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भारतीय संस्कृति हमारे क्रांतिकारी / महापुरुष

भारत की मूल चेतना में बसे राम भारत के प्राण हैं

डॉ0 राकेश राणा

  1. (असिस्टेंट प्रोफेसर : समाजशास्त्र )

राम का अतीत इतना व्यापक और विस्तारित है कि उस पर समझ और संज्ञान की सीमाएं है। उन्हें चिन्हित करना भी बहुत दुरुह कार्य है। भारतीय समाज में राम उस वटवृक्ष की तरह है जिसकी छत्रछाया में भक्त, आलोचक, आम, खास, आरोधक, विरोधक सबके सब साथ-साथ न जाने कितने सालो से चले आ रहे है। ‘राम’ भारतीय चिंतन परंपरा का सबसे चहेता नाम है। वह निर्गुणों का, सगुणों का सबका समान रुप से चहेता है। ब्रह्मवादी उनमें ब्रह्म स्वरुप देखते है। निर्गुणवादीयों की आत्मा के राम है। अवतारवादियों के अवतार है। वैदिक साहित्य में उनका विचित्र रूप है। बौद्ध कथाएं उनके करुणा रूप से कसी हुई है। बाल्मीकि के राम कितने निरपेक्ष है। तुलसी के राम भारतीय जनमानस में बसे राम है। सबके घट-घट में बसे राम है। वह भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एक सूत्र में पिरो देते है। सम्मान का सम्बोधन भी ’राम-राम’ हो जाता है। सम्पूर्ण उत्तर भारत तो जैसे राममय हो गया। हर घर का बड़ा बेटा राम हो जाता है जो आज्ञाकारी है, त्यागी है। आदर्श शासक राम सरीखा नजर आता है। यहां तक कि रामराज्य आदर्श व्यवस्थाओं के आग्रह का आवशयक आधार बन जाता है। एक सौम्य पति तक राम बन जाते है।

राम भारतीय परम्परा का अभिन्न हिस्सा है। तुलसी के राम मर्यादा पुरुषोत्तम हैं और बाल्मीकी के राम मानवीय भावनाओं से ओत-प्रोत संतुलित राम हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम, राम ने अपने जीवन में एक-एक मर्यादा की पालना की थी और विश्व के सामने एक आदर्श रखा था। पुत्र, भाई, पिता, पति, राजा, मित्र आदि तमाम स्वरूपों में मानवीय भावनाओं के संतुलित रूप राम सिर्फ भारत में आदर्श रूप में नहीं देखे जाते हैं। वरन पूरे विश्व के लिए इस आदर्श रूप में अनुकरणीय है राम।

भारत की हर एक भाषा में रामकथाएं हैं। भारत के बाहर फिलीपाईन्स, थाईलैंड, लाओस, मंगोलिया, साईबीरिया, मलेशिया, म्यांमार, स्याम, इंडोनेशिया, जावा, सुमात्रा, कम्बोडिया, चीन, कपान, श्रीलंका, वियतनाम सभी में भी रामकथा मौजूद है। इससे पता चलता है कि यदि राम केवल राजा होते, न्यायी होते, सदाचारी होते, धर्म प्रवर्तक होते तो शायद उनकी स्मृति भी आज क्षीण हो चुकी होती और वह इतिहास बनकर बन गए होते। राम इतिहास नहीं हैं वह तो हर पल वर्तमान हैं। कोई अपना धर्म पंथ न चलाते हुए भी धर्म का आदि-अंत बने हुए हैं। स्थूल रूप में अपने युग में नर-लीला करते हुए भी अतीत नहीं हुए वर्तमान हैं। विदेश में रामकथा का प्रसार बौद्धों द्वारा भी हुआ। अनामकं जातकम् और दशरथ कथानकम् का चीनी भाषा में अनुवाद हुआ और तिब्बतीरामायण की रचना हुई। खोतानी रामायण पूर्वी तुर्किस्तान से संबद्ध है। कंबोडिया में राम केति तथा ब्रह्मदेश में यों तो ने राम यागन की रचना की। जो उस देश का महत्वपूर्ण काव्यग्रंथ माना जाता है।

राम तो हमेशा से एक समृद्ध आध्यात्मिक और मुक्तिकारी जीवन-दर्शन का प्रतीक रहे है। भारत की हर नई पीढ़ी राम और रहीम की साझी परम्पराओं के सामाजिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक संदर्भ को समझती रही है। यही हमारी शक्ति भी है। हमारी सामाजिक-राजनीतिक परम्पराओं के समावेशी चरित्र को बनाने में राम की अद्वितीय भूमिका है। राम भारत के जीवन में समाएं हुए है। हिन्दू राम को अपनी उस आध्यात्मिक शक्ति का प्रकाश पुंज मानते है जिसके सहारे वह हर क्षेत्र में रामराज्य की स्थापना के व्यवहारिक और अभिनव प्रयोग करते दिखते है। हर भारतवासी की राम में अगाध श्रद्धा है। राम भारतीय जीवन को शुरु से अंत तक अजस्र शक्ति स्रोत के रुप में उर्जित करते है। राम उस उर्जा स्रोत की तरह भारतीय अस्तित्व मे समाये हुए है कि जो इस समाज को बार-बार संभालता है। यहां घट-घट में राम बसते है।

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