इमरान खान का बेतुका वक्तव्य

 


डॉ. वेदप्रताप वैदिक

एक तरफ दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम ने कुछ दिनों के लिए मस्जिद बंद कर दी, इसके बावजूद कि सरकार ने सारे पूजा-स्थल खोल दिए हैं और दूसरी तरफ हमारे पड़ौसी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने भारत को सुझाव दिया है कि वह कोरोना से कैसे लड़े। इमरान खान ने नरेंद्र मोदी को सीख दी है कि वे भारत के जरुरतमंदों को वैसे ही नक़द रुपए बांटें, जैसे कि वे बांट रहे हैं। इमरान के बयान से यह ध्वनि भी निकल रही है कि पाकिस्तान इस मामले में भारत की मदद भी कर सकता है। जामा मस्जिद के इमाम बुखारी और इमरान खान, दोनों ही मुसलमान हैं। इमाम बुखारी एक उत्तम मुसलमान का धर्म निभा रहे हैं। वे भारत और पड़ौसी देशों के सभी इमामों, पंडितों, पादरियों और ग्रंथियों के लिए आदर्श उपस्थित कर रहे हैं जबकि इमरान की पहल का कुछ और ही मतलब निकल रहा है। इमरान ने यदि पाकिस्तान के एक करोड़ परिवारों को 12000 करोड़ रु. सीधे पहुंचवा दिए तो यह उन्होंने अच्छा किया। लेकिन इमरान के कहने में व्यंग्य की झलक ज्यादा है। पहली बात तो यह है कि इस वक्त भारत और पाकिस्तान के रिश्तों की जो हालत है, उसमें इस तरह के सुझावों की कोई गुंजाइश न इधर से है और न ही उधर से है। दूसरी बात यह कि 12000 करोड़ रु. क्या हैं ? कुछ भी नहीं। एक करोड़ परिवारों को 12000 करोड़ मतलब एक परिवार को 12000 रु. याने प्रति व्यक्ति 2000 या 2500 रुपए ! भारत सरकार ने 80 करोड़ लोगों को मुफ्त अनाज बांट दिया है, राज्य सरकारें भी दवाइयां और अनाज बांट रही हैं। मनरेगा के तहत लगभग 70 हजार करोड़ रु. का रोजगार भी लोगों को दिया जा रहा है। जो 20 लाख करोड़ रु. की राहत का भारत सरकार ने एलान किया है, वह पाकिस्तान की जीडीपी (सकल उत्पाद) से भी ज्यादा है। उसकी कुल जीडीपी का 90 प्रतिशत हिस्सा तो विदेशी कर्ज का है। दुनिया की अर्थ-व्यवस्थाओं में भारत का स्थान 5 वां है जबकि पाकिस्तान का 39 वां है। पाकिस्तान विदेशी कर्जों के बोझ के नीचे दबा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थाएं उस पर दबाव बना रही हैं। इमरान खान जैसे आदमी को प्रधानमंत्री बनते ही झोली फैलाकर सउदी अरब और दुबई के आगे गिड़गिड़ाना पड़ा है। उन्होंने पाकिस्तान में पानी की कमी को दूर करने और बांध बनाने के लिए विदेशों में बसे पाकिस्तानियों से दान मांगने में भी संकोच नहीं किया था। यदि सचमुच इमरानजी के इरादे नेक हैं तो उन्हें चाहिए था कि वे मोदी को फोन करते और यह सुझाव देते। और मुसीबत की इस घड़ी में पाकिस्तान के लिए भी मदद मांगते लेकिन इस बयान पर भारत के विदेश मंत्रालय को तीखा व्यंग्यात्मक बयान जारी करना पड़ा है।

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