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पर्यावरण

वृक्षारोपण , जल संरक्षण , तालाब पर भीष्म पितामह के उपदेश

न च मे प्रतिभा काचिदस्ति किञजित्प्रभाषितुम्|
पीडय्मान्स्य गोविन्द विषानलसमै: शरै: ||( महाभारत शांति पर्व)

आरामाणा तडागाना यत् फलं कुरुपुङव|
तदहं ऋष्तुमिच्छामि त्वतोघ भरतषृभ|| (महाभारत अनुशासन पर्व)

महाभारत के भीषण महा संग्राम में युद्ध के दसवें दिन 100 से अधिक बाण खाकर (भीष्म पर्व में तीरों की संख्या ,तीरों के प्रकार का उल्लेख है) भीष्म सरसैया पर लेट गए उनके शरीर में दो अंगुल स्थान भी शेष नहीं बचा जो बाणों से मुक्त हो| 18 दिन के क्षत्रिय संहारक आर्य वैदिक सभ्यता नाशक युद्ध के समाप्त होने पर युद्ध अपराध बोध से ग्रस्त महाशोक में डूबे हुए धर्मराज युधिष्ठिर श्री कृष्ण अपने भाइयों कृपाचार्य सहित विशाल रथ पर सवार होकर पुनः कुरुक्षेत्र की युद्ध भूमि में जाते हैं… वे सब लोग केश रक्त मजा हड्डियों से भरे हुए कुरुक्षेत्र में उतरे जहां महामनस्वी क्षत्रियों ने अपने शरीर का त्याग किया|

वहां उन्होंने देखा कि भीष्म जी सरसैया पर सो रहे हैं और अपने तेज की किरणों से घिरे हुए सांय कालीन सूर्य की भांति देदीप्यमान हो रहे हैं जैसे देवता इंद्र की उपासना करते हैं वैसे ही बहुत से ऋषि ओघवती नदी( यह कोई महाभारत कालीन नदी है जो कुरुक्षेत्र से होकर बहती थी अब सरस्वती नदी की तरह लुप्त हो गई है )के किनारे परम धर्मय स्थान में उनके समीप बैठे हुए थे |

श्री कृष्ण सत्यकि एवं अन्य राजाओं ने व्यास आदि महर्षि को प्रणाम करके , गंगा नंदन भीष्म को मस्तक झुकाया | सभी यदुवंशी व कुरु वंशी वृद्ध गंगा नंदन भीष्म जी का दर्शन करके उन्हें चारों ओर से घेरकर बैठ गए |

श्री कृष्ण मन ही मन दुखी होकर अग्नि के समान दिखाई देने वाले गंदा नंदन भीष्म को सुना कर इस प्रकार कहा…… वक्ताओं में श्रेष्ठ भीष्म जी क्या आप की संपूर्ण ज्ञानेंद्रिय पहले की भांति प्रसन्न है? आपकी बुद्धि व्याकुल तो नहीं हुई है?

आपको बाणों की चोट सहने का जो कष्ट उठाना पड़ा उससे आपके शरीर में विशेष कष्ट तो नहीं हो रहा है क्योंकि मानसिक दुख से शारिक दुख अधिक प्रबल होता है उसे सहन करना कठिन हो जाता है|

श्री कृष्ण कहते हैं हे! मृत्युंजय यदि शरीर में कोई अत्यंत छोटा सा कांटा गड़ जाए तो वह भी भारी वेदना उत्पन्न कर देता है फिर जो बाण समूह से पाट दिया गया है उस आपके शरीर की पीड़ा के विषय में तो कहना ही क्या है?

श्री कृष्ण कहते हैं हे !नरकेसरी आप ज्ञान में सबसे बड़े चढ़े हैं | आपकी बुद्धि में भूत भविष्य और वर्तमान सभी कुछ प्रतिष्ठित है| सत्य तप दान और यज्ञ के अनुष्ठान में वेद धनुर्वेद नीतिशास्त्र के ज्ञान में लोक प्रशासन में इंद्रियों की पवित्रता समस्त प्राणियों के हित साधन में आपके समान मैंने दूसरे किसी महारथी को नहीं सुना |

मनुजेंद्र मनुष्यों में आपके सामान गुणों से युक्त पुरुष इस पृथ्वी पर ना तो मैंने कहीं देखा है और ना सुना ही है अतः भीष्म जी मैं आपसे यह निवेदन करता हूं कि जेष्ठ पांडव अपने कुटुंब जनों के वध से बहुत संतप्त हो रहे हैं आप इन के शोक को दूर करें संसार में जितने भी संदेह ग्रस्त विषय हैं उनका समाधान करने वाले आपको छोड़कर और कोई नहीं है |

( देखिए कितना उज्जवल पवित्र पावन चरित्र था भीष्म का चरित्र पूरे महाभारत में श्रीकृष्ण के बाद यदि उनका कोई स्थान ले सकता है तो वह गंगा नंदन भीष्म ही थे, दुर्भाग्य देखिए आजकल के ढोंगी बिजनेसमैन कथावाचक ने श्री कृष्ण जैसे योगी महाराज पर माखनचोर वस्त्र चुराने वाले ना जाने क्या-क्या तोहमत लगाई है तो महा तेजस्वी भीष्म की तो बात ही क्या?)

सब बातों को ध्यान से सुन कर भीष्म जवाब देते हैं|

गोविंद! यह बाण विष और अग्नि के समान मुझे पीड़ा दे रहे हैं अतः मुझ में कुछ भी कहने की शक्ति नहीं रह गई फिर भी धर्मात्मा युधिष्ठिर मुझसे एक एक करके विभिन्न विषयों में प्रश्न करें मैं उपदेश दूंगा |

तत्पश्चात चक्रवर्ती सम्राट युधिस्टर ,गंगा नंदन भीष्म के बीच अनेक विषयों पर गहन वार्तालाप हुआ| राजनीति से लेकर विज्ञान अर्थशास्त्र तक परमाणु से लेकर परमात्मा तक ज्ञान का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं बचा जिस पर भीष्म ने उपदेश ना दिया हो युधिष्ठिर की शंकाओं का समाधान न किया हो| यह उपदेश इतना विस्तृत गहन गंभीर है महाभारतकार महर्षि व्यास ने 2 पर्व रचे हैं जो शांति पर्व, अनुशासन पर्व के नाम से जाने जाते हैं | उन विविध विषयों को अन्य लेखों में लिखा जाएगा |

यहां हम केवल भीष्म के उन उपदेशों को लिखते हैं जो उन्होंने पर्यावरण , तालाब ,वृक्षों में जीवन है या नहीं वृक्षारोपण के संबंध में दिए थे|

युधिस्टर पूछते हैं कुल श्रेष्ठ भारत भूषण वृक्षारोपण और जलाशय निर्माण कराने का जो फल होता है वह मैं अब आपके मुखारविंद से सुनना चाहता हूं |

भीष्म जी बोलते हैं हे! राजन तालाब बनवाने से जो लाभ होते हैं मैं उनका वर्णन करता हूं तलाब बनवाने वाला मनुष्य तीनों लोकों में सर्वत्र पूजनीय होता है जिसके खुदवाये हुए जलाशय में सदा सज्जन पुरुष और गाय आदि अन्य जीव जंतु पानी पीते है वह अपने समस्त कुल का उद्धार कर देता है |

जिसके तालाब में प्यासी गाय पानी पीती हैं तथा पशु पक्षी और मनुष्य को भी जल सुलभ होता है वह अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है|

पुरुष सिंह !जल दान सब दानों से महान और बढ़कर अतः जल दान अवश्य करना चाहिए | मैंने तालाब निर्माण कराने के उत्तम फल का वर्णन किया| अब मैं वृक्षारोपण करने का महत्व बतलाता हूं |

स्थावर प्राणी है की 6 जातियां बताई गई है| वृक्ष= बड़ पीपल आदि ,गुल्म =झुंड कुश आदि, लता =वृक्ष पर चढ़ने वाली बेले, त्वक्सार = बांस आदि, वल्ली =पृथ्वी पर फैलने वाली बेले, छटा अंतिम वर्ग तरण= जिसमें घास आदि शामिल है |

( 21वीं सदी के वनस्पति शास्त्री भी आज जितने भी पेड़ पौधे पाए जाते हैं उनका वर्गीकरण इन्हीं 6 वर्गों में करते हैं भीष्म यह 5000 वर्ष पूर्व कर चुके थे)

युधिष्ठिर यह वृक्षों की जातियां हैं इनके लगाने का फल यह है कि वृक्षारोपण करने वाले मनुष्य की इस लोक में कीर्ति होती है और मरने पर भी उसे शुभ फलों की प्राप्ति होती है | जो वृक्ष का दान करता है उसे वे वृक्ष पुत्र की भांति परलोक में तार देते हैं|

अतः अपने कल्याण के इच्छुक मनुष्य को सदा ही उचित है कि वह अपने खोदे गए तालाब के किनारे अच्छे-अच्छे वृक्ष लगाएं और उनका पुत्र के समान पालन करें क्योंकि वह वृक्ष धर्म की दृष्टि से पुत्र ही माने गए हैं जो तालाब खुदवाता है वृक्ष लगाता है यज्ञ का अनुष्ठान करता है और सत्य बोलता है यह सभी स्वर्ग लोक में सम्मिलित होते हैं मनुष्य को चाहिए वह तालाब खोदन कराए बगीचे लगाए भाति भाति के यज्ञों का अनुष्ठान करें और सदा सत्य बोले |

अब आप भली-भांति निष्कर्ष निकाल सकते हैं भारत अतीत में कैसा था ?यहां वृक्षों को भी धर्मपुत्र माना गया है |सोने की चिड़िया कैसे बना यहां मरते हुए भी भीष्म जैसे महारथी भारतवर्ष के भावी चक्रवर्ती सम्राट को उपदेश दे रहे हैं कि वह अपने राष्ट्र में पर्यावरण जीव जंतुओं के कल्याण का भी विशेष ख्याल रखें |

आजकल का जब कोई भूतपूर्व गणमान्य राजनेता मरता है तो पर्यावरण जीव जंतुओं के कल्याण का चिंतन उपदेश तो दूर गरीब मनुष्य कल्याण की भी बात नहीं करता… राजनेता स्वार्थ में जीते हैं महत्वाकांक्षा स्वार्थ को पालते हुए ही मर जाते हैं… अतः आप सभी साथियों से अनुरोध है किसी भी राजनेता की तुलना मृत्युंजय आदित्य ब्रहमचारी गंगा नंदन भीष्म से ना करें यह अपने उस महान पूर्वज का अपमान होगा…|

वृक्षों में जीव चेतना के संबंध में गंगा नंदन भीष्म के विज्ञान सम्मत विचारों को अगले लेख में स्थान दिया जाएगा ,लेख के विस्तारित होने से यहां नहीं लिखा है |

आर्य सागर खारी

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