इतिहास पुरुष महाराणा प्रताप का जीवन सब भारतीयों के लिये प्रेरक एवं अनुकरणीय है

- मनमोहन कुमार आर्य
भारत के इतिहास में गौरवपूर्ण स्थान रखने वाले एक देशभक्त निर्भीक व साहसी क्षत्रिय महापुरुष, वैदिक धर्म व संस्कृति के आदर्श एवं भारत माता के वीर सपूत महाराणा प्रताप जी की 9 मई को जयन्ती होती है। महाराणा प्रताप जी का जन्म 9 मई, सन् 1540 को कुम्भलगढ़ दुर्ग, मेवाड़ में हुआ था। वर्तमान में यह दुर्ग राजस्थान के राजसमंद जिले में है। महाराणा प्रताप के पिता का नाम महाराज उदयसिंह तथा माता का नाम महाराणी जयवन्ता बाई था। बताते हैं कि महाराणा प्रताप ने ग्यारह विवाह किये थे। आपकी पत्नी का नाम महाराणी अजाब्दे पंवार था। वीर राजा अमरसिंह इसी राणी से उत्पन्न उनके इतिहास प्रसिद्ध पुत्र थे। महाराणा प्रताप जी का राज्याभिषेक 32 वर्ष की वय में दिनांक 28-2-1572 को हुआ था। महाराणा प्रताप ने कट्टर मुस्लिम शासक अकबर से अनेक युद्ध लड़े। उनका निधन 56 वर्ष की आयु में 19 जनवरी, 1597 को उदयपुर में हुआ। प्रसिद्ध दानवीर भामाशाह आप के मंत्री रहे। आपके उत्तरवर्ती राजा आपके यशस्वी पुत्र महाराणा अमर सिंह रहे। इनके शौर्य की गाथायें भी देशभक्त लोगों में स्मरण की जाती हैं।
महाराणा प्रताप के जीवन की प्रमुख घटना हल्दीघाटी एवं अन्य कुछ युद्ध थे। हल्दीघाटी का युद्ध १८ जून १५७६ ईस्वी को मेवाड़ की सेना तथा मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड़ की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया था। भील सेना के सरदार राणा पूंजा भी महाराणा प्रताप जी की ओर से इस युद्ध में सम्मिलित हुए थे। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लड़ने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे- हकीम खाँ सूरी।
हल्दीघाटी के इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया था। इस युद्ध मे राणा पूंजा भील का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की थी वहीं ग्वालियर नरेश राजा रामशाह तोमर भी अपने तीन पुत्रों कुँवर शालीवाहन, कुँवर भवानी सिंह, कुँवर प्रताप सिंह, पौत्र बलभद्र सिंह एवं सैकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गये।
इतिहासकार मानते हैं कि इस युद्ध में कोई विजयी नहीं हुआ पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा प्रताप सिंह विजयी हुए थे। अकबर की विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितनी देर तक टिक पाते, पर ऐसा कुछ नहीं हुआ। यह युद्ध कई दिनों तक चला ओेैर राजपूतों ने मुगलों के छक्के छुड़ा दिये थे। सबसे बड़ी बात यह थी कि युद्ध आमने-सामने से लड़ा गया था। महाराणा प्रताप की सेना ने मुगलों की सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था और मुगल सेना भागने लग गयी थी।
दिवेर का युद्ध भी राजस्थान के इतिहास में प्रसिद्ध है। सन् 1582 में हुआ दिवेर का युद्ध इतिहास का एक महत्वपूर्ण युद्ध माना जाता है। इस युद्ध में राणा प्रताप के खोये हुए राज्यों की पुनः प्राप्ती हुई थी। इसके पश्चात राणा प्रताप व मुगलो के बीच एक लम्बा संघर्ष युद्ध के रुप में चला। इस कारण कर्नल जेम्स टाड ने इस युद्ध को ‘मेवाड़ का मैराथन’ कहा था।
सन् 1579 से 1585 तक पूर्वी उत्तर प्रदेश, बंगाल, बिहार और गुजरात के मुगल अधिकृत प्रदेशों में विद्रोह होने लगे थे और महाराणा प्रताप भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे। अतः परिणामस्वरूप अकबर उस विद्रोह को दबाने में उलझा रहा और मेवाड़ पर से मुगलो का दबाव कम हो गया। इस बात का लाभ उठाकर महाराणा ने सन् 1585 ई. में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को और भी तेज कर लिया। महाराणा की सेना ने मुगल चौकियों पर आक्रमण शुरू कर दिए थे और तुरंत ही उदयपुर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थानों पर फिर से महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया था। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण किया, उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था, पूर्णरूप से उतनी ही भूमि पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी। बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर उसमें कोई परिवर्तन न कर सका। इस तरह महाराणा प्रताप लम्बी अवधि के संघर्ष के बाद मेवाड़ को मुक्त कराने में सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्णिम युग सिद्ध हुआ। मेवाड़ पर लगा अकबर के ग्रहण का अंत 1585 ई. में हुआ। उसके बाद महाराणा प्रताप अपने राज्य की व्यवस्थाओं में जुट गए। दुर्भाग्य से उसके ग्यारह वर्ष बाद लगभग 56 वर्ष की अल्प आयु में 19 जनवरी 1597 को उनकी अपनी नई राजधानी चावंड में मृत्यु हो गई।
सदैव स्मरणीय महाराणा प्रताप जी की जयन्ती 9 मई सन् 1920 को देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने एक ट्विीट किया है। उनके शब्द थे ‘भारत माता के महान सपूत महाराणा प्रताप को उनकी जयन्ती पर कोटि-कोटि नमन। देश प्रेम, स्वाभिमान और पराक्रम से भरी उनकी गाथा देशवासियों के लिए सदैव प्रेरणास्रोत बनी रहेगी।’ इस सन्देश का महत्व इसलिये है कि भारत के पूर्ववर्ती किसी प्रधानमंत्री ने शायद ही महाराणा प्रताप की जयन्ती पर इस प्रकार के ट्विीट किये हों अथवा श्रद्धांजलि दी हो। राजस्थान की पूर्व मुख्यमंत्री वसुधाराजे सिंधिया जी ने भी 9 मई 2020 को ट्विीट कर महाराणा प्रताप जी को अपनी श्रद्धांजलि दी थी। उनके शब्द थे ‘साहस व समर्पण के प्रतीक, मेवाड़ मुकुट, वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप की जयंती पर कोटि-कोटि वंदन। मैं सभी से आह्वान करती हूं कि महाराणा प्रताप के संघर्षमयी व स्वाभिमानी जीवन से प्रेरणा लें तथा जनसेवा का संकल्प लेकर नवभारत के निर्माण में भागादारी निभाएं।’
हम महाराणा प्रताप जी को उनकी 485वीं जयन्ती पर अपनी श्रद्धांजलि देते हैं। हमने इस लेख की सामग्री इण्टरनेट पर सर्च करके प्राप्त की तथा कुछ अपनी ओर से जोड़ी है। हम साभार इस लेख को प्रस्तुत कर रहे हैं। सत्य का प्रचार और असत्य का त्याकर करना व करवाना ही मनुष्य जीवन का उद्देश्य होता है। महाराणा प्रताप जी का जीवन प्रत्येक देशभक्त नागरिक के लिये प्रेरक एवं गौरव का विषय है। भारत के सभी नागरिक उनके जीवन एवं उनकी भावनाओं को अपने जीवन में चरितार्थ करें तभी भारत सुरक्षित रहते हुए उन्नति कर सकता है। आज के समय उनका जीवन एक प्रकाश स्तम्भ के समान है। इसी भावना व इसका विस्तार करने के लिए हम इस लेख को प्रस्तुत कर रहे हैं। ओ३म् शम्।
-मनमोहन कुमार आर्य
