पौराणिक कथा : गोकुल में नन्दबाबा ने पुत्र का जन्मोत्सव बड़े धूम-धाम से मनाया। ब्राह्मणों और याचकों को यथोचित गौओं तथा स्वर्ण, रत्न, धनादि का दान किया। कर्मकाण्डी ब्राह्मणों को बुलाकर बालक का जाति कर्म संस्कार करवाया। कुछ दिनों पश्चात् कंस ढूंढ-ढूंढ कर नवजात शिशुओं का वध करवाने लगा। उसने पूतना नाम की एक क्रूर राक्षसी को ब्रज में भेजा।पूतना नाम की एक बड़ी क्रूर राक्षसी थी। उसका एक ही काम था- बच्चों को मारना। कंस की आज्ञा से वह नगर, ग्राम और अहीरों की बस्तियों में बच्चों को मारने के लिए घूमा करती थी।
पूतना का शरीर बड़ा भयानक था, उसका मुँह हल के समान तीखी और भयंकर दाढ़ों से युक्त था। उसके नथुने पहाड़ की गुफ़ा के समान गहरे थे और स्तन पहाड़ से गिरी हुई चट्टानों की तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे। भयंकर; भुजाऐं, जाँघें और पैर नदी के पुल के समान तथा पेट सूखे हुए सरोवर की भाँति जान पड़ता था।
पूतना ने अति मनोहर नारी का रूप धारण किया। वह आकाशमार्ग से चल सकती थी। इसलिए वह आकाश मार्ग से गोकुल पहुँच गई। गोकुल में पहुँच कर वह सीधे नन्दबाबा के महल में गई और शिशु के रूप में सोते हुये श्रीकृष्ण को गोद में उठाकर अपना दूध पिलाने लगी। उसकी मनोहरता और सुन्दरता ने यशोदा और रोहिणी को भी मोहित कर लिया, इसलिये उन्होंने बालक को उठाने और दूध पिलाने से नहीं रोका।
पूतना के स्तनों में हलाहल विष लगा हुआ था। अन्तर्यामी श्रीकृष्ण सब जान गये और वे क्रोध करके अपने दोनों हाथों से उसका कुच थाम कर उसके प्राण सहित दुग्धपान करने लगे। उनके दुग्धपान से पूतना के मर्म स्थलों में अति पीड़ा होने लगी और उसके प्राण निकलने लगे। वह चीख-चीख कर कहने लगी- “अरे छोड़ दे! छोड़ दे! बस कर! बस कर!” वह बार-बार अपने हाथ पैर पटकने लगी और उसकी आँखें फट गईं। उसका सारा शरीर पसीने में लथपथ होकर व्याकुल हो गया। वह बड़े भयंकर स्वर में चिल्लाने लगी। उसकी भयंकर गर्जना से पृथ्वी, आकाश तथा अन्तरिक्ष गूँज उठे। बहुत से लोग बज्रपात समझ कर पृथ्वी पर गिर पड़े। पूतना के शरीर ने गिरते-गिरते भी छह कोस के भीतर के वृक्षों को कुचल डाला।
पूतना अपने राक्षसी स्वरूप को प्रकट कर धड़ाम से भूमि पर बज्र के समान गिरी, उसका सिर फट गया और उसके प्राण निकल गये।
जब यशोदा, रोहिणी और गोपियों ने उसके गिरने की भयंकर आवाज को सुना, तब वे दौड़ी-दौड़ी उसके पास गईं। उन्होंने देखा कि बालक कृष्ण पूतना की छाती पर लेटा हुआ स्तनपान कर रहा है तथा एक भयंकर राक्षसी मरी हुई पड़ी है। उन्होंने बालक को तत्काल उठा लिया और पुचकार कर छाती से लगा लिया। वे कहने लगीं- “भगवान चक्रधर ने तेरी रक्षा की। भगवान गदाधर तेरी आगे भी रक्षा करें।” इसके पश्चात् गोप ग्वालों ने पूतना के अंगों को काट-काट कर गोकुल से बाहर ला कर लकड़ियों में रख कर जला दिया।
विश्लेषण : आप स्वयं निर्णय ले की कथा कितनी सच और कितनी गप्प है।
देवताओ ने पहले ही कंस को कृष्ण के जन्म की सूचना दे दी , किसी का भविष्य तो ईश्वर भी नहीं जानता। और ये कौन से देवता है। ३३ कोटि के देवता बताये गए है ,इनमे कोई भी मनुष्य की भांति बोलने आदि में सक्षम नहीं है और कोई भी शरीरधारी , इन्द्रिय वाला नहीं है।
पूतना के शरीर का क्या शानदार वर्णन किया है की उसके नथुने पहाड़ की गुफ़ा के समान गहरे थे और स्तन पहाड़ से गिरी हुई चट्टानों की तरह बड़े-बड़े थे। लाल-लाल बाल चारों ओर बिखरे हुए थे। भयंकर; भुजाऐं, जाँघें और पैर नदी के पुल के समान तथा पेट सूखे हुए सरोवर की भाँति जान पड़ता था।
दरअसल महापुरुष कृष्ण को मायावी सिद्ध करने के लिए इस तरह की असत्य परी कथाये लिखी गयी है। उपरोक्त के अतिरिक्त कृष्ण को गोपियों के साथ नाचने वाला , १६००० पत्नी वाला भगवन , और रुक्मणि के अलावा राधा के साथ उसके नाच गनी द्वारा कृष्ण के वास्तविक चरित्र के साथ खिलवाड़ की गयी है।
कोई भी कथा कहने वाला गौ पालन की बात ,गौ शाला खोलने आदि के लिए इतनी जोर देकर नहीं कहता जितना आनंद उसको कृष्ण की रास लीला और उसको मायावी सिद्ध करने में लगाया जाता है।
ज्ञान वर्धन के लिए वास्तविक गीता सही भावार्थ के साथ पढ़ना चाहिए अन्यथा योगिराज कृष्ण का अपमान ये कथाकार पौराणिक ऐसे ही करते रहेंगे।