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बिखरे मोती

बिखरे मोती-भाग 236

गतांक से आगे……… हे अर्जुन! संसार से ऊंचा उठने के लिए राग-द्वेष आदि द्वन्द्वों से रहित होने की बड़ी भारी आवश्यकता है, क्योंकि ये ही वास्तव में मनुष्य के शत्रु हैं, जो उसको संसार में फंसाये रखते हैं, और भगवान के चरणों में ध्यान नहीं लगने देते हैं। इसलिए तू सम्पूर्ण द्वन्द्वों से रहित हो […]

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बिखरे मोती-भाग 235

रजोगुण और तमोगुण की तरह सत्त्वगुण में मलिनता नहीं है इसलिए भगवान कृष्ण ने गीता के चौदहवें अध्याय के छठे श्लोक में सत्त्वगुण को ‘अनामयम्’ कहा है अर्थात निर्विकार कहा है। निर्मल और निर्विकार होने के कारण यह परमात्मा तत्त्व का ज्ञान कराने में सहायक है। सत्त्वगुण की प्रधानतमा से ‘मन’ को सहजता से काबू […]

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बिखरे मोती-भाग 234

बालक नरेन्द्र में कुशाग्र बुद्घि हृदय में उदारता, ऋजुता समाज और राष्टï्र के लिए कुूछ कर गुजरने का जज्बा, वाकपटुता, वाकसंयम, प्रत्युत्तर मति और बहुमुखी प्रतिभा अप्रतिम थी, जिसे उनके गुरूरामकृष्ण परमहंस ने और भी धारदार बना दिया। प्रभावशाली बना दिया। बड़ा होकर यही बालक स्वामी विवेकानंद के नाम से विश्व विख्यात हुआ तथा ज्ञान […]

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बिखरे मोती-भाग 233

गुरू तो बादल की तरह है, शहद की मक्खी की तरह है। जैसे-शहद की मक्खी न जाने कितने प्रकार के असंख्य पुष्पों के गर्भ से शहद के महीन कणों को अपनी सूंडी से चूसकर शहद के छत्ते में डाल देती है, उसे शहद से सराबोर कर देती है, ऐसे बादल भी न जाने कितने पोखरों, तालाबों, […]

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बिखरे मोती-भाग 232

गतांक से आगे…. गुरू व्यक्ति नहीं, एक दिव्य शक्ति है :- नर-नारायण है गुरू, देानों ही उसके रूप। संसारी क्रिया करै, किन्तु दिव्य स्वरूप ।। 1168 ।। व्याख्या :-”गुरू व्यक्ति नहीं, एक दिव्य शक्ति है।” वे बेशक इंसानी चोले में खाता-पीता उठता बैठता, सोता-जागता, रोता-हंसता तथा अन्य सांसारिक क्रियाएं करता हुआ दिखाई देता है, किंतु […]

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