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भारतीय संस्कृति

विकास बना नौचन्दी का मेला

जगदीश बत्रा लायलपुरी

किसी भी राष्ट्र की राष्ट्रीय एकता उस राष्ट्र के लक्ष्य तथा नीतियों द्वारा समझी जा सकती है। भारत की स्वतंत्रता से पूर्व अंग्रेजों की शोषण नीति के खिलाफ तथा उनके द्वारा अपनी संस्कृति जबरन थोपने के विरुद्ध राष्ट्रीय एकता दिखाई देती थी। बंकिम चन्द्र, रविन्द्र नाथ राष्ट्र को राष्ट्रगीत देते है, भगतसिंह, सावरकर, लाजपतराय, सुभाषचन्द्र, चन्द्रशेखर आजाद, बिस्मिल, अस्फाक उल्ला शहीद हो जाते हैं। इन सबका एक लक्ष होता है। वे ब्रिटिश सत्ता को स्वार्थी और साम्राज्यवादी ताकत के रूप में भारत का शोषण करने वाला तथा विघटन की जड़ों को मजबूत करने वाला मानते हैं। अंग्रेजी भाषा का सरकारी नौकरी में महत्व देकर भारतीय भाषाओं तथा बहुसंख्यक द्वारा बोली समझी जाने वाली हिन्दी की उपेक्षा करते हैं। सीधी सादी खादी के परिधान को विदेशी पेंट-शर्ट में बदल कर भेदभाव, ऊंचनीच को बढ़ावा देकर आपस में लड़वाने का माध्यम बनते दिखते हैं। वे मानते है कि यहां जो भी बड़ी-बड़ी विदेशी कम्पनियां खोली जा रही है वे भारतीय कुटीर धंधों का गला घोंट कर देश को गरीबी के कगार पर पहुंचा देगी। गरीब-अमीर की खाई को बड़ा कर देगी।
अंग्रेजी न पढ़ पाने के कारण बहुसंख्यक वर्ग अपने को हीन समझेगा, रोजी-रोटी के लिए तरसेगा तथा उन पर वे अपने हथियारों और सेना के बल पर फूट डालो और राज करो की नीति रखेंगे। ऐसे समय में जहां क्रान्तिकारी अपने प्राण हथेली पर लेकर इतनी बड़ी ताकत से लड़ रहे थे वहीं महात्मा गांधी अहिंसा के द्वारा जन साधारण को आत्मिक बल संगठित करके उन्हें अनुशासित कर रहे थे, जेलों को तीर्थ स्थान समझ कर भर रहे थे। राष्ट्रीय ध्वज तथा राष्ट्रीय पर्वों का महत्व जन-जन को समझा रहे थे। ‘ईश्वर अल्लाह तेरे नाम, सबको सन्मति दे भगवान्’ की प्रार्थना ने ही धर्म का सच्चा स्वरूप सबको समझाया। सत्य बोलना, चोरी न करना, अपनी मेहनत का खाना, हिंसा न करना, स्वस्थ रहना, घृणा न करना, सबसे प्रेम करना, शराब न पीना, महिलाओं, वृद्धों, रोगियों का विशेष ध्यान देना, शुद्ध सात्विक शाकाहारी भोजन करना, आदि धर्म का सच्चा स्वरूप था, स्वदेशी का पाठ था। हथियारों के स्थान पर पाठशालाएं, व्यायामशालाएं, पुस्तकालय, वाचनालय, चिकित्सालय, रंगशालाएं, जड़ी-बूटियों पर अनुसंधान खोले जायें। उन्होंने अपनी परम्परा का यह पाठ कि ‘यदि तुम्हारा पड़ौसी भूखा है तो हम पापी है’ का ज्ञान कराया। यदि राष्ट्र में किसी हिस्से में अकाल, सूखा या भूकम्प, बाढ़, सुनामी आदि आपदाएं आती हैं तो पूरे राष्ट्र को उनका दु:ख बांटना चाहिए।
राष्ट्रीय एकता में उस समय अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं ने अपनी बड़ी भूमिका अदा की। गणेश शंकर विद्यार्थी ने राष्ट्र धर्म की सच्ची व्याख्या की तथा अपने प्राणों की आहुति देकर आत्मा की अमरता को सिद्ध कर दिया। गौतमबुद्ध, महावीर, गुरुनानक का देश अपनी धरती से प्यार करने का हिमालय, गंगा-यमुना का आदर करने का, कण-कण में भगवान को मानने का अनुभव जन-साधारण तक पहुंचा। पीपल, तुलसी आदि की पूजा हुई, वनस्पति का महत्व बढ़ा। जगदीश चन्द्र बसु ने सिद्ध किया कि पेड़-पौधों में भी जान होती है। यहां तेल के भंडारों, कोयला की खानों, लोहे की खानों, सोने-चान्दी की खानों, रत्नों की खाने रास्ता देख रही थी, वे जन-जन की गरीबी दूर कर सकें। हमने आजादी प्राप्त की। यहां का गुलाब, कमल और हर फूल खिल उठा। मोर के साथ हर पक्षी नाचने चहकने लगा। कूकने से कोयल मग्न हो उठी। राष्ट्र ने कल्पना की अब हाकी हमारा राष्ट्रीय खेल होगा, न्यायालय में सभी को समय पर न्याय मिलेगा। हमारे अपने राष्ट्र की तरह राष्ट्रभाषा हिन्दी, संस्कृत के रूप में हमारी पहचान होगी। केवल सेना तथा पुलिस ही अनुशासन में नहीं रहेगी वरन् पूरा देश अनुशासन पर चलेगा। तिरंगा झंडा अपनी तरह सबको सम्मानित जिन्दगी जीने का अवसर देगा। गो हत्या बन्द हो जायेगी। शराब पर पूर्ण तथा बन्दी लगा दी जायेगी। अहिंसा वीरों को शोभा देती है, कायरों को नहीं। अन्याय करने वाले के समान अन्याय सहने वाला भी दोषी है। रिश्वत लेने वाले के समान रिश्वत देने वाला भी दोषी है। भ्रष्टाचार करने वाले के समान भ्रष्टाचार सहन करने वाला भी उतना ही दोषी है। सीमा पर फौज अपने प्राणों की बलि देकर राष्ट्र की एकता-अखंडता की रक्षा करती है तो वह अपेक्षा करती है कि देश के अन्दर लोगों को समानता तथा जीने का अवसर मिलेगा।
आओ हम सब मिलकर इस लक्ष्य में जुट जाये और राष्ट्रीय एकता का इन्द्रधनुष, अनुशासन हीनता और भ्रष्टाचार के बादलों को हटा कर, संसार को दिखायें।
हमें विचार करना है कि आजादी के बाद क्यों भारत का विकास नौचंडी का मेला बन कर रह गया है? मेले की जगमगाहट, तरह-तरह के मनोरंजन के साधन, मौत का कुआं से फ्लाईओवर, सब-कुछ जो भी है वह एक अलग दुनिया में ले जाता है। यह सब ताम-झाम की निगाह हमारी गांठ के दाम पर है जितना खर्च कर पाते हैं, तभी हमें कुछ मिलता है। सब कुछ बाजार हो गया है। यहां बड़े-बड़े अस्पताल है जहां रोगी तभी जा सकता है जब पहले पैसे जमा करवा दे। न्याय वकील तभी दिलवायेगा जब उसे हर तारीख लेने के पैसे मिलते रहे चाहे जितने वर्ष मुकदमे को लटकाना है। वह सब सम्भव कर देगा। यहां बड़े-बड़े स्कूल में जन्म लेते ही रजिस्ट्रेशन करवाना पड़ता है तथा दाखिले में लाखों रुपये देना पड़ता है। देखने में यह नौचंडी का मेला बहुत अच्छा लगता है लेकिन हमे फिर वापिस आता अपने घर पर ही है जहां हमारी बेरोजगारी, गरीबी, अशिक्षा, बिमारी, महंगाई से हमारा खून का रिश्ता है। क्या यह सब दुनिया, भगवान की बनाई है उसने कहीं तो एक छोटी सी चिडिय़ा बनाई है जो 290 किलोमीटर रोजाना से 2900 किलोमीटर तक उड़ सकती है यहां भारत में संसद के साठ वर्ष पूरे होने पर जश्न मना रहे हैं लेकिन क्या उन्हें विकास किसका हो रहा है, नहीं दिखाई देता? भ्रष्टाचारी, गुन्डे, अपराधी सीनातान कर चलते हैं लेकिन आम आदमी का दर्द उसे 32रु रोज का अमीर बना देने में है इन सांसदों को अपना वेतन को बढ़ाने की चिन्ता रहती है लेकिन पेंशन बिल, खाद्य सुरक्षा बिल पर कभी सहमति नहीं बन पाती। नकारात्मक सोच में जितनी तीव्र छटपटाहट और बैचेनी होती है वह उसकी सकारात्मक सोच की लालसा और चाहत को दर्शाती है। ”मेरा विश्वास है कि गौ हत्या बन्दी और शराब बन्दी लागू न होने में भ्रष्ट विलासिता की सोच है।

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