कुंभकर्ण ने अपने भाई विभीषण को अपने आगे से सम्मान पूर्वक शब्दों के माध्यम से हटा दिया। कुंभकर्ण जानता था कि इस महाविनाशकारी युद्ध में उसके सहित सारी राक्षस सेना मारी जाएगी। अंत में रावण भी मारा जाएगा। ऐसे में विभीषण को सुरक्षित रहना चाहिए। अतः अच्छा यही होगा कि मैं उन पर किसी प्रकार का प्राण घातक हमला न करूं। जब व्यक्ति गलत पक्ष की ओर से लड़ता है तो उसका मनोबल पहले ही टूट जाता है। जिसके साथ धर्म खड़ा होता है, उसका मनोबल ऊंचा होता है। इसमें दो मत नहीं कि रावण और उसके अन्य योद्धाओं के पास अपरिमित बल था। पर अधर्म और अनीति पर चलते रहने के कारण उनका मनोबल साथ छोड़ता जा रहा था। यद्यपि रावण ने अपने अहंकार के कारण अंतिम क्षणों तक मनोबल को बनाए रखने का नाटक किया, पर सच यह था कि वह भी इस प्रकार के मनोबल को केवल लोकाचार के लिए बनाये रखकर ढो ही रहा था।
कुंभकरण का राम ने, किया सही सत्कार ।
कुंभकरण हंसने लगा, अब राम तुम्हारी बार ।।
कई अस्त्र श्री राम ने , किये आज प्रयोग ।
अंत में एंद्रास्त्र से , कटा शत्रु का रोग ।।
कुंभकरण का सिर कटा, लंका हुई अनाथ।
छूट गया लंकेश से , बलशाली का साथ ।।
बलशाली के अंत पर , रावण करे विलाप ।
खड़ी पराजय सामने , साथ लिए सब पाप ।।
मेघनाद ही आश थी , रावण की अब खास ।
समर्पित होकर आ गया , स्वयं पिता के पास ।।
मेघनाद अपने पिता की अंतिम आशा था। रावण अब तक बहुत भारी क्षति उठा चुका था। उसके अनेक योद्धा स्वर्ग सिधार चुके थे। इसके उपरांत भी उसका अहंकार अभी नष्ट होने का नाम नहीं ले रहा था। लगता था कि वह पूर्ण विनाश को प्राप्त होकर ही श्री राम की शरण में जाएगा ?
चुनौती को स्वीकार कर, चला समर की ओर।
पिता की आशा बढ़ी , होगी निश्चय भोर।।
रणभूमि में जा अड़ा , करने लगा निज काम।
जो भी आया सामने , कर दिया काम तमाम।।
इंद्रजीत ने राम को , हरा दिया रण बीच ।
पराजित लक्ष्मण को किया, सेना को भयभीत।।
इंद्रजीत ने रामचंद्र जी और लक्ष्मण दोनों को ही गंभीर रूप से अधमरा कर दिया। इस समाचार ने वानर दल में एक बार फिर निराशा को जन्म दे दिया।
राम लखन बेहोश थे, जामवंत सुग्रीव।
अंगद और हनुमान सब, बैठे झुकाए शीश।।
शोकमग्न वानर सभी , संकट था गंभीर।
सबकी आशा एक थे , हनुमान महावीर।।
डॉ राकेश कुमार आर्य
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )