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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-61

स्वार्थभाव मिटे हमारा प्रेमपथ विस्तार हो गतांक से आगे…. प्रेम में सृजन है, और प्रेम में परमार्थभाव भी है। कैसे? अब यह प्रश्न है। इसके लिए महात्मा बुद्घ के जीवन के इन दो प्रसंगों  पर तनिक विचार कीजिए। महात्मा बुद्घ एक घर में ठहरे हुए थे। एक व्यक्ति जो उनसे घृणा करता था, उनके पास […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-60

वायु-जल सर्वत्र हों शुभ गन्ध को धारण किये गतांक से आगे…. इसके लिए हमको सिमटती हरियाली को पुन: विस्तार देने के लिए भी कार्य करना चाहिए। ‘वृक्ष लगाओ’ अभियान के अंतर्गत ‘पर्यावरण नियंत्रक सांस्कृतिक प्रकोष्ठ’ की स्थापना राष्ट्रीय स्तर पर होनी चाहिए। इस सांस्कृतिक प्रकोष्ठ के माध्यम से हम यज्ञ पर वैज्ञानिक आविष्कार अनुसंधानादि करें। […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-58

वायु-जल सर्वत्र हों शुभ गन्ध को धारण किये विश्व स्वास्थ्य संगठन इस समय छोटे-छोटे द्वीपीय देशों के अस्तित्व को लेकर बड़ी कठिन स्थिति में फंसा हुआ है। पर्यावरण असंतुलन की स्थिति से निपटने के लिए आज भी बहुत से देश मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार नहीं हैं। विश्व के अधिकांश देश ऐसे हैं-जिनके पास किसी गंभीर […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-57

वायु-जल सर्वत्र हों शुभ गन्ध को धारण किये पृथ्वी के समस्त प्राणधारियों को जीवन इस सूर्य से मिलता है। पृथ्वी सूर्य से ऊर्जा प्राप्त करती है और यही ऊर्जा इसकी सतह को गर्माती है। वैज्ञानिकों का मत है कि इस ऊर्जा का लगभग एक तिहाई भाग पृथ्वी को घेरने वाली गैसों के आवरण अर्थात वायुमंडल […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-56

लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए इस चिकित्सक की यह उद्घोषणा समझो कि हमारा स्वास्थ्य बीमा कर देना है। वह पूर्णत: आश्वस्त कर रहा है हमें कि होम की शरण में आओ और नीरोगता पाओ।  आज संसार के अधिकांश व्यक्ति मानसिक अस्तव्यस्तता और मानसिक रोगों से अधिक पीडि़त हैं। असंतुलित जीवनशैली और अमर्यादित दिनचर्या […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-55

लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए ज्ञान पूर्वक का अर्थ है कि इसमें किसी प्रकार का अज्ञानान्धकार, पाखण्ड, ढोंग या अंधविश्वास ना हो। हम सारी क्रियाओं का रहस्य समझते हुए उन्हें पूर्ण करें। ‘ओ३म् देव सवित:……’ मंत्र के माध्यम से हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि हे सर्वान्तर्यामिन परमेश्वर! आप हमारी समस्त त्रुटियों […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-54

लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए अग्नि प्रज्ज्वलन के मंत्रों में ‘ओ३म् भू: भुव: स्व:।’ प्रथम बार में बोला जाता है। इसका अभिप्राय है कि जिस अग्नि को हवन कुण्ड के मूल में प्रदीप्त किया जा रहा है उसके भी मूल में प्राणों को उत्पन्न करने की शक्ति विद्यमान है। इसी में भुव: अर्थात […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-53

लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए जब हम कहते हैं कि ‘लाभकारी हो हवन हर जीवधारी के लिए’ तो उस समय हवन के वैज्ञानिक और औषधीय स्वरूप को समझने की आवश्यकता होती है। हवन की एक-एक क्रिया का बड़ा ही पवित्र अर्थ है। इस अध्याय में हम थोड़ा-थोड़ा प्रकाश याज्ञिक क्रियाओं की वैज्ञानिकता पर […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-52

कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की क्रोध, मद, मोह, लोभ इत्यादि के विषय में भी ऐसा ही मानना चाहिए। अर्थात एक सीमा तक क्रोध (मन्यु) ईश्वरीय व्यवस्था के अंतर्गत उचित है, परंतु सीमोल्लंघन होते ही क्रोध भी ईश्वरीय व्यवस्था में बाधक हो जाता है। यदि पापी, दुष्ट, अत्याचारी, अनाचारी और किसी भी असामाजिक व्यक्ति […]

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पूजनीय प्रभो हमारे……

पूजनीय प्रभो हमारे……भाग-51

कामनाएं पूर्ण होवें यज्ञ से नरनार की प्रसिद्घ कवि शिव मंगलसिंह ‘सुमन’ अपनी ‘थीसिस’ के लिए शांति निकेतन गये। वहां से प्रस्थान करने से पूर्व वह आचार्य क्षिति मोहन सेन से आशीर्वाद लेने हेतु उनके कक्ष में गये। आचार्यश्री के चरण स्पर्श करके कवि महोदय ऊपर उठे तो आचार्यश्री के मुंह से निकलने वाले आशीष […]

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