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इतिहास के पन्नों से

25 दिसंबर का बड़ा दिन और भीष्म पितामह भाग 1

महान संत का महानिर्वाण दिवस-25 दिसंबर
आर्य देश भारत के लिए 25 दिसंबर पर्व का विशेष महत्व
DR D K Garg -Plz share karei
Part-1
मित्रो 25 दिसंबर को ईसाई समुदाय जीसस के नाम पर उत्सव की तरह मनाया करता है,लेकिन वास्तविकता पर आपने कभी विचार नहीं किया ,सच ये है कि उन्होंने ये हमारी संस्कृति पर अतिक्रमण किया है और आधुनिकता की दौड़ में आनंद के नाम पर अपनी संस्कृति को छोड़कर विधर्मी बनते जा रहे हैं और पूर्वजो का उपहास कर रहे है ,परंतु अब समय की मांग है कि वास्तविकता सामने लायी जाए।
क्या आप भी बोलते हैं हैप्पी क्रिसमस डे?क्या आप भी देते हैं बड़े दिन की बधाइयां ? यदि हाँ तो जानिए इसकी वास्तविकता का इतिहास। चैकना मत, यह दिन बिल्कुल भी जीसस से जुड़ा हुआ नही है न ही कोई ऐसा प्रमाण है।
क्रिसमस डे पर कुछ विशेष बातो पर ध्यान दे —
१ संता २ संता के भगवा कपडे ३ संता की सफेद दाढ़ी ४। २५ दिसंबर का दिन ५ निर्वाण दिवस
अब विस्तार से —
ऽसंता शब्द संत से बिगड़ कर बना है ,जैसे योग को योगा ,वेद को वेदा अंग्रेजी में बोलते ध्लिखते है।
ऽसांता के भगवा कपडे हिन्दू ध्वैदिक संस्कृति में सन्यासी की वेषभूषा का प्रतीक है ,यानि की संत की भगवा वेशभूषा ,कभी आपने इसा मसीह की कोई फोटो भगवा कपड़ो में नहीं देखी होगी ,ना ही ईसा मसीह और ईसाई प्रचारक भगवा वस्त्र पहनते है। इससे भी स्पष्ट है की ये पर्व हिन्दूध्वैदिक सन्यासी से जुड़ा हुआ है।
ऽसंता की सफेद दाढ़ी इस बात का परिचायक है की वृद्ध सन्यासी ,जिसके कपडे भगवा होते है उसकी सफेद दाढ़ी भी है।
ऽ २५ दिसंबर का दिन इस बात का परिचायक है की इस दिन के आसपास उत्तेरायां सुरु हो जाता है
ऽनिर्वाण दिवस से तात्पर्य ,संत द्वारा प्राण त्यागने से है।
संक्षेप में एक महान संत ,जो वृद्ध भी था , जिसने उत्तरायण के दिन प्राण त्यागे थे उसकी याद में मनाये जाने वाला पर्व २५ दिसंबर। ईसाई माह आने से पूर्व हिंदी माह की गणना के अनुसार ये २५ दिसंबर २-४ दिन आगे पीछे भी था ,परन्तु २५ दिसंबर को अंग्रेजो ने निश्चित कर दिया।
अब इतिहास की तरफ जाते है तो स्पष्ट हो जाता है की इस दिन महान योद्धा ,महान संत,महाभारत काल में भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे थे। जिनका सम्मान ईसाई समुदाय ने भी किया लेकिन दुर्भाग्य से सांता नाम का काल्पनिक पात्र खड़ा कर दिया।चैकना मत, यह दिन बिल्कुल भी जीसस से जुड़ा हुआ नही है। न ही कोई ऐसा प्रमाण है की ये दिन ेंदजं – बसंने से जुड़ा हुआ है।
यह दिन महाभारत के पितामह गंगा पुत्र भीष्म पितामह से सम्बंध रखता है।
समझे महाभारत का इतिहास: महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था तथा जब धर्म सम्बन्धी शास्त्रीय बातें और दान की विधि पितामह के श्री मुख से युधिष्ठिर आदि ने सुन ली और सब शंकाओं का समाधान प्राप्त कर लिया। धर्म अर्थ के विषय में उठने वाले संपूर्ण संशय को मिटा लिया और सब चुप हो गए उस समय सारा राज मंडल देर तक स्तब्ध होकर बैठा रहा, तो महर्षि व्यास जी ने भीष्म पितामह से पूछा कि अब राजा युधिष्ठिर शांत हो चुके हैं । इनके शोक और संदेह निवृत हो चुके हैं। यह अपने भाइयों, अनुगामी, राजा और योगिराज श्री कृष्ण के साथ आपके समीप बैठे हुए हैं। अब आप इन्हें हस्तिनापुर जाने की आज्ञा दीजिए।
ऐसा सुनकर महाराज युधिष्ठिर को हस्तिनापुर जाने की आज्ञा अपनी मधुर वाणी में भीष्म पितामह ने दी।
बेटा! जब सूर्यनारायण दक्षिणायन से निवृत होकर उत्तरायण पर आ जाएं उस समय फिर हमारे पास आना।
युधिष्ठिर ने‘ बहुत अच्छा‘ कहकर पितामह की आज्ञा स्वीकार की और प्रणाम करके परिवार सहित हस्तिनापुर की ओर चले।
तत्पश्चात राजा युधिष्ठिर ने 50 दिनों तक हस्तिनापुर में रहने के बाद जब सूर्य देव को दक्षिणायन से निवृत्त होकर उत्तरायण में आए देखा तो उन्हें कुरुश्रेष्ठ पितामह भीष्म जी की मृत्यु का स्मरण हो आया और वे यज्ञ करने एवं अन्य कर्मकांड हेतु हस्तिनापुर से चलने को उद्यत हुए, जाने से पहले उन्होंने भीष्म जी का अंत्येष्टि संस्कार करने के लिए घृत, माला, सुगंधित द्रव्य, रेशमी वस्त्र, चंदन, काला अगुरु, अच्छे अच्छे फूल तथा नाना प्रकार के रत्न आदि सामग्री भेज दी।
धृतराष्ट्र, गांधारी, माता कुंती, सब भाई, श्रीकृष्ण, बुद्धिमान विदुर और सात्यकि को साथ लेकर वह हस्तिनापुर नगर से बाहर निकले उनके साथ रथ, हाथी, घोड़े आदि राजोचित उपकरण और वैभव का महान ठाठ बाट था। महा तेजस्वी युधिष्ठिर भीष्म जी के स्थापित किए हुए, विविध अग्नियों को आगे रखकर स्वयं पीछे पीछे चल रहे थे। यथा समय में कुरुक्षेत्र में शांतनु नंदन पितामह भीष्म जी के पास जा पहुंचे। उस समय वहां पराशर नंदन व्यास, देव ऋषि नारद और देवल ऋषि उनके पास बैठे थे। तथा महाभारत युद्ध में मरने से बचे हुए और अन्य अन्य देशों से आए हुए बहुत से राजा उन महात्मा की सब ओर से रक्षा कर रहे थे। धर्मराज युधिष्ठिर दूर से ही वीरसैया पर सोए हुए दादा भीष्म जी का दर्शन करके भाइयों सहित रथ से उतर और निकट जाकर उन्होंने भीष्म पितामह तथा व्यास आदि ऋषियों को प्रणाम किया । इसके बाद उन ऋषियों ने भी उनका अभिनंदन किया। फिर ऋषियों से घिरे हुए पितामह के पास जाकर बोले दादा जी मैं युधिष्ठिर आपकी सेवा में उपस्थित हूं। आपके चरणों में प्रणाम करता हूं। यदि आपको मेरी बात सुनाई देती हो तो आज्ञा दीजिए मैं आपकी क्या सेवा करूं?
आपके बताए हुए समय पर अग्नियों को लेकर में उपस्थित हुआ हूं। आपके महातेजस्वी पुत्र राजा धृतराष्ट्र भी अपने मंत्रियों के साथ यहां पधारे हुए हैं और साथ ही श्री कृष्ण, मरने से बचे हुए समस्त राजा और कुरुजांगल देश के लोग भी आए हुए हैं। आप आंखें खोलकर इन सब की ओर देखिए। आपके कथन अनुसार इस समय के लिए जो कुछ करना आवश्यक था वह सब कर लिया गया है। सभी उपयोगी वस्तुओं का प्रबंध हो चुका है।
परम बुद्धिमान युधिष्ठिर के इस प्रकार कहने पर गंगा नंदन भीष्म जी ने आंखें खोल कर अपने चारों ओर खड़े हुए समस्त भरत वंशी राजाओं की ओर देखा । फिर युधिष्ठिर का हाथ पकड़कर मेघ के समान गंभीर वाणी में यह समयोचित वचन कहा।
बेटा! युधिष्ठिर तुम अपने मंत्रियों के साथ यहां आ गए यह बड़ी अच्छी बात हुई।
‘‘भगवान सूर्य अब दक्षिणायन से उत्तरायण की ओर आ गए ‘‘

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