विदेशों में आज भी सम्मानित है भारत की संस्कृति : डॉक्टर सत्यव्रत शास्त्री

नई दिल्ली । ( विशेष संवाददाता ) संस्कृत के अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान और भारतीय संस्कृति के उद्भट प्रस्तोता के रूप में जाने जाने वाले डॉ सत्यव्रत शास्त्री का कहना है कि भारत की संस्कृति विदेशों में आज भी बहुत ही सम्मानित दृष्टि से देखी जाती है

उन्होंने कहा कि भारत की वैदिक संस्कृति के प्रति लोगों का आज भी विदेशों में बहुत अधिक रुझान है। इसका कारण बताते हुए श्री शास्त्री ने ‘ उगता भारत ‘ को बताया कि भारतीय संस्कृति तेज की उपासक है । तेज पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि यह ऊर्जा की उपासक होने के कारण विज्ञानवाद के सर्वथा अनुकूल बात करने वाली संस्कृति है । उन्होंने कहा कि गायत्री मंत्र में हम जब ईश्वर के वरणीय तेज स्वरूप का ध्यान करते हैं तो हमें असीम ऊर्जा प्राप्त होती है और उस ऊर्जा को हम अपने भीतर वैज्ञानिक शोधों और आविष्कारों में स्थापित या परिवर्तित होते देखते हैं ।

यहां पर धर्म विज्ञान के और विज्ञान धर्म के अनुकूल बात करता हैं । जबकि विदेशों में धर्म के स्थान पर लोगों ने मजहब या रिलीजन को प्राथमिकता देकर धर्म की परिभाषा को विकृत कर दिया है । जिससे वहां पर मजहब और विज्ञान की मान्यताएं अलग अलग हो गई । फलस्वरूप वहां पर विज्ञान की उन्नति बाधित हुई । जबकि भारत अपनी वैज्ञानिक उन्नति को निरंतर अपने तेज और ऊर्जा की साधना के आधार पर बनाए रहा ।

डॉ सत्यव्रत शास्त्री ने कहा कि हमें आज भी विज्ञान और धर्म के सुंदर समन्वय पर चर्चा करनी चाहिए। इसके लिए अच्छे-अच्छे उपनिषद अर्थात विचार गोष्ठियों का आयोजन कर भारत की वैज्ञानिक संस्कृति की उन्नति करनी चाहिए।

श्री शास्त्री ने कहा कि भारत की संस्कृति ही संप्रदाय निरपेक्ष शासन व्यवस्था की प्रतिपादिका रही है। इसकी भीतरी चेतना को समझकर ही संसार में आज की सबसे अधिक उत्कृष्ट और सुव्यवस्थित राजनीतिक सामाजिक व व्यवस्था को हम दे सकते हैं। जिसके लिए वेदों का गहन अध्ययन करना आवश्यक है ।

श्री शास्त्री ने कहा कि आज समाज में बलात्कारियों को लेकर जिस प्रकार नित नई खबरें आती रहती हैं वह भारत के भीतर सामाजिक मूल्यों की गिरावट का प्रतीक है । जिस पर हमें चिंतन करना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है ? यदि हम इस पर निष्पक्ष होकर चिंतन करेंगे तो पता चलेगा कि संस्कार समाप्त हो रहे हैं और शिक्षा रोजगार मूलक होकर रह गई है । जबकि संस्कार से ही देश और समाज बदल सकते हैं , इसलिए शिक्षा का मूल उद्देश्य संस्कार प्रदान करना होना चाहिए।

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