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कविता

शरद पूर्णिमा की रात को


*शरद पूर्णिमा* की रात को
*रश्मि* बिखरते चांद को
जब मैंने अठखेलियाँ करते देखा
तब नयन खो गये नयन में
अपने चन्द्र अयन में
पता ही नहीं चला कब भोर हो गयी
चहक शोर हो गयी
आश्विन का दीवानापन
हँसते हँसते विदा हो गया
कार्तिक को सौंप भार
संदेश बीज बो गया
जा रहा हूँ विमल फिर से आने के लिए
इसलिए हँस रहा हूँ,
नहीं फंस रहा हूँ,
अनंत शरद लाने के लिए
असंख्य शरद लाने के लिए
*शरद पूर्णिमा दे आप सभी को ठंडी छाँ*
रातभर चांदनी में रखी खीर का यज्ञ में प्रसाद लगा वितरण कर खाएं
उत्तम स्वास्थ्य पाएं
हार्दिक शुभकामनाएं
-विमलेश बंसल आर्या
🙏🌹🌹🙏

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