Categories
व्यक्तित्व

क्या गांधी जी सचमुच महात्मा थे ?

मेरी कल की पोस्ट पर कुछ लोगों ने ऐसी आपत्तियां की हैं जिनसे लगता है कि उन्हें गांधीजी के बारे में सच का पता नहीं था । इस विषय में उन्हें कुछ और अधिक जानकारी गांधीजी के विषय में लेनी चाहिए । गांधी जी अपने लिए स्वयं कहते थे कि मैं महात्मा नहीं हूं और वह महात्मा थे भी नहीं । क्योंकि महात्मा की जिस परिभाषा को हमारे वैदिक शास्त्रों में दिया गया है वह उनसे छू भी नहीं गई थी । वह महिलाओं के साथ नंगे सोने के आदी थे और यही कारण था कि उनकी धर्मपत्नी कस्तूरबा गांधी उनसे घोर घृणा करती थीं । जब वह गांधी की इस आदत का विरोध करती थीं तो उन्हें कई बार अहिंसावादी गांधी की हिंसा अर्थात मारपीट का भी शिकार होना पड़ा था ।

पिता की ऐसी गलत हरकतों को देखकर उनका एक बेटा मुसलमान बन गया था। बाद में कस्तूरबा गांधी आर्य समाज के माध्यम से मुसलमान बने बेटे हीरा को फिर से हिंदू बनाने में सफल हुई थीं।

देश के सबसे प्रतिष्ठित लाइब्रेरियन गिरिजा कुमार ने गहन अध्ययन और गांधी से जुड़े दस्तावेज़ों के रिसर्च के बाद 2006 में “ब्रम्हचर्य गांधी ऐंड हिज़ वीमेन असोसिएट्स” में डेढ़ दर्जन महिलाओं का ब्यौरा दिया है जो ब्रम्हचर्य में सहयोगी थीं और गांधी के साथ निर्वस्त्र सोती-नहाती और उन्हें मसाज़ करती थीं. इनमें मनु, आभा गांधी, आभा की बहन बीना पटेल, सुशीला नायर, प्रभावती (जयप्रकाश नारायण की पत्नी), राजकुमारी अमृतकौर, बीवी अमुतुसलाम, लीलावती आसर, प्रेमाबहन कंटक, मिली ग्राहम पोलक, कंचन शाह, रेहाना तैयबजी शामिल हैं. प्रभावती ने तो आश्रम में रहने के लिए पति जेपी को ही छोड़ दिया था । इससे जेपी का गांधी से ख़ासा विवाद हो गया था।

लगभग दो दशक तक महात्मा गांधी के व्यक्तिगत सहयोगी रहे निर्मल कुमार बोस ने अपनी बेहद चर्चित किताब “माई डेज़ विद गांधी” में राष्ट्रपिता का अपना संयम परखने के लिए आश्रम की महिलाओं के साथ निर्वस्त्र होकर सोने और मसाज़ करवाने का उल्लेख किया है । निर्मल बोस ने नोआखली की एक ख़ास घटना का उल्लेख करते हुए लिखा है, “एक दिन सुबह-सुबह जब मैं गांधी के शयन कक्ष में पहुंचा तो देख रहा हूं, सुशीला नायर रो रही हैं और महात्मा दीवार में अपना सिर पटक रहे हैं। ” उसके बाद बोस गांधी के ब्रह्मचर्य के प्रयोग का खुला विरोध करने लगे । जब गांधी ने उनकी बात नहीं मानी तो बोस ने अपने आप को उनसे अलग कर लिया।

गांधी जी के उनकी महिला मित्रों से संबंधों को लेकर लोगों ने बड़े-बड़े ग्रंथ लिखे हैं । जिन्हें कांग्रेसियों ने जानबूझकर लोगों के सामने नहीं आने दिया है लेकिन यह सारे ग्रंथ यदि बाजार में उपलब्ध है तो

लोगों को सच का सच के दृष्टिकोण से ही अनुशीलन परिशीलन करना चाहिए । गांधीजी के इस प्रकार के आचरण को भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों की तर्क तराजू पर भी तोलकर देखना चाहिए कि क्या वास्तव में उनकी ऐसी गतिविधियां भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुकूल थीं ? यदि नहीं तो फिर उन्हें महात्मा क्यों कहा जाए ?

डॉ राकेश कुमार आर्य

संपादक : उगता भारत

Comment:Cancel reply

Exit mobile version