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आज का चिंतन

परमात्मा हमें क्या देता है? सर्वोच्च इन्द्र की महिमा के लिए शब्द प्रस्तुत करने में कौन सक्षम है?

परमात्मा हमें क्या देता है?
सर्वोच्च इन्द्र की महिमा के लिए शब्द प्रस्तुत करने में कौन सक्षम है?
सर्वोच्च इन्द्र के द्वारा कौन कुचला जाता है?

दुरोअश्वस्य दुरइन्द्रगोरसिदुरो यवस्य वसुनइनस्पतिः।
शिक्षानरः प्रदिवोअकामकर्शनः सखासखिभ्यस्तमिदं गृणीमसि।।
ऋग्वेदमन्त्र 1.53.2

(दुरः) दाता, सुखों का द्वार (अश्वस्य ) अश्वों का, कर्मेंन्द्रियों का (दुरः) दाता, सुखों का द्वार (इन्द्र) परमात्मा, इन्द्रियों का नियंत्रक (गोः) गाय आदि का, ज्ञानेन्द्रियों का (असि) हो (दुरः) दाता, सुखों का द्वार (यवस्य ) यव आदि का (वसुनः) आवास के साधनों का (इनः) स्वामी (पतिः) संरक्षक (शिक्षानरः) शिक्षा देने के लिए (प्रदिवः) शिक्षा लागू करने के लिए प्रकाशित (अकाम कर्शनः) आलसी और अकर्मण्य लोगों को नष्ट करना (सखा सखिभ्यः) मित्रों के लिए मित्र (तम्) आपके लिए (इदम्) यह (प्रार्थना, निवेदन) (गृणीमसि) हम स्तुति करते हैं।

व्याख्या:-
परमात्मा हमें क्या देता है?

इन्द्र अर्थात् परमात्मा के निम्न लक्षणों के कारण हम परमात्मा की महिमा में अपने शब्दों को प्रस्तुत करते हैं:-
(1) वह अश्वों का दाता है। अश्व अर्थात् यातायात के सभी साधन तथा हमारी कर्मेन्द्रियाँ।
(2) वह गऊओं का दाता है। गाय अर्थात् लाभकारी पशु तथा हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ।
(3) वह जौ अर्थात् सभी अनाजों का दाता है।
(4) वह सभी प्रकार के आवासों का मालिक तथा संरक्षक है।
(5) वह हमें सभी प्रकार के ज्ञान और प्रकाश देता है जिससे हम उसके ज्ञान का क्रियान्वयन कर सकें।
(6) वह आलसी और थके हुए लोगांे को कुचल देता है।
(7) वह मित्रों का मित्र है।

जीवन में सार्थकता: –
सर्वोच्च इन्द्र की महिमा के लिए शब्द प्रस्तुत करने में कौन सक्षम है?
सर्वोच्च इन्द्र के द्वारा कौन कुचला जाता है?

सर्वोच्च ऊर्जा, इन्द्र अर्थात् परमात्मा ने बिना किसी भेदभाव के सब जीवों के प्रयोग करने के लिए यह सृष्टि प्रदान की है। जो मानव अपनी इन्द्रियों पर यथार्थ में नियंत्रण करके इन्द्र बनते हैं, केवल वही सर्वोच्च इन्द्र की महिमागान के लिए अपने शब्द और वाणियाँ प्रस्तुत करने के योग्य होते हैं। केवल वीर पुरुष ही इस सृष्टि तथा इस जीवन के महत्त्व और सदुपयोग के प्रति चेतन होता है। इन्द्र के अतिरिक्त अन्य सभी लोग सर्वोच्च इन्द्र के प्रति लगाव के बिना अचेतन रहकर इस सृष्टि का भोग करते हैं। इस प्रकार ऐसे सभी लोग केवल पाश्विक जीवन जीते हुए यथार्थ में परमात्मा की महिमा में अपने शब्द प्रस्तुत करने के योग्य नहीं होते। सबसे घटिया स्तर पर आलसी और थके हुए लोग तो सर्वोच्च इन्द्र के द्वारा सामान्य रूप से ही कुचल दिये जाते हैं।


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