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नलकूप क्रांति से मिल रही है नई चुनौती

प्रमोद भार्गव हमारे देश में बीते चौसठ सालों के भीतर जिस तेजी से कृत्रिम, भौतिक और उपभोक्तावादी संस्कृति को बढावा देने वाली वस्तुओं का उत्पादन बढ़ा है उतनी ही तेजी से प्राकृतिक संसाधनों का या तो क्षरण हुआ है या उनकी उपलब्धता घटी है। ऐसे प्राकृतिक संसाधनों में से एक है पानी। ‘जल ही जीवन […]

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पर्यावरण संकट को बढ़ाती हिमालय की दुर्दशा

दिनेश पंतइस वर्ष देश में उम्मीद से कम और अनियमित वर्षा ने ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे की चिंता को बढ़ा दिया है। विकास और उन्नति के नाम पर औद्योगिकीकरण ने पर्यावरण को सबसे अधिक नुकसान पहुंचाया है। निवेश के बढ़ते अवसर ने गांव को भी तरक्की के नक्षे पर मजबूती से उकेरा है। गांवों […]

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असम का हिंसाचार: जिन्ना और भुट्टोवादी सोच का परिणाम

19 जुलाई से पूर्वोत्तर के असम प्रांत में जारी हिंसा को लेकर पूरा देश चिंतित है। इस हिंसा को लेकर जहां देश के तमाम राजनीतिक दल तरह-तरह के तर्क प्रस्तुत कर रहे हैं वहीं गैर राजनीतिक संगठनों द्वारा भी अनेक प्रकार की बातें कही जा रही हैं। आखिर इस हिंसा का कारण क्या है? क्या […]

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‘कोलगेट’ पर प्रधानमंत्री का लचर बचाव / लालकृष्ण आडवाणी

कोयला आवंटन को लेकर संसद में गतिरोध एक सप्ताह से ज्यादा समय से बना हुआ है। एनडीए ने इस गतिरोध को समाप्त करने हेतु प्रस्ताव दिया है कि इन सभी आवंटनों को रद्द कर दिया जाए और इन्हें आवंटित करने वाली स्क्रीनिंग कमेटी की प्रक्रिया की न्यायिक जांच कराई जाए। सरकार इस पर अभी तैयार […]

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मृत्यु शय्या पर पड़े भीष्म से नही पूछा कोई सवाल

द्रोपदी जैसी सन्नारी पर एक आरोप ये भी है कि जब महाभारत युद्घ के पश्चात पाण्डवों को मृत्यु शय्या पर पड़े भीष्म ने उपदेश दिये तो उस समय द्रोपदी ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए पितामह से कहा कि आपके ये उपदेश उस समय कहां गये थे जब मेरा चीरहरण किया जा रहा था। कहा […]

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हिंदी भाषा: हमारे राष्ट्रीय गौरव की प्रतीक

कृष्ण चंद्र टवाणी राष्ट्र में भावनात्मक एकता स्थापित करने तथा उसके उत्थान व विकास में भाषा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसी दृष्टिकोण में भारतीय संविधान में हिंदी को ही राष्ट्रभाषा घोषित किया गया है। हिंदी हमारे राष्ट्र की आत्मा है, प्राण है। चेकोस्कोवाकिया के प्रसिद्घ हिंदी विद्वान डॉक्टर ओदोलेन स्मेकल के विचारों को यहां […]

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प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने लंबे मौन के बाद कहा- लोग समझें कि पैसे तो पेड़ पर उगते नहीं हैं

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार पर हो रहे चौतरफा हमलो का जबाब देने के लिए अब खुद एक अर्थशास्त्री के रूप में कमान सम्हाल ली है। परन्तु यह भी एक कड़वा सच है कि यूपीए-2 इस समय अपने कार्यकाल के सबसे बुरे दौर से गुजर रही है। जनता की नजर में सरकार की साख लगातार […]

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पाक के हिंदुओं की दयानीय दशा

चंद्रमोहन पाकिस्तान से लगातार हिंदू परिवार भारत में प्रवेश कर रहे हैं। कई रेल के रास्ते आए तो कई पैदल वाघा अटारी सीमा पार कर यहां पहुंचे हैं। जो टे्रन से आए वह इतना सामाना लेकर आए कि साफ है कि वह यहां बसने आए हैं। उनके गृहमंत्री रहमान मलिक को बदनामी का डर है। […]

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योग्यता पर अयोग्यता की जीत है आरक्षण

भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ही स्पष्ट किया गया है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्रदान किया जाएगा। संविधान की यह अवधारणा बहुत ही न्यायसंगत है। कोई भी व्यक्ति सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय प्राप्त करने से वंचित नही किया जाना चाहिए। यदि किसी व्यक्ति को इन तीनों प्रकार […]

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भारतीय संस्कृति, दयानंद और संविधान के मूल अधिकार

भारतीय संस्कृति मानव की स्वतंत्रता की ही नही अपितु प्राणि-मात्र की स्वतंत्रता की भी उद्घोष है। जिस देशकी संस्कृति में पग-पग पर पशुओं और वनस्पतियों की रक्षा करने के लिए मनुष्य को प्रेरित किया जाता हो उस देश के लिए यह कहना सर्वथा अनुचित ही है कि इस देश में मानव के मौलिक अधिकारों का […]

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