन है, क्या है, यह सीधे बता देने का मन था, फिर लगा कि थोड़ी कथा कर के तब बताएं। कृपा कर निम्न बिन्दुओं पर मनन करें।
ठ्ठ सब जानते हैं कि 15 अगस्त 1947 को सत्ता हस्तांतरण अंग्रेजों ने नेहरु मण्डली को किया, फिर भी स्वधीनता दिवस कहे जा रहे हैं उस दिन को।
कुछ लोग तो इससे भी बुरी दशा में हैं वे कहते हैं कि भारत अभी भी गुलाम ही है, किसका गुलाम, किस अर्थ में गुलाम, क्यों गुलाम कोई नहीं बता पाता। बताये कहाँ से, हो तब न?
सब यह भी कहते हैं और उत्सव मनाते हैं कि सरदार पटेल ने 500 से अधिक रियासतों को संघ राज्य में मिलाने में मुख्य भूमिका निभाई और सब यह भी कहते हैं कि 15 अगस्त को पूरा देश आजाद हुआ। और कोई स्वयं को पागल भी नहीं मानता। यदि ये रियासतें अंग्रेजों की गुलाम थीं तो इनका हस्तांतरण उसने क्यों नहीं किया? सरदार जी अंग्रेजों से ही ले लेते मांग कर।
कुछ लोग तो यह तक माने हैं कि अंग्रेज चाहें तो कल फिर वापस ले लें सत्ता।
ऊपर से हिन्दुओं के स्वभाव में जिसे देखो वही दोष निकालता नजर आता है और वह दोष मुझमे भी भरा पड़ा है, यह किसी को कहते नहीं सुना स्वयं के लिए। पर हर एक के पास देश के लिए सुझाव भी हैं। जो दोष वे स्वभाव बताते हैं, उसे ही जड़ मूल से समाप्त भी करना चाहते हैं और इस सब विचित्र विक्षिप्त दशा को सब सामान्य भी समझते हैं? इसका कारण वही चोर, ठग और सेंधमार है जिस पर संक्षिप्त चर्चा आगे होगी।
भारत महान था, यह कम से कम सभी हिन्दू तो मानते ही हैं। जो नहीं मानते, वे संयोग से हिन्दू हैं, वे वस्तुत: एक नयी बिरादरी के हैं जो स्वयम् को इंसान कहती है। बिना यह देखे कि ऐसी निरर्थक बात बोलकर अन्यों को कमतर इंसान कहना दंडनीय अपराध है जो ये सब इंसानवादी अर्थात् मानवतावादी अजब उन्माद में इतराते हुए करते ही रहते हैं।
तो भारत जब महान था, तब भी क्या उसमे ये ही दोष थे? अगर नहीं तो फिर आप हिन्दू ऐसे हैं, वैसे ही हैं, यह सब कैसे कहते हैं। जो आपकी नजर में पहले नहीं थे, अब हैं तो उसका कोई समय बोलिए कि इस समय से यह दोष आया है।
आप नित्य अनुभव करते हैं कि सरकार जब चाहे, जिसे चाहे संपत्तिच्युत कर देती है या कर सकती है, जो वह चाहती है, वही आपके बच्चे पढेंगे, जो पुस्तक नहीं चाहेगी कि लोग पढ़ें, उसे प्रतिबंधित कर देगी, जो चाहेगी कानून बना देगी, जो चाहेगी, विभाग खोल देगी या उसमे भरती की जगहें निकलेगी या भरती बंद करेगी।
प्रत्याशी वोट प्रतिशत से चुना जाये या फिर पार्टी के प्रतिनिधित्व का औसत देखकर पार्टी को अधिकार दे दिया जाये कि सर्वोत्तम को नियुक्त करे, यह सब शासकों के हाथ में है। आप जानते ही होंगे, नहीं जानते तो क्यों देश की चिंता में दुबले होते हैं, पहले तथ्य तो जान लीजिये।
संविधान में पार्टी या दल का कोई प्रावधान नहीं है फिर भी उनके प्रिय केंद्र लन्दन में और प्रिय देश इंग्लैंड में पार्टियाँ थीं, शासकों ने चाहा तो लागु कर दिया न? संविधान को पूछा? और फिर भी आप शासकों पर ध्यान न केन्द्रित कर संविधान की माला जपते हैं क्योंकि शासक संविधान-संविधान बोलते हैं।
मूल संविधान में संपत्ति का अधिकार मौलिक अधिकार था, उसे शासकों ने छीन लिया और आप संविधान रटे जाते हैं क्योंकि शासक कहता है।
इंग्लैंड आदि में पार्टी व्यवस्था थी पर विचारधारा की लड़ाई जैसा शब्द नहीं था और जिन कम्युनिस्टों ने यह शब्द उछाला, वहां पार्टी व्यवस्था नहीं थी और शासकों ने यहाँ दोनों का मिश्रण बना दिया जिसे आप सब जपते हैं या आनंद लेते हैं, जो भी कहें।
भारत में यूरोपीय देशों जैसी पार्टी व्यवस्था भी रखी और कम्युनिस्टों जैसी विचारधारा नामक लफंगई भी की और सबने सोत्साह अपनाया। क्या इसमें कहीं आपको कुछ दिख रहा है?
यह सूची बेहद लम्बी होती जाएगी जिससे आप उब जायेंगे। अत: यहीं फि़लहाल रोकते हैं। अब इन तथ्यों पर मनन कीजिये।
हिन्दू समाज की गठरी में जो चोर लगा है, वह है वर्तमान राज्य का विकृत ढांचा। यह ठग भी है, सेंधमार भी।
आपमें से अच्छे लोग इससे बड़ी प्रीति रखते हैं जबकि देश को यही खोखला कर रहा है।
प्रीति का कारण यह है कि शासन ने एक झटके में शिक्षा और संचार पर पूर्ण नियंत्रण ले लिया। प्रबुद्ध जन, व्यक्ति देखते रह गए। राज्य के स्वरुप को, संरचना के अर्थ और निहितार्थ को न समझना, अपनी शक्ति भी न समझना और अपना प्रमाद भी न समझना।
मित्रो, वह सिलसिला जारी है, अटल जी प्रधानमंत्री बने तो हिंदुत्व का एजेंडा छोड़ दिया और सरसंघचालक सहित समस्त संघ की बात काट दी, लाज ढंकने के लिए यह छिपाए रखा गया। नरेंद्र मोदी भी अपने हैं और इनके भक्त तो नेहरु जी से भी ज्यादा हैं और इनमे भक्ति भी बहुत ज्यादा है।
पर जो विशाल राज्य सौंपा है, उसकी सामथ्र्य तो समझिये बंधू। कब तक ऐसे स्वयं ही सफाई आप उनकी और से देते रहेंगे, जैसे महा प्रतापी एक तेजस्वी राजपुरुष नहीं गया है कोई मुन्ना राजा बैठा है जाके गद्दी पर।
अरे, यह वही गद्दी है जिस पर बैठ कर नेहरु जी ने और फिर उनके वंश ने संविधान को उलट दिया, अंग्रेजी को लाद दिया, हिन्दू धर्म की जड़ें खोद दीं, जातिवाद अपूर्व रूप में बढाया और जाति नाश की बकवास चलाते रहकर छल के साथ जातिवाद फैलाया, संपत्ति का मौलिक अधिकार छीन लिया, बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर संपत्ति का सरकारीकरण करने की दिशा में निर्णायक कदम उठाये और मोदी भी उसका लाभ ले रहे हैं।
यह वही गद्दी है जिस पर बैठ कर भारतीय राजाओं के राज्य छीने, फिर प्रिवी पर्स छीना, मैं किसी बात के पक्ष-विपक्ष में नहीं बोल रहा। अभी केवल गद्दी की ताकत बता रहा हूँ।
यह वही गद्दी है जिस पर बैठ कर इंदिरा गाँधी ने जयपुर का खजाना लूट लिया और कोई कुछ नहीं कर पाया और जिसके एक राज्य के मुख्यमंत्री ने बस्तर नरेश के परिवार का सब कुछ छीन लिया और गोलियों से कईयों को भून दिया।
यह वही गद्दी है, जिसके अधीन प्रान्त के मुख्यमंत्री ने उत्तराखंड की बहनों के साथ दुष्कर्म करवाया और सैनिकों की वह वीर भूमि आज तक अपराधी का कुछ बिगाड़ नहीं सकी।
यह वही गद्दी है जिस पर बैठ कर नरेन्द्र मोदी ने रातो रात नोट बंदी कर दी।
आप इस गद्दी की ताकत को किससे छिपाते हैं और क्यों? क्योंकि शिक्षा और संचार माध्यमों से आपका मन और बुद्धि बनते हैं।
राज्य के पास बहुत शक्ति है, होती है, होनी चाहिए।
जिन समस्याओं पर रात दिन विलाप प्रायोजित है, वे समस्याएं राज्य के लिए सरलता से समाधान के योग्य हैं : धर्मांतरण, हिन्दूद्वेष, हिंदुत्व के विरुद्ध विषवमन, जम्मू में हिन्दुओं की घेरेबंदी, कश्मीर से पंडितों का वंशनाश का घिनौना आयोजन। यह सब रोकना राज्य के लिए बहुत सरल है।
पर हम राज्य से कुछ अपने लिए मांगते नहीं, दबाव नहीं बनाते, इस काम में बुद्धि नहीं लगाते कि यह सब चल कैसे रहा है? भारत का राज्य भारतीयता का विरोधी कैसे बना हुआ है? राज्य पर दबाव डालने का सारा जिम्मा हमने कम्युनिस्टों, अलगाववादियों, मजहबी आतंकियों और हिन्दूद्रोही मिशनरियों के हाथ सौंप दिया है और हम देशभक्ति समझ कर राज्य की सफाई देने में जुटे हैं।
संसार में भी और देश में भी विशेषज्ञ ही मूल विषय पर विशेष ध्यान देते हैं।
राज्य का स्वरुप क्या है, क्यों है, इस पर अलग अलग समूह अलग अलग विचार करते हैं। कम्युनिस्टों, सोशलिस्ट ने किया। उन्हें आसानी रही क्योंकि बाहर जो बने बनाये ढांचे थे, उसी को ले लिया।
हिन्दुओं में राजाओं ने इसकी अधिक चर्चा की भी हो तो यह सार्वजानिक नहीं हुयी, एकांत में हुयी होगी, सार्वजानिक तो उक्त समूहों की ही हुयी। कांग्रेस की सोशलिस्ट धारा ही मुखर थी और आज भी है। नेहरु उसके ही अगुआ थे।
हिंदुत्वनिष्ठ हिन्दुओं को ही यहाँ मैं हिन्दू कह रहा हूँ, शेष अन्य हैं।
हिंदुत्वनिष्ठ हिन्दुओं में चर्चा हो, इसके पूर्व दमन शुरू हो गया, नेहरु ब्रिगेड टूट पड़ी। सावरकर जी ने पहले बहुत किया था, बाद में नहीं कर सके, स्थिति नयी थी।
हिन्दू भावुक हो गए, क्योंकि दंगे सर पर थे तो लगा, चलो इतना शेष हिस्सा ही सही, अब यह तो हमारा है।
तो राज्य कैसे चलाना है, इस पर चिंतन अंग्रेजों और रूसियों दोनों से सलाह कर नेहरु मंडली कर रही थी और अन्य जन क्या सोचें, उन्हें क्या सुझाया जाये, यह भी वे ही तय कर रहे थे।
हिन्दुओं में न तो एक भी सशस्त्र समूह बचा, न राजनय विशेषज्ञ। तो मानो सारे हिंदुत्वनिष्ठ हिन्दू केवल जन गण हो गए। सामान्य व्यक्ति, शासकों के भक्त, कभी कभी असंतुष्ट बस। कोई अभिजन वर्ग उदित ही नहीं हुआ आज तक।
हिन्दुओं का एक भी उच्च विद्या केंद्र नहीं है आज तक। महामना ने जो बनवाया था, उसका अपहरण नेहरू मण्डली ने युक्ति से कर लिया और उसे राष्ट्रीय कहकर अहिंदू बना दिया,कहाँ राष्ट्र को हिन्दू होना था, कहाँ हिन्दू विश्वविद्यालय भी अहिंदू हो गया राष्ट्रीय कहकर।
इन सबका परिणाम हुआ कि गाँधी जी को हिंदुत्व का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि, नेहरुजी को गाँधी जी का सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि, समाजवाद की सेवा में विनोबा जी। एक ओर सरकारी प्रचार में लगे सुविधाप्राप्त सोशलिस्ट आत्मा वाले तथाकथित गांधीवादी आदि और दूसरी ओर समाजवादी सरकार की बंधुआ बना दी गयी कांग्रेस पार्टी नेहरु जी की सेवा मे समर्पित हो गई और तीसरी ओर नेहरु के ही चेले सोशलिस्ट मुख्य विपक्षी बन गए। चौथी ओर भारत को सैन्य बल में अतिनिर्बल और पराश्रित बनाए रखने की सोवियत संघ की योजना से चलाया जा रहा पाखंडी शांतिवाद और पांचवीं ओर जो नेहरु कहें, उसे ब्रह्म वाक्य मान फिर उनकी ही पदावली में उनका विरोध कर उनकी दावेदारी को पुष्ट कर रहे (उन्हें शांतिवादी आदि मान रहे, गांधीजी को अहिंसा के पुजारी मान रहे आदि) निरीह बुद्धि हिंदुत्वनिष्ठ।
हो गया सब चकाचक, निष्कंटक राज्य भोग का पक्का प्रबंध। ब्राह्मणों की जड़ों में मठा डाल रहे ब्राह्मण नेता बने पंडित जी की गद्दी पूर्ण सुरक्षित। हटे भी तो सोशलिस्ट चेले गद्दी में आयेंगे या सशस्त्र क्रांति की तैयारी की सुविधा और संसाधन जिन्हें सुलभ कराया जा रहा है और विश्वविद्यालयों से जिनका प्रशिक्षण किया जा रहा है ऐसे कम्युनिस्ट समूह।
हिंदुत्वविरोधियो के पास शिक्षा तंत्र है, राज्य तंत्र है, विद्वत समूह है।
हिंदुत्वनिष्ठ सोचते हैं कि हमारे पास संख्या बल है। उधर बोले जायेंगे : स्वयमेव मृगेन्द्रता आदि, इधर राज्य तंत्र पर नियंत्रण की कोई मृगेन्द्रता दूर दूर तक नहीं। अगर किसी सिंह को अपने जंगल का ही परिचय तक न हो, अजनबी जगह में या पानी और दलदली इलाके में छोड़ दिया जाये और उसे मतिभ्रम हो जाये कि यही जंगल है, तब क्या होगा?
देश पर एक विचारविशेष का पूर्ण नियंत्रण रखने का पक्का बंदोबस्त जो नेहरु मण्डली ने किया और राज्य तंत्र को उस तरह विभक्त किया जिसमे सारा काम अफसरों के जरिये होता रहे और जनता वोट डालकर स्वयम् को मालिक कहती रहे औए लाठी डंडे गोलियां खाती रहे और बौखलाई हमारी ही शरण में आती जाये। उस तंत्र की प्रकृति समझने वाला एक भी उच्च विद्या केंद्र हिंदुत्व निष्ठों का विगत 70 वर्षों में नहीं बना है।
अगर नारे में जीना है तो समाजवाद बोलें या परम वैभव की प्राप्ति बोलें, दोनों का वास्तविक और तात्विक अंतर कितनों को याद रहेगा? परम वैभव यानी क्या? उसका राज्य कैसा होगा, उस राज्य का समाज से सम्बन्ध कैसा होगा? समाज की इकाइयाँ क्या होंगी, पुरानी इकाइयाँ क्यों और कैसे तोड़ी गयी हैं और वर्तमान में उनकी विधिक, नैतिक और राजनैतिक स्थिति क्या है, उसे कैसे, कौन बदलेगा, चरणबद्ध योजना क्या होगी, कार्यक्रम क्या होंगे, उनके वाहक कौन होंगे, अभी के शक्ति प्राप्त की उसमे भूमिका कैसी संभावित है, कितना सह्योग मिलेगा और कैसे, जो विरोध होगा, उसका शमन कैसे करोगे, क्या जैसे नेहरु ने हिन्दू महासभा और आरएसएस को किया वैसे या अन्य कोई सुंदर साम दंड भेद आदि की नीति होगी, आपके सहायक कौन होंगे, बाधक कितने प्रकार के होंगे, किस से क्या व्यवहार करोगे आदि आदि सोचे बिना सब हो जायेगा? हो जाए तो तेरा क्या कहना?
ये सब चिंतन, योजना विस्तारपूर्वक रचना और व्यवहार की नीति बनाना, ये सब कौन करेगा? प्रधानमंत्री या पार्टी अध्यक्ष और महासचिव? उनके जीवन में इतना अवकाश है? या अभी के ही केन्द्रों में उत्साहपूर्वक पढाकर वहां स्वयं के संघ वाला होकर रौब मात्र झाड़ रहे पर कोई विस्तृत गहन ग्रन्थ आदि न लिख सकने वाले मास्टर जी लोग? कौन?
या प्रधानमंत्री जी किसी वर्तमान या सेवानिवृत्त अफसर से कह देंगे भाई जरा ये बना दो और वह बना देगा? वह यंत्र है? उसके कोई विचार अभी नहीं है? शास्त्र में ज्ञान और संस्कार का जो वर्णन है उसमे भी आपकी निष्ठा नहीं? और विज्ञान में मानव स्वभाव पर इतना विशद शोध हो चुका है, उसमे भी आपकी निष्ठा नहीं? आप परम वैभवशाली हिन्दू राष्ट्र बना डालेंगे?
अगर ऐसे परम वैभव शाली हिन्दू राष्ट्र आप बनाने वाले है तो वह केवल चूं चूं का मुरब्बा होगा जिसे आप गर्व से हिन्दू राष्ट्र कहेंगे, पर दुनिया कहेगी : बादशाह नंगा है पर चुप रहो।