Categories
भारतीय संस्कृति

प्रणाम अथवा अभिवादन का सही स्वरूप व अर्थ

यद्यपि अभिवादन शब्द का व्याख्यान पूर्ण में किया जा चुका है ,परंतु फिर भी प्रणाम का क्या अर्थ है और प्रणाम का क्या प्रभाव है। इस पर भी विचार करना अलग से आवश्यक है।
मनुष्य अपने बड़ों के पास आने पर या बड़ों के पास से दूसरी जगह प्रस्थान करने से पूर्व उन्हें प्रणाम करता है। उस प्रणाम करने का तात्पर्य होता है कि अपनी मनोकामना को पूर्ण करने के लिए अपने बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करना। आशीर्वाद में बड़ी ताकत होती है । जो संतान प्रारंभ से ही अपने बड़ों का अर्थात माता-पिता , गुरु , बड़े भाई बहन आदि का आशीर्वाद प्राप्त करती रहती है , वह जीवन में सफलता प्राप्त करती हैं । अनेकों कष्ट उससे दूर ही खड़े रह जाते हैं , क्योंकि उसे इन सब का न केवल आशीर्वाद प्राप्त होता है अपितु इन सबका सहयोग , संरक्षण , मार्गदर्शन आदि से उनकी शक्ति भी द्विगुणित हो जाती है । जिसका परिणाम यह निकलता है कि समाज में बहुत से लोग उनका विरोध करने से अपने आप को बचा लेते हैं । माता पिता का आशीर्वाद तो उनके जाने के पश्चात भी एक कवच बनकर हमारी रक्षा करता रहता है । यद्यपि यह ऐसा विषय है कि जो इसकी सच्चाई को जानता है या जिसने ऐसा अनुभव कर लिया होता है , वही जानता है कि माता-पिता और बड़ों के आशीर्वाद में कितनी शक्ति होती है ?
प्रणाम प्रणत शब्द से बना है ।प्रणत का तात्पर्य है कि विनीत होना, नम्र होना। कृतज्ञ होना। विनय शील होना।

प्रणाम की परंपरा भारतवर्ष में प्राचीन रही है। प्रणाम करने वाला व्यक्ति अपने दोनों हाथ जोड़कर अंजलि सीने से सटाकर प्रणाम करता है। वैसे प्राचीन काल में ही गुरु और शिष्य परंपरा में दंडवत प्रणाम करने का भी प्रचलन था ।जिसका तात्पर्य होता है बड़ों के पैरों में लेट जाना, पूर्णत समर्पण कर देना। ऐसा इसलिए किया जाता था कि गुरु के अंदर जो ज्ञान की ऊर्जा शक्ति है वह शिष्य के अंदर ,पैरों के स्पर्श करने से अंतरित हो जाए। लेकिन आज मॉडर्न जमाना है । हम गुड मॉर्निंग करते हैं। जिसका कोई तात्पर्य हमारे सभ्यता संस्कृति से नहीं है बल्कि गुड मॉर्निंग का तात्पर्य है कि आज की सुबह अच्छी ।यह गुड मॉर्निंग उन देशों के लिए होती है जहां पर सर्दी का प्रभाव अधिक होता है और सूर्य के दर्शन बहुत कम होते हैं ।जिस दिन सुबह से सूर्य दिखाई देना आरम्भ हो जाए उस दिन जब लोग एक दूसरे से मिलते हैं तो गुड मॉर्निंग कहते हैं ,तो इसका तात्पर्य हुआ कि यह भारतीय परंपरा नहीं है। लेकिन हां , यह हमने अंगीकार जरूर की है। यही हमारे लिए कोढ़ बन गया है। जो हमारे परिवारों को हमारे राष्ट्रीय संस्कारों को खा रहा है।
भारतीय परंपरा में हम एक दूसरे को अभिवादन करते हैं तो दोनों हाथों को जोड़कर उन्हें सीने के सामने लाकर शीश झुका कर अपने सद्भाव और शुभकामनाओं को दूसरे व्यक्ति तक पहुंचाने का काम करते हैं । दूसरा व्यक्ति भी हमारे प्रति ऐसा ही विनम्र प्रेम पूर्ण और आदर का भाव रखते हुए हमारे प्रणाम का जवाब देता है । जिससे दोनों की सकारात्मक ऊर्जा एक दूसरे को प्रभावित करती है और दोनों ही अपने भीतर के नकारात्मक चिंतन को एक दूसरे के प्रति कुछ पल के लिए भूल जाते हैं । इससे एक सकारात्मक परिवेश वर्जित होता है और साथ ही यह बात भी ध्यान रखनी चाहिए कि दो विपरीत विचारधारा के व्यक्ति या एक दूसरे से कभी-कभी शत्रु भाव रखने वाले व्यक्तियों मे भी यदि प्रणाम का आदान-प्रदान हो जाता है तो शत्रुता का भाव थोड़ा शिथिल हो जाता है । इससे भी एक सकारात्मक ऊर्जा का निर्माण उस समय होता है । जिससे शत्रुता के भाव में चाहे क्षणिक ही सही परंतु कमी अवश्य आती है।
इसके अतिरिक्त यह बात भी ध्यान रखने योग्य है कि हम जब एक दूसरे को नमस्कार करते हैं तो हमारे दोनों हाथ जो उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का प्रतीक होते हैं , एक साथ मिलकर हमारी छाती के सामने आ जाते हैं । छाती के सामने अर्थात हृदय के एकदम ऊपर। इसका अभिप्राय है कि यद्यपि उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव का मिलना परस्पर असंभव है तो भी मेरे उत्तरी और दक्षिणी ध्रुव मिलकर आपके सामने हृदय से नतमस्तक हो रहे हैं । छाती के सामने अर्थात हृदय के ऊपर दोनों हाथों का एक साथ आने का अभिप्राय यही है कि हम हृदय से आपका स्वागत , सत्कार व अभिनंदन आदि करते हैं।
नमस्कार शब्द भी साहित्य में उपलब्ध नहीं है बल्कि हम को नमस्ते कहना चाहिए। नमस्ते का अर्थ होता है कि मैं तुमको नमन करता हूं अर्थात आपके सामने मैं झुकता हूं अर्थात मैं आपको बड़प्पन प्रदान कर रहा हूं और मैं छोटा हो रहा हूं अर्थात मैं आपका सम्मान कर रहा हूं। यह नमस्ते का अर्थ है। उसको बिगाड़कर के लोग नमस्कार कहते हैं । नमस्कार साहित्यिक शब्द नहीं है ।
जिन लोगों को बड़ों से आशीर्वाद लेना होता है उनको श्रद्धा पूर्वक प्रणाम की मुद्रा में खड़ा होकर के प्राप्त करना चाहिए । उसी के बाद बड़ों के श्री मुख से निकला हुआ प्रत्येक शब्द हृदय से निकला हुआ होगा।

देवेंद्र सिंह आर्य
चेयरमैन : उगता भारत

Comment:Cancel reply

Exit mobile version