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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-6

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-6 वैदिक गीता-सार सत्य गीता ज्ञान व्यक्ति को भी परिमार्जित करता है और समाज को भी परिमार्जित करता है। उसका परिमार्जनवाद उसे हर व्यक्ति के लिए उपयोगी और संग्रहणीय बनाता है। अपने इस प्रकार के गुणों के कारण ही गीता सम्पूर्ण संसार का मार्गदर्शन हजारों वर्षों से करती […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-5 वैदिक गीता-सार सत्य हम अपनों को अपना मानकर उधर से किसी हमला की या विश्वासघात की अपेक्षा नहीं करते। अपनों की ओर से हम पीठ फेरकर खड़े हो जाते हैं। यह मानकर कि इधर से तो मैं पूर्णत: सुरक्षित हूं। कुछ समय बाद पता चलता है कि […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-2

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-2 वैदिक गीता-सार सत्य गीता की उपयोगिता इसलिए भी है कि यह ग्रन्थ हमें अपना कार्य कत्र्तव्य भाव से प्रेरित होकर करते जाने की शिक्षा देती है। गीता का निष्काम-भाव सम्पूर्ण संसार को आज भी दु:खों से मुक्ति दिला सकता है। परन्तु जिन लोगों ने गीता ज्ञान को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-4

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-4 वैदिक गीता-सार सत्य डा. देसाई को अपने लक्ष्य की खोज थी और वह अपने लक्ष्य पर पहुंच भी गये थे, परन्तु अभी वास्तविक लक्ष्य (पण्डा और राजा से मिलना) कुछ दूर था। उन्होंने अपने साथ एक मुसलमान पथप्रदर्शक रख लिया था। यह पथप्रदर्शक वहां के लोगों को […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-3

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-3 वैदिक गीता-सार सत्य मानव जीवन की ऊहापोह हमारा सारा जीवन इस ऊहापोह में व्यतीत हो जाता है कि मुझे क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए? मेरे लिए क्या उचित है? और क्या अनुचित है? महाभारत के युद्ध के समय अर्जुन के समक्ष भी यही प्रश्न […]

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गीता का कर्मयोग और आज का विश्व संपादकीय

गीता का कर्मयोग और आज का विश्व, भाग-1

वैदिक गीता-सार सत्य भी-कभी मन में आता है कि वह समय कितना पवित्र और प्यारा होगा, जब भगवान श्री कृष्ण जी इस भूमण्डल पर विचरते होंगे? पर अगले ही क्षण मन में यह विचार भी आता है कि उस काल को भी पवित्र और प्यारा नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यदि वह काल पवित्र और […]

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