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भारतीय संस्कृति

ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा क्या है ? – क्या कहते हैं सभी मत और पंथ ?

ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा क्या है ?
ईसाई – पाप क्षमा करना |
मुसलमान – जन्नत और हूरें प्रदान करना |
पौराणिक हिन्दू – अवतार लेकर अपने भक्तों का दुःख दूर करना |
वैदिक धर्मी – पुरुषार्थ के लिए, बुद्धि प्रदान करना |
ईश्वर हमारे ऊपर अनेक उपकार करते हैं । और विभिन्न विभिन्न मत मतान्तर अपनी अपनी मान्यता के अनुसार ईश्वर की कृपा का होना मानते हैं । वैसे तो सत्कर्म करने के लिए मनुष्य रूपी शरीर प्रदान करना ही ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है । हम ईश्वर की कृपा का तुलनात्मक अध्ययन करेंगे।


एक ईसाई के लिए ईश्वर द्वारा पाप का क्षमा करना ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है । ईसाई मान्यता के अनुसार जन्म से सभी पापी हैं, क्योंकि हव्वा (eve) ने ईश्वर की आज्ञा का उल्लंघन किया था एवं वह पापी ठहराई गई थी । जन्म से सभी का पापी होना कल्पना मात्र है ।
मान लीजिये किसी के पिता ने चोरी का अपराध किया हो, तो क्या उसकी सजा उसके पुत्र को यह कह कर देगें कि, उसके पिता ने चोरी रूपी पाप किया था, इसलिए वह भी पापी है ? कदापि नहीं, इसलिए ईसाई मत में पहले निरपराधी को पापी बनाना एवं बाद में पाप क्षमा होने के लिए ईसा मसीह का सूली पर चढ़ना कल्पना प्रतीत होता है । जिस प्रकार से भोजन कोई अन्य करे और पेट किसी अन्य का भरे यह संभव नहीं हैं, उसी प्रकार ईसा मसीह द्वारा सूली पर चढ़ने से मनुष्यों के पापों का क्षमा होना भी संभव नहीं है । जो जैसा करेगा वो वैसा भरेगा, कर्म फल का अटल सिद्धांत व्यवहारिक एवं तर्कसंगत है । इसलिए पाप क्षमा होने को ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा के रूप में मानना संभव नहीं है ।
एक मुसलमान के लिए जन्नत की प्राप्ति एवं हूरों का भोग ईश्वर या अल्लाह की सबसे बड़ी कृपा है ।
इस्लामिक मान्यता के अनुसार सुन्दर सुन्दर बीवियाँ, खूबसूरत लौंडे, शराब की नदियाँ, मीठे पानी के चश्में आदि को मनुष्य जीवन का लक्ष्य मानना ऐसा प्रतीत होता है, जैसे अरब की तपती रेत, खारे पानी और निष्ठुर रेतीली धरती से तंग आकर कोई स्वप्न में भोग की कल्पना करता हो ।
निश्चित रूप से संसार का कोई भी बुद्धिजीवी व्यक्ति जन्नत रूपी भोगलोक को मनुष्य जीवन का अंतिम उद्देश्य स्वीकार नहीं कर सकता है । अगर ऐसा होता तो विश्व में, वर्तमान में अनेक सऊदी शेख से लेकर, पूर्वकाल में इस्लमिक आक्रान्ताओं से लेकर, अनेक नवाब ऐसे हुए हैं, जिनके पास उनके निजी हरम में भोग के लिए हज़ारों लड़कियाँ थी और भोग का सभी सामाग्री भी विद्यमान था । क्या इसका यह तात्पर्य निकाले कि उन्होंने मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य और ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा को प्राप्त कर लिया था ?
ऐसा संभव नहीं है, क्योंकि हरम के मालिक होते हुए भी उनकी मृत्यु अनेक कष्टों को भोगते हुए हुई थी । आज संसार में बढ़ रही मज़हबी कट्टरता एवं आतंकवाद इसी जन्नत के ख़्वाब को पूरा करने की कवायद है, जिसके कारण सम्पूर्ण विश्व की शांति भंग हो गई है । यह कार्य विश्व शांति के लिए सबसे बड़ा खतरा का उद्देश्य कदापि नहीं हो सकता है ।
इसलिए जन्नत और हूरों को ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा के रूप में मानना संभव ही नहीं है |
एक पौराणिक हिन्दू के लिए ईश्वर का अवतार होना एवं उन अवतार द्वारा उसके जीवन के समस्त दुखों, समस्त कष्टों का दूर हो जाना एवं इस पृथ्वी लोक से मुक्ति प्राप्त कर उस अवतार के सम्बंधित लोक जैसे विष्णु जी के क्षीरसागर, शिव जी के कैलाश लोक, कृष्ण जी के गोलोक आदि में सदा सदा के लिए उनकी कृपा में प्रतिष्ठित हो जाना ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा है । इस कृपा के लिए कर्म से अधिक विश्वास की महता हैं। तीर्थ यात्रा करना, दान आदि देना, कथा आदि सुनना, विभिन्न कर्मकांड करने मात्र से ईश्वर की कृपा होना पौराणिक हिन्दू समाज में मान्य है । कुल मिलाकर यह सोच अकर्मयता, आलस्य, सीमित सोच आदि का बोधक है, क्योंकि इस सोच से प्रभावित व्यक्ति देश, जाति और धर्म की सेवा से अर्थात लोकसेवा से अधिक परलोक की चिंता करता है |
भारतीय समाज का पिछले १२०० वर्ष का इतिहास इसी अकर्मयता का साक्षात उदहारण मात्र है, जब उस पर विदेशियों ने आक्रमण किया तब वह संगठित होकर उनका सामना करने के स्थान पर परलोक की चिंता में लीन रहा ।
पौराणिक विचारधारा में प्रारब्ध अर्थात भाग्य को पुरुषार्थ से बड़ा माना गया और यही भारतियों की दुर्गति का कारण बना और आगे भी बनता रहेगा ।
इसलिए ईश्वर का अवतार लेना एवं दुःखों का दूर होना ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा के रूप में मानना संभव नहीं है ।
एक वैदिक धर्मी के लिए बुद्धि को ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा माना गया है । इसीलिए गायत्री मंत्र में ईश्वर से बुद्धि को श्रेष्ठ मार्ग पर चलाने की प्रार्थना की गई है ।
बुद्धि के बल पर मनुष्य पुरुषार्थ रूपी श्रेष्ठ कर्मों को करते हुए, धर्म के दस लक्षण अर्थात धैर्य, क्षमा, मन को प्राकृतिक प्रलोभनों में फंसने से रोकना, चोरी त्याग, शौच, इन्द्रिय निग्रह,ज्ञान, विद्या सत्य और अक्रोध आदि का पालन करते हुए अभ्युदय (लोकोन्नति) और निश्रेयस (मोक्ष) की सिद्धि होती है ।
वैदिक विचारधारा में न केवल देश, धर्म और जाति के कल्याण के लिए पुरुषार्थ करने का सन्देश दिया गया है, अपितु ईश्वर की भक्ति, वेदादि शास्त्रों के ज्ञान एवं पुण्य कर्मों को करते हुए सामाजिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक उन्नति करने का सन्देश भी दिया गया है । वैदिक विचारधारा में पुरुषार्थ को प्रारब्ध अर्थात भाग्य से बड़ा माना गया हैं।
इसी कारण, पुरुषार्थ को करने के लिए, ईश्वर को बुद्धि प्रदान करने की प्रार्थना वेद में अनेक मन्त्रों में की गई है ।
ईश्वर की सबसे बड़ी कृपा मनुष्य को बुद्धि प्रदान करना तर्क एवं युक्ति संगत है ।
……. डॉ विवेक आर्य |

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