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इतिहास के पन्नों से

रामायण में सीता जी की अग्नि परीक्षा

 

रामायण महाकाव्य में सीता अग्निपरीक्षा एक विवादित प्रसंग के रूप में जाना जाता है। इस प्रसंग के अनुसार राम द्वारा रावण को युद्ध में हराने के पश्चात लंका में सीता को स्वीकार करने से पहले सीता की अग्निपरीक्षा ली। अग्नि में प्रवेश करने के पश्चात भी सीता का शरीर भस्म नहीं हुआ। इससे सीता की पवित्रता सिद्ध हुई और श्री राम द्वारा सीता को पवित्र जानकार स्वीकार कर लिया गया।
सीता कि अग्निपरीक्षा के प्रसंग को लेकर अनेक लोगों के विभिन्न विभिन्न मत हैं। महिला अधिकारों के नाम पर दुकानदारी करने वाले इसे नारी जाति पर अत्याचार, शोषण, नारी के अपमान के रूप में देखते हैं। विधर्मी मत वाले इस प्रसंग के आधार पर हिन्दू धर्म को नारी शोषक के रूप में चित्रित करते हैं जिससे धर्मान्तरण को समर्थन मिले। अम्बेडकरवादी इसे मनुवाद, ब्राह्मणवाद के प्रतीक के रूप में उछालकर अपनी भड़ास निकालते हैं। जबकि हमारे कुछ भाई इसका श्री राम की महिमा और चमत्कार के रूप में गुणगान करते हैं। क्यूंकि उनके लिए श्री रामचन्द्र जी भगवान के अवतार है और भगवान के लिए कुछ भी संभव है।
इस लेख में सीता की अग्निपरीक्षा को तर्क की कसौटी पर पक्षपात रहित होकर परीक्षा करने पर ही हम अंतिम निष्कर्ष निकालेंगे।

वैज्ञानिक दृष्टि से भी सोचे तो यह संभव ही नहीं है कि आग मे जाने के बाद मानव शरीर बिना जले सकुशल बच जाये। क्या अग्नि किसी की पवित्रता की परीक्षा लेने में सक्षम है? वैज्ञानिक तर्क के विरुद्ध सीता अग्निपरीक्षा को चमत्कार की संज्ञा देना मन बहलाने के समान हैं। केवल आस्था, विश्वास और श्रद्धा रूपी मान्यता से संसार नहीं चलता। किसी भी मान्यता को सत्य एवं ज्ञान से सिद्ध होने पर ही ग्रहण करने योग्य मानना चाहिए। इस आधार पर भी सीता की अग्निपरीक्षा एक मनगढ़त प्रसंग सिद्ध होता है।

सुंदरकाण्ड मे हनुमान जी सीता और रावण की बातचीत सुनते हैं। वहाँ पर सीता जी साफ साफ रावण को अपमानित करती हैं। यह जानकारी हनुमान जी ने श्रीराम राम को दी है। उसके बाद अग्नि परीक्षा का कोई औचित्य ही नहीं रहता।
युद्धकाण्ड सर्ग 115 ( कुछ संसकरणों मे सर्ग 118) का श्लोक 10 देखिए।
इत्येवं वदतः श्रुत्वा सीता रामस्य तद्वचः |
मृगीवोत्फुल्लनयना बभूवाश्रुपरिप्लुता ||
श्रीराम जी की बातें सुनकर सीताजी की आंखे खुशी के आंसुओं से भर गई। सीता जी मिलने के बाद मुख्य कार्य अयोध्या मे भरत से मिलना था।

इसके बाद प्रक्षेपकार ने अगले 5 सर्गों मे लगातार मिलावट की है। अधिकांश असम्भव बाते लिखी हैं। जैसे श्रीराम जी सीता को कहते हैं कि मैंने युद्ध तुम्हारे लिए नहीं किया। तुम कहीं चली जाओ, फिर अग्नि परीक्षा और अग्निदेव का आना। उसके बाद स्वर्ग से दशरथ का आना। स्वर्ग के राजा इन्द्र का आना। इन्द्र का अमृत बरसाकर मृत वानरों को जीवित करना आदि। यह सभी असम्भव बाते इस घटना को मिलावटी सिद्ध करती हैं।

वाल्मीकि रामायण के श्री रामचन्द्र महान व्यक्तित्व, मर्यादापुरुषोत्तम, ज्ञानी, वीर, महामानव, ज्येष्ठ-श्रेष्ठ आत्मा, परमात्मा का परम भक्त, धीर-वीर पुरुष, विजय के पश्चात् भी विनम्रता आदि गुणों से विभूषित, महानायक, सद्गृहस्थ तथा आदर्श महापुरुष थे। ऐसे महान व्यक्तित्व के महान गुणों के समक्ष सीता की अग्निपरीक्षा कर पवित्रता को निर्धारित करना एक बलात् थोपी गई, आरोपित, मिथ्या एवं अस्वीकार्य घटना प्रतीत होता हैं। श्री राम के महान व्यक्तित्व एवं आदर्श विचारों के समक्ष यह प्रसंग अत्यंत तुच्छ हैं। इससे सिद्ध हुआ कि यह प्रसंग बेमेल हैं।
सुग्रीव की पत्नी रूमा जिसे बाली ने अपना बंधक बना कर अपने महलों में रखा हुआ था को बाली वध के पश्चात जब सुग्रीव स्वीकार कर सकता है। तो श्री राम हरण की हुई सीता को क्यों स्वीकार नहीं करते? श्री राम को आदर्श मानने वाले इस तर्क का कोई तोड़ नहीं खोज सकते।

वैदिक काल में नारी जाति का स्थान समाज में मध्य काल के समान निकृष्ट नहीं था। वैदिक काल में नारी वेदों की ऋषिकाओं से लेकर गार्गी, मैत्रयी के समान महान विदुषी थी, कैकयी के समान महान क्षत्राणी थी जो राजा दशरथ के साथ युद्ध में पराक्रम दिखाती थी, कौशलया के समान दैनिक अग्निहोत्री और वेदपाठी थी। सम्पूर्ण रामायण इस तथ्य को सिद्ध करता है कि रावण की अशोक वाटिका में बंदी सीता से रावण शक्तिशाली और समर्थ होते हुए भी सीता की इच्छा के विरुद्ध उसके निकट तक जाने का साहस न कर सका। यह उस काल की सामाजिक मर्यादा एवं नारी जाति की पत्नीव्रता शक्ति का उद्बोधक हैं। रामायण काल में सामाजिक मर्यादा का एक अन्य उदहारण इस तथ्य से भी मिलता है कि परनारी को अपहरण करने वाला रावण और परपुरुष की इच्छा करने वाली शूर्पनखा को उनके दुराचार के राक्षस कहा गया जबकि सभी प्रलोभनों से विरक्त एवं एक पत्नीव्रत श्री राम और शूर्पणखा के व्यभिचारी प्रस्ताव को ठुकराने वाले लक्ष्मण जी को देव तुल्य कहा गया हैं। ऐसे महान समाज में विदुषी एवं तपस्वी सीता का सत्य वचन ही उसकी पवित्रता को सिद्ध करने के लिए पूर्ण था। इस आधार पर भी सीता की अग्निपरीक्षा एक मनगढ़त प्रसंग सिद्ध होता है।
रामायण नारी जाति के सम्मान की भी शौर्य गाथा भी है। यह सन्देश देती है कि अगर एक अत्याचारी परनारी का हरण करता है तो चाहे सागर के ऊपर पुल भी बनाना पड़े, चाहे वर्षों तक जंगलों में भटकना पड़े, चाहे अपनी शक्ति कितनी भी सीमित क्यों न हो। मगर दृढ़ निश्चयी एवं सत्य मार्ग के पथिक नारी जाति के तिरस्कार का, अपमान का प्रतिशोध प्राण हरण कर ही लेते हैं। ऐसी महान गाथा में सीता की अग्निपरीक्षा जैसा अनमेल, अप्रासंगिक वर्णन प्रक्षिप्त या मिलावटी होने के अतिरिक्त कुछ नहीं हैं।

डॉ विवेक आर्य

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