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राष्ट्र की समस्या का समाधान प्रत्येक हिंदू का व्यक्तिगत लक्ष्य

राष्ट्र शब्द का प्राचीनतम प्रयोग सृष्टि के उषाकाल की पहली पुस्तक ऋग्वेद में आया है। राजनैतिक रूप से पचीसों राज्यों में विभक्त होने पर भी मोटे तौर पर अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बाँग्लादेश, वर्तमान भारत, नेपाल, थाइलैंड, बर्मा, मलेशिया, इंडोनेशिया आदि को भारत या हिन्द समझा जाता रहा है। 712 ईस्वी में भारत के एक राज्य सिंध पर इस्लामी आक्रमणकारियों का आक्रमण उन के रिकॉर्ड में हिन्द पर हमला लिखा गया है। ग़ज़वा-ए-हिंद की चर्चा जिस काल की इस्लामी पुस्तकों में हिन्द के नाते है तब भी भारत एक राजनैतिक इकाई नहीं था। कोई इसे जैसे चाहे देखे मगर भारत को नष्ट करने अर्थात सांस्कृतिक रूप से बदलने की सदियों से कुत्सित योजनायें बनाने वालों के लिये सांस्कृतिक भारत ही सम्पूर्ण भारत यानी हिन्द है।

हिंद यानी हम पर आक्रमण सम्पत्ति-धन लूटने, स्त्रियों के अपहरण करने, ग़ुलाम बनाने के लिये नहीं हुए बल्कि हम पर आक्रमण कुफ़्र की भूमि को इस्लामी बनाने, विश्व को इस्लामी बनाने के चिंतन की आधार भूमि बनाने के लिये हुए हैं। ग़ज़वा-ए-हिंद यही है। हिन्द से अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश भूभाग छीने जा चुके हैं। यह छीनना इस लिये नहीं हुआ कि इन क्षेत्रों में इस्लाम ने हमसे अंतिम लड़ाई जीती थी। उसे दसों बार परास्त भी किया गया फिर क्या हुआ कि हमारी धरती हमसे छिन गयी ?

इसका कारण था कि इस्लामी जीतें या हारें उनका लक्ष्य हिन्दुओं यानी उनकी दृष्टि में काफ़िरों को इस्लाम के रस्ते पर लाना था। सिंध पर आक्रमण कर विजय के बाद इस्लामी आक्रमणकारियों ने मंदिर तोड़े। मंदिरों को मस्जिदों में बदला और हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। 50 वर्ष भी नहीं बीते कि आक्रमणकारी काट-पीट कर वापिस भगा दिए गये। मस्जिदें वापस मंदिर बना ली गयीं। बहुसंख्यक नवधर्मांतरित वापस हिन्दू बना लिए गए मगर कुछ धर्मांतरित हिंदू मुसलमान बने-बचे रह गये।

यहीं से रोग की शुरुआत हुई। हर आक्रमण के साथ इस्लाम अपने बीज डालता रहा, संख्या बढ़ाता। सूफ़ी, मुल्ला, बादशाह, सेनापति, नवाब, सामान्य गृहस्थ आदि इस्लाम के प्रचारक हिन्दुओं को मुसलमान बनाते रहे। हिन्दुओं को सदियों इसकी चिंता नहीं हुई कि देश में हो क्या रहा है ? इस्लामियों की जनसँख्या जिस-जिस क्षेत्र में बढ़ती गयी उसने आस-पास के हिन्दुओं को छल-बल-धन आदि से इस्लाम में दीक्षित करने का कार्य और तीव्र गति से किया।

कृपया नेट पर Yazidi डालिये। आपको ईराक़-सीरिया के बॉर्डर पर रहने वाली, मोर की पूजा करने वाली जाति के बचे-खुचे लोगों का पता चलेगा। Kafiristan डालिये। आपको पता चलेगा कि इस क्षेत्र के हिंदुओं को 1895 में मुसलमान बना कर इसका नाम nuristan नूरिस्तान रख दिया गया है। इस्लामी धावों ने अफ़ग़ानिस्तान केवल 250 वर्ष पहले मुसलमान किया।

भारत के टूटने का कारण सैन्य पराजय नहीं है बल्कि धर्मांतरण है। जो वस्तु जहाँ खोयी हो वहीँ मिलती है। हमने अपने लोग, अपनी धरती धर्मांतरण के कारण खोयी थी। यह सब वहीँ से वापस मिलेगा जहाँ गंवाया था। वृहत्तर पंजाब के राजा रंजीत सिंह की राजधानी लाहौर थी। कल्पना कीजिये कि महाराजा रंजीत सिंह जी एक दिन घोषणा करते कि अगले दो माह में मेरे राज्य के सभी मुसलमान या तो घर वापसी करें या राज्य छोड़ जाएँ अन्यथा नष्ट कर दिए जायेँगे तो क्या 1947 में पाकिस्तान बनता ?

हमारा शिक्षित, सक्षम वर्ग केवल धन कमाने, सुंदर पत्नी या स्मार्ट पति ढूंढने में लगा हुआ है। कृपया सोचिये कि ऐसा कब तक चलेगा ? इस नृशंस, अमानवीय विचारधारा के पंजों से कोई सुरक्षित नहीं है। इसे नष्ट करना अनिवार्य है। बड़ी योजना बनाना जिसका कार्य है वो नहीं कर रहा तो हम व्यक्तिगत रूप से तो जीवन का लक्ष्य तय करें। प्रत्येक हिंदू जीवन का लक्ष्य तय करे कि दो लोगों की घर वापसी या शुद्धि करेगा ही करेगा। अपने यश, बल, धन, कौशल का सारा सामर्थ्य इसी कार्य में लगाइये। इसके लिये कोई भी संकट आता है तो आये। यह हमारे भविष्य की सुरक्षा का प्रश्न है।

कल्पना करें कि पाँच करोड़ हिंदू चौकन्ने बाज़ की तरह केवल दो लोग अर्थात दस करोड़ संख्या की घर वापसी को लक्ष्य बना लें और सक्रिय हो जाएँ तो अराष्ट्रीय समाज के लोग जो कुछ पीढ़ी पहले ही हमसे बिछुड़े थे, कोई समस्या रह जायेंगे ? बंगाल, बिहार, असम, केरल, आंध्र, उत्तर प्रदेश के जनसांख्यकीय बदलाव की समस्या, गोधरा, मुज़फ़्फ़रनगर, दिल्ली आदि के सांप्रदायिक दंगे, शाहीन बाग़ के उपद्रव सब शांत हो जायेंगे। दुगने-तिगुने बल से प्रत्याक्रमण ही बचाव होता है।

साथी कर्मचारी, बेटे का दोस्त, बेटी की सहेली, गली में ठेले पर फल-सब्ज़ी बेचने वाले, छोटे-छोटे काम करने वाले यथा प्लंबर, इलेक्ट्रिशियन, पंक्चर वाले सरल ग्रास हो सकते हैं। लड़कियां तो विशेष रूप से शुद्ध हो सकती हैं। वो इतना ही चाहती हैं कि सुखद भविष्य, ज़िम्मेदारी का पति मिले। उनके मन में विचार तो डालिये। प्रयास तो कीजिये। स्वयं तैयार होइए। अपने बेटों को तैयार कीजिये। व्यक्तिगत रूप से यही करणीय है। इस कार्य को कोई असम्भव मानता हो तो कृपया मिले। अनेक शुद्ध हुए लड़के और लड़कियों से आपकी भेंट, बात कराता हूँ।

तुफ़ैल चतुर्वेदी

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