इतिहास अमृत होता है। सतत विकासशील। जय-पराजय में समभाव। तथ्य-सत्य को ही अंगीकृत करता है। वह किसी के प्रभाव में नहीं आता, लेकिन सबको प्रभावित करता है। कालगति का तटस्थ दर्शक होता है, इसलिए इतिहासकारों को भी निष्पक्ष रहना चाहिए, लेकिन भारतीय इतिहास लेखन में अधिकांश इतिहासकारों ने स्वार्थवश मनमानी की है। कई महत्वपूर्ण घटनाओं […]
श्रेणी: स्वर्णिम इतिहास
फतेहसिंह जोरावरसिंह का बलिदान इसी प्रकार जोरावरसिंह व फतेहसिंह का बलिदान भी पंजाब की बलिदानी भूमि की एक पवित्र धरोहर है। अपने दोनों पुत्रों की शहादत के समय गुरु गोविन्द सिंह ने एक पौधे को उखाड़ते हुए कहा था कि जैसे यह पौधा जड़ से उखड़ आया है वैसे ही एक दिन हिन्दुस्तान से तुर्की […]
सजी रही बलिदानी परम्परा प्रभाकर माचवे अपनी पुस्तक ‘छत्रपति शिवाजी’ की भूमिका में लिखते हैं :- “शिवाजी के साथ समकालीन फारसी शाही इतिहासकारों ने और बाद में अंग्रेज इतिहासकारों ने भी बड़ा अन्याय किया है । कुछ लोगों ने उन्हें सिर्फ एक साहसी, लड़ाकू , लुटेरा तो औरों ने ‘पहाड़ी चूहा’ और दूसरे लोगों ने […]
अमरसिंह राठौर अप्रतिम बलिदान इसी प्रकार शाहजहाँ के दरबार में सलावत खां को दिनदहाड़े मारने वाले अमरसिंह राठौर की वीरता और बलिदानी भावना को भी कोई छद्मवेशी ही भूल सकता है। जिसने अपने सम्मान के लिए अपने प्राण गंवा दिये थे। इसके बाद सरदार बल्लू और उसके घोड़े चम्पावत के बलिदान को भी कोई देशभक्त […]
सर्वत्र क्रान्ति की ही गूँज थी 1605 ईस्वी में अकबर का देहान्त हुआ तो उसके पुत्र सलीम ने जहाँगीर के नाम से राजसत्ता प्राप्त की। जहाँगीर का शासनकाल 1627 ईस्वी तक रहा। लगभग 22 वर्ष शासन करने वाले इस मुगल बादशाह को भी हिन्दुओं ने चैन से शासन नहीं करने दिया । क्योंकि वह भी […]
जिनका महा ऋणी है यह देश 1530 ई0 में बाबर की मृत्यु हो गई तो उसके पश्चात उसका बेटा हुमायूँ गद्दी पर बैठा । हुमायूँ के साथ भी हिन्दुओं का परम्परागत दूरी बनाए रखने का संकल्प यथावत बना रहा । हुमायूँ अपने शासनकाल में कभी स्थिर रहकर शासन नहीं कर पाया । उसे शेरशाह सूरी […]
राजा मेहताब सिंह के नेतृत्व में जिस सेना ने राम मन्दिर की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया था उसके बारे में इतिहासकार कनिंघम ने कहा है कि :-” जन्मभूमि का मन्दिर गिराए जाने के समय हिन्दुओं ने अपनी जान की बाजी लगा दी थी और 173000 हिन्दुओं के शव गिरने के पश्चात ही मीर […]
हुमायूँ को भी मिली चुनौती बाबर के पश्चात उसका उत्तराधिकारी हुमायूँ बना था। हुमायूँ के शासनकाल में चित्तौड़ पर गुजरात के शासक बहादुर शाह के आक्रमण की प्रसिद्ध घटना का उल्लेख हमें इतिहास में मिलता है । उस युद्ध में रानी कर्णावती ने हुमायूँ के लिए कथित रूप से राखी भेजी थी । जब तक […]
गुर्जर सम्राट की जयंती के अवसर पर विशेष सम्राट मिहिर भोज का शासनकाल अरब साम्राज्य के अब्बासी वंश के खलीफाओं मौतसिम (833 से 842 ई0 ), वासिक ( 842 से 847 ई0 ) मुतवक्कल ( 847 से 861 ई0 ) , मुन्तशिर ( 861 से 862 ई0 ) मुस्तईन ( 862 से 866 ई0 ) […]
जहीरूद्दीन बाबर ने 1526 ई0 में भारत पर आक्रमण किया । जब वह भारत में एक बादशाह के रूप में काम करने लगा तो उसे भारत के लोगों से उपेक्षा और सामाजिक बहिष्कार के अतिरिक्त कुछ नहीं मिला। उसने स्वयं ने लिखा है :- “मेरी दशा अति शोचनीय हो गई थी और मैं बहुत अधिक […]