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इतिहास के पन्नों से स्वर्णिम इतिहास

महाभारत भ्रांति निवारण : पांचों पांडवों को नहीं , बल्कि द्रोपदी के पांच पुत्रों को मारने के लिए ही अश्वत्थामा गया था

महाभारत के बारे में तथ्यों के विपरीत जाकर एक दन्तकथा यह भी प्रचलित की गई है कि जब युद्ध के अन्त में गदा युद्ध में भीम ने दुर्योधन का वध कर दिया तो उसके पश्चात मौत की अन्तिम घड़ियां गिन रहे दुर्योधन के पास अश्वत्थामा , कृपाचार्य और कृतवर्मा रात्रि में आए । तब दुर्योधन ने अश्वत्थामा को अपनी सेना का अन्तिम सेनापति नियुक्त कर उसे पांडवों की हत्या करने के लिए उनके शिविर में भेजा था । कहा जाता है कि अश्वत्थामा दुर्योधन के अन्तिम सेनापति के रूप में जब शिविर में गया तो वहाँ पर उसे भ्रांति हो गई और उसने अंधेरे में द्रोपदी के पांचों पुत्रों को पांडव समझकर उनकी गर्दन काट ली । अश्वत्थामा ने कटी हुई इन गर्दनों को लाकर दुर्योधन के सामने पटक दिया । जिस पर दुर्योधन ने रात्रि में किसी प्रकार उन्हें देखने का प्रयास किया , परन्तु जब उसने देखा कि वे शीश पांडवों के न होकर पांचाली के पांच पुत्रों के हैं तो दुर्योधन ने अत्यंत शोक व्यक्त करते हुए अश्वत्थामा को यह कहकर लताड़ा कि तूने तो भरत वंश की आने वाली पीढ़ी को ही समाप्त कर दिया है । मेरा युद्ध तो केवल पांडवों से था, इन निरापराध बच्चों से नहीं था ,
इसलिए तूने जो कुछ भी किया है वह अच्छा नहीं किया ।

इसके पश्चात दुर्योधन शीघ्रता से उन शीशों को अपने सामने से हटवा देता है । इसके पश्चात दुर्योधन का देहावसान हो जाता है ।
इसके विपरीत अभी महाभारत के चले धारावाहिक में हमें कुछ ऐसा दिखाया गया कि अश्वत्थामा रात्रि में पांडवों के शिविर में जाता है , कृपाचार्य और कृतवर्मा पांडवों के शिविर के बाहर द्वार पर खड़े रह जाते हैं। अश्वत्थामा चुपके से पांडवों के शिविर में प्रवेश करता है और छुपते – छुपाते वह पांचाली पुत्रों के कक्ष में प्रवेश कर जाता है । तब वह दूर से ही पांचाली के पांचों पुत्रों को पांडव समझकर उनको तीर से मार देता है । शिविर में कोई शोर शराबा नहीं होता , कोई व्यक्ति जागता नहीं और वह निश्चिंत होकर अपने सारे कार्यों को पूर्ण करके बाहर निकल आता है।
उसके उपरान्त वह कृपाचार्य और कृतवर्मा को साथ लेकर दुर्योधन के पास आता है , परन्तु तब तक दुर्योधन के प्राण पखेरू उड़ चुके थे । इस प्रकार धारावाहिक के अनुसार अश्वत्थामा पांडवों के वध की सूचना अपने मित्र दुर्योधन को नहीं दे पाया। तब वह व्यास जी के आश्रम में पहुंच जाता है । जब पांडवों को सारी वस्तुस्थिति की जानकारी होती है तो वह खोजते हुए स्वयं भी व्यास जी के आश्रम में पहुंच जाते हैं । वहां पर अश्वत्थामा यह कह रहा होता है कि उसने पांचों पांडवों की हत्या कर दी है और अब वह अधिक जीना नहीं चाहता ।
तब व्यास जी कहते हैं कि पांचों पांडव तो अभी जीवित हैं । जब इन दोनों का यह वार्तालाप चल रहा था तभी अचानक वहाँ पर पांडवों के साथ श्री कृष्ण जी पहुंच जाते हैं । इसके पश्चात अश्वत्थामा पांडवों पर ब्रह्मास्त्र जैसी शक्ति का प्रयोग करता है । उधर से अर्जुन भी ब्रह्मास्त्र शक्ति का ही प्रयोग करता है । इस पर व्यास जी दोनों को रोक देते हैं।
अब इस विषय में महाभारत क्या कहती है ? – इस पर भी विचार करते हैं।
महाभारत के शल्य पर्व के 24 वें अध्याय के 21वें श्लोक से 29 वें श्लोक का इस सम्बन्ध में अध्ययन किया जाना आवश्यक है। जहाँ अश्वत्थामा भूमि पर पड़े हुए दुर्योधन से कहता है :- ‘ राजन ! नीच पांडवों ने अत्यंत क्रूरतापूर्वक कर्म करके मेरे पिता का वध किया था , परन्तु उसके कारण भी मैं उतना संतप्त नहीं हूँ , जैसा कि आज तुम्हारे वध से दु:खी हो रहा हूँ।’
प्रभो ! मैं सत्य की शपथ खाकर जो कह रहा हूँ , मेरी इस बात को सुनो । मैं आज श्रीकृष्ण के देखते-देखते सम्पूर्ण पांचालों को सभी उपायों द्वारा यमराज के लोक में भेज दूंगा । महाराज इसके लिए आप मुझे आज्ञा प्रदान कीजिए।
‘ द्रोण पुत्र अश्वत्थामा का यह मन को प्रसन्न करने वाला वचन सुनकर कुरुराज दुर्योधन ने कृपाचार्य से कहा – ‘आचार्य आप शीघ्र ही जल से भरा हुआ कलश ले आइए ।’ तब दुर्योधन के आदेश से कृपाचार्य ने अश्वत्थामा का सेनापति के पद पर अभिषेक किया। सेनापति के पद पर अभिषेक हो जाने पर अश्वत्थामा ने दुर्योधन को हृदय से लगाया और अपने सिंहनाद से सम्पूर्ण दिशाओं को निनादित करते हुए वहाँ से प्रस्थान किया ।
इस प्रसंग से स्पष्ट हो जाता है कि अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांचों पुत्रों को ही समाप्त करने की बात दुर्योधन से कही है और दुर्योधन ने भी पांचों पांडवों को नहीं बल्कि पांचालों को ही मारने के लिए अश्वत्थामा को वहाँ से भेजा है। इसलिए यह बात मिथ्या सिद्ध हो जाती है कि अश्वत्थामा दुर्योधन से पांचों पांडवों को समाप्त करने का वचन देकर वहाँ से चला था ।
दुर्योधन से इतना वार्तालाप होने और अपनी नियुक्ति कौरव सेना के सेनापति के पद पर हो जाने के उपरांत भी अश्वत्थामा ने कृपाचार्य और कृतवर्मा को यह नहीं बताया था कि वह द्रोपदी के पांचों पुत्रों की हत्या किस प्रकार करने जा रहा है ? जब वह तीनों दुर्योधन के पास से लौट आते हैं तो आकर कृपाचार्य और कृतवर्मा दोनों गहरी निद्रा में सो जाते हैं , परन्तु अश्वत्थामा ने द्रौपदी के पांचों पुत्रों की छल से हत्या करने की पूरी योजना तैयार कर ली । तब उसने कृपाचार्य और कृतवर्मा को जगाया । ‘सौप्तिक पर्व’ के प्रथम अध्याय के 28 वें श्लोक में आया है कि – जागने पर महामनस्वी महाबली कृपाचार्य और कृतवर्मा ने जब अश्वत्थामा का निश्चय सुना तब वह लज्जा से गड़ गए और उन्हें कोई उत्तर नहीं सूझा । अश्वत्थामा दो घड़ी तक चिंता मग्न रहकर अश्रुगदगद वाणी में इस प्रकार बोला – यदि आपकी बुद्धि मोह से नष्ट न हो गई हो तो इस महान संकट के समय अपने बिगड़े हुए कार्य को बनाने के उद्देश्य से हमारे लिए क्या करना होगा, यह बताइए।’
तब कृपाचार्य ने अश्वत्थामा को इस पापपूर्ण कार्य के करने से रोकने के लिए बहुत कुछ बातें समझाईं ,परन्तु उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया। दूसरे अध्याय के 27 और 28 वें श्लोक में कृपाचार्य कहते हैं कि – हे तात ! जो सोए हुए हैं , जिन्होंने अस्त्र-शस्त्र रख दिए हैं, रथ और घोड़े खोल दिए हैं , जो – ‘मैं आपका हूँ ‘- ऐसा कह रहे हैं , जो शरण में आ गए हैं , जिनके बाल खुले हुए हों और जिनके वाहन नष्ट हो गए हों , इस संसार में ऐसे लोगों का वध करना धर्म की दृष्टि से अच्छा नहीं समझा जा सकता।’
अंत में अश्वत्थामा की ही जीत होती है और वह कृपाचार्य और कृतवर्मा दोनों को अपने पाप में सम्मिलित होने पर सहमत कर लेता है । इसके पश्चात तीसरे अध्याय में यह स्पष्ट किया गया है कि किस प्रकार अश्वत्थामा द्वारा रात्रि में सोए हुए पांचाल आदि समस्त वीरों का संहार किया गया ?
तीसरे अध्याय के आठवें और नौवें श्लोक से पता चलता है कि जब अश्वत्थामा शिविर में प्रवेश कर गया तो वह धृष्टद्युम्न के कक्ष में सबसे पहले पहुंचा। धृष्टद्युम्न उसका पैर लगते ही जाग उठा और जागते ही उसने महारथी द्रोणपुत्र को पहचान लिया । जब वह शैय्या से उठने की चेष्टा करने लगा , तब महाबली अश्वत्थामा ने दोनों हाथों से उसके बाल पकड़कर भूमि पर दे मारा और उसे अच्छी प्रकार रगड़ने लगा। इससे पता चलता है कि धृष्टद्युम्न और अश्वत्थामा का वहाँ पर मल्लयुद्ध भी हुआ था।
15 वें श्लोक से पता चलता है कि उस समय मारे जाते हुए वीर धृष्टद्युम्न के आर्त्तनाद से उस शिविर की स्त्रियां और सारे रक्षक जाग उठे ।
आगे लिखा है कि अश्वत्थामा ने धृष्टद्युम्न और उसके सेवकों को मौत के घाट उतार कर उसके पास के ही खेमे में पलंग पर सोए हुए उत्तमौजा को देखा । उसके भी कंठ और छाती को बलपूर्वक पैर से दबाकर उसने उसी प्रकार पशु की भांति उसे मार डाला । वह बेचारा भी चीखता चिल्लाता रह गया। इसके पश्चात अश्वत्थामा ने भीष्महंता शिखंडी के पास पहुंचकर अपनी तलवार से उसके दो टुकड़े कर डाले । उस महाबली वीर ने द्रुपद के पत्रों और सम्बन्धियों को ढूंढ ढूंढ कर उनका नरसंहार कर डाला । फिर अन्य पुरुषों के पास पहुंचकर तलवार से ही उनके टुकड़े – टुकड़े कर डाले । उस समय काल प्रेरित यमराज के समान उसने किसी के पैर काट डाले, किसी की कमर के टुकड़े टुकड़े कर डाले और किसी की पसलियों में तलवार भोंककर उन्हें चीर डाला । जो कोई वहाँ से बचकर भागने के लिए द्वार की ओर लपकता था उसे द्वार पर खड़े कृतवर्मा और कृपाचार्य मार डालते थे।
अन्त में वह जब पांचालों को मारने में सफल हो गया तो कहता है – ‘ सारे पांचाल , द्रौपदी के सभी पुत्र सोमवंशी क्षत्रिय और मत्स्यप्रदेश के अवशिष्ट सैनिक यह सभी मेरे द्वारा मारे गए । अब हमें शीघ्र ही चलना चाहिए । यदि हमारे राजा दुर्योधन जीवित हों तो हम उन्हें भी समाचार कह सुनाएं।
इसके पश्चात यह तीनों दुर्योधन के पास पहुंचते हैं। जहां वह अब मृत्यु के और भी निकट जा चुका था। वह लगभग अचेत सी अवस्था में पहुंच चुका था। अश्वत्थामा उसके कान पर जाकर ऊंची आवाज में बोलता है और उसे यह समाचार सुनाता है।
वह कहता है – महाराज दुर्योधन ! यदि आप जीवित हैं तो कानों को सुख देने वाली बातों को सुनो । पांडव पक्ष में केवल 7 और कौरव पक्ष में मात्र हम तीन ही व्यक्ति बच पाए हैं । उधर तो पांचों पांडव , श्रीकृष्ण और सात्यकि बचे हैं और इधर मैं , कृतवर्मा और कृपाचार्य शेष बचे हैं । भारतभूषण ! द्रोपदी तथा धृष्टद्युम्न के सभी पुत्र मारे गए । समस्त पांचालों का संहार कर दिया गया और मत्स्य देश की अवशिष्ट सेना भी समाप्त हो गई । धृष्टद्युम्न को पशुओं की भांति गला घोंट कर मार डाला है ।
ऐसी बातों को सुनकर दुर्योधन की चेतना कुछ क्षण के लिए लौट आई और वह इस प्रकार बोला – मित्रवर ! आज आचार्य कृप और कृतवर्मा के साथ तुमने जो कार्य कर दिखाया है उसे ना गंगानंदन भीष्म , न कर्ण और ना तुम्हारे पिताजी कर सके थे। शिखंडी सहित व नीच सेनापति धृष्टद्युम्न मार डाला गया इससे आज निश्चय ही मैं अपने को इंद्र के समान समझता हूं । तुम सब लोगों का कल्याण हो
। तुम्हें सुख प्राप्त हो अब स्वर्ग में ही हम लोगों का महा पुनर्मिलन होगा। यह कहकर दुर्योधन ने प्राण त्याग दिए ।
अब यहाँ पर यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि अश्वत्थामा द्रोपदी के पांच पुत्रों को , द्रौपदी के भाई और उसके पुत्रों व सैनिकों को मारने के लिए ही पांडवों के शिविर में क्यों गया ? यदि इस पर विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि उसने युद्ध के अंतिम क्षणों में अपनी पुरानी शत्रुता द्रौपदी , उसके भाई धृष्टद्युम्न और उसके भाई के पुत्रों व सैनिकों आदि को मारकर निकालनी चाही थी । इससे स्पष्ट होता है कि उसके अपने मन में प्रतिशोध की भावना अपनी व्यक्तिगत शत्रुता के दृष्टिगत द्रौपदी और उसके पितृपक्ष से कहीं अधिक लगी हुई थी । वह अपने मित्र दुर्योधन की आत्मा को शांति न देकर अपने मृत पिता की आत्मा को शांति देना चाहता था। अतः उसने द्रौपदी के पांच पुत्रों , उसके भाई और भाई के पुत्रों व सैनिकों आदि का नरसंहार युद्ध की अन्तिम रात्रि में धोखे से किया।
इस सारे प्रकरण से स्पष्ट होता है कि दुर्योधन और अश्वत्थामा के बारे में जो कहानी प्रचलित की गई है उसका मूल महाभारत से किसी प्रकार भी मेल नहीं खाता।

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक : उगता भारत

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