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शोषणकारी व्यवस्था के विरुद्ध थे श्रीकृष्ण

प्रमोद भार्गव कृष्ण बाल जीवन से ही जीवनपर्यंत समााजिक न्याय की स्थापना और असमानता को दूर करने की लड़ाई देव व राजसत्ता से लड़ते रहे। वे गरीब की चिंता करते हुए खेतीहर संस्कृति और दुग्ध क्रांति के माध्यम से ठेठ देशज अर्थ व्यवस्था की स्थापना और विस्तार में लगे रहे। सामारिक दृष्टि से उनका श्रेष्ठ […]

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आदिकाल से ही है मनुष्य शांति की खोज में

देवेन्द्रसिंह आर्य (चेयरमैन) प्राचीन काल से अद्यतन पर्यन्त मानव की इच्छा रही है -शांति की खोज। इसलिए चाहे आज का मानव कितना भी भौतिक संसाधनों से परिपूर्ण है, तथा कितना भी व्यस्त है, परंतु वह एक असीम शांति की चाह में अवश्य है। मानव को असीम शांति कैसे प्राप्त हो सकती है? इस पर हमारे […]

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सच्चे तीर्थ माता-पिता-आचार्य व आप्त विद्वानों के सदुपदेश आदि हैं।

आजकल कुछ स्थानों अथवा नदी व सरोवरों को तीर्थ कहा जाता है। किसी से कोई पूछे कि इन तीर्थ स्थानों से इतर देश के अन्य सभी स्थान सच्चे तीर्थ क्यों नहीं है, तो इसका उत्तर शायद कोई नहीं दे सकेगा। तीर्थ शब्द संस्कृत भाषा का है और इसका प्रयोग वेद व वैदिक साहित्य में मिलता […]

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अंधविश्वासों का खण्डन समाज की उन्नति के लिए परम आवश्यक

जिस प्रकार से मनुष्य शरीर में कुपथ्य के कारण समय-समय पर रोगादि हो जाया करते हैं, इसी प्रकार समाज में भी ज्ञान प्राप्ति की  समुचित व्यवस्था न होने के कारण सामाजिक रोग मुख्यतः अन्धविश्वास, अपसंस्कृति एवं किंकर्तव्यविमूढ़ता आदि हो जाया करते हैं। अज्ञान, असत्य व अन्धविश्वास का पर्याय है। जहां अज्ञान होगा वहां अन्धविश्वास वर्षा […]

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महर्षि दयानन्द ने देश व धर्म के लिए माता-पिता-बन्धु-गृह व अपने सभी सुखों का स्वेच्छा से त्याग किया

-विश्व इतिहास की अन्यतम् घटना- भारत संसार में महापुरूषों को उत्पन्न करने वाली भूमि रहा है। यहां प्राचीन काल में ही अनेक ऋषि मुनि उत्पन्न हुए जिन्होंने वेदानुसार आदर्श जीवन व्यतीत किया। इन ऋषियों में से कुछ के नाम ही विदित हैं।  अनेक ऋषि मुनियों ने महान कार्यों को किया परन्तु उन्होंने न तो अपना […]

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हस्तकरघा क्षेत्र के द्वारा स्वदेशी को प्रश्रय देने की कोशिश

अशोक प्रवृद्ध स्वाधीनता संग्राम के दौरान वर्ष 1905 में 7 अगस्त को स्वदेशी आंदोलन की शुरुआत की गई थी। भारत सरकार ने इसी की याद में 7 अगस्त को राष्ट्रीय हथकरघा दिवस के रुप में घोषित किया है।हस्तकरघा क्षेत्र के द्वारा  स्वदेशी को प्रश्रय देने के उद्देश्य सेप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 7 अगस्त शुक्रवार को […]

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ईश्वर की कृपा व वेदाध्ययन से ही नास्तिकता की समाप्ति सम्भव

‘खुदा के बन्दो को देखकर खुदा से मुनकिर हुई है दुनिया, कि जिसके ऐसे बन्दे हैं वो कोई अच्छा खुदा नहीं।।‘ आजकल संसार में सभी मतों के शिक्षित व धनिक मनुष्यों का आचरण प्रायः श्रेष्ठ मानवीय गुणों के विपरीत पाया जाता है जो मनुष्यों को नास्तिक बनाने में सहायक होता। इसका एक कारण ऐसे लोगों […]

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सांस्कृतिक भारत का अखंड स्वरुप

डा0 कुलदीप चन्द अग्निहोत्री कहा जाता है कि वीर सावरकर की अस्थियाँ अभी भी उनके वंशजों के पास सुरक्षित हैं । वे अपनी मृत्यु से पूर्व वसीयत कर गये थे कि उनकी अस्थियाँ सिन्धु नदी में तभी प्रवाहित की जायें जब भारत एक बार फिर से अखंड हो जाये । अखंड भारत का क्या अर्थ […]

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मदरसे, आधुनिक शिक्षा और ताजा विवाद

जावेद अनीस हर फैसले का एक परिपेक्ष होता है, महाराष्ट्र सरकार के उस फैसले को भी एक परिपेक्ष में देखने की जरूरत है जिसमें निर्णय लिया गया है कि जो मदरसे महाराष्ट्र सरकार का पाठ्यक्रम नहीं अपनायेंगे उन्हें स्कूल नहीं माना जाएगा, इसका मतलब है कि वहां पढऩे वाले बच्चों को ‘आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रेन’ […]

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भाषा से खुलेंगे रोजगार के द्वार

डा. भरत झुनझुनवाला कौशल विकास के माध्यम से रोजगार उत्पन्न करने के लिए सरकार को चाहिए कि जर्मन, फ्रेंच, चाइनीज तथा जापानी जैसी भाषाओं का भारत में विस्तार करें। स्नातक छात्रों के लिए एक विदेशी भाषा को सीखना अनिवार्य बना देना चाहिए। कई अमरीकी विश्वविद्यालयों में ऐसी व्यवस्था लागू है। देश के हर जिले में […]

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