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कविता

सरहद के सैनिक

सरहद पर सैनिक हँस-हँस कर
अपने प्राण गंवाते हैं।
मरने वाले इस दुनिया में
बिना मरे मर जाते हैं ।।

शीत ऊष्ण अतिवर्षण में भी
कभी नहीं घबराता है ।
दुश्मन की छाती पर चढ़कर
वंदेमातरम गाता है ।।
ऐसा जीवन जीने वाले
घर-घर आदर पाते हैं । सरहद पर सैनिक———-

माँ बेटी भगिनी भार्या की
रह-रह याद सताती है।
आन वान भारत माता की
उसको ज्यादा भाती है ।।
अरि के सपने कुचल-कुचलकर
रक्तिम तिलक लगाते हैं । सरहद पर सैनिक———–

स्वेद सना तन छूकर जिसका
वसुधा भी मुस्काती है ।
ऐसे वीर जवानों को माँ
अम्बा गले लगाती है ।।
उत्सर्गों से ही माटी के
कर्ज चुकाए जाते हैं । सरहद पर सैनिक———-

मरण भले हो भौगोलिक पर
इतिहासों में जीता है ।
सुख -दुख के खारे सब
घूँट-घूँट कर पीता है ।।
शौर्य कथाओं के सब नायक
उनके गाने गाते हैं । सरहद पर सैनिक———–

सीमा से शहीद सैनिक का
शव जब घर को आता है ।
तीन वर्ण से सजा तिरंगा
गर्वित हो हर्षाता है ।।
द्रवित हृदय से नर नारी सब
इनको शीश झुकाते हैं । सरहद पर सैनिक————-

अनिल कुमार पाण्डेय
संस्थापक-तुलसी मानस साहित्यिक संस्थान
ए-265 आई टी आई संचार विहार मनकापुर,
गोण्डा (उ .प्र ) शब्ददूत -9198557973

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