Categories
धर्म-अध्यात्म

श्रद्धा से किए हुए यज्ञादि कार्य शिव, श्रद्धा रहित होकर किए गए कार्य शव बन जाते हैं”


वैदिक विदुषी साध्वी प्रज्ञा

लेखक आर्य सागर खारी ✍

वैदिक संस्कृति संस्कारों को समर्पित आपकी अपनी संस्था चिम्मन आर्य आर्षवेद गुरूकुल मुरसदपुर ग्रेटर नोएडा में आज पांच दिवसीय सामवेद पारायण महायज्ञ का विधिवत् शुभारंभ हो गया है।पुष्पों ओम ध्वज पताका से सुसज्जित गुरुकुल की परम्परागत यज्ञशाला में यह यज्ञ किया जा रहा है। यज्ञ का प्रयोजन आत्म शुद्धि व पर्यावरण शुद्धि है। यज्ञ के आज शुभारंभ सत्र के अवसर पर यज्ञ के ब्रह्म स्वामी चित्तेश्वरानन्द जी साध्वी प्रजा जी का प्रेरक व्याख्यान हुआ। साध्वी प्रजा जी ने कहा– *हमें प्राण- अपान की साधना करते हुए मन को सतोगुण मे स्थिर करते हुये जगत के निर्माता विधाता ईश्वर की आराधना करनी चाहिए। आत्मा स्वभाव से शुद्ध है लेकिन अविद्या के कारण प्रकृति के संपर्क में आकर वह अपने को अशुद्ध मानता है आत्मा मन शरीर को एक ही समझता है अपने पृथक अस्तित्व का अनुभव नहीं कर पाता। जब वह विद्वानों का सत्संग करता है सन्यासियों के उपदेश प्रवचन सुनता है देव यज्ञ करके अपना सर्वस्व देकर देव बन जाता है तो उसे आत्मा के पृथक अस्तित्व भान होता है ईश्वर उसे ज्ञान देकर आनंद में रखता है। देव यज्ञ करते करते एक दिन हम आत्म यज्ञ के अधिकारी बन जाते हैं। हम मेधातिथि बन जाते हैं सामवेद के एक मंत्र के ऋषि का भी इसी नाम से विवरण मिलता है।

पूज्य स्वामी चितेश्वरानन्द जी ने कहा–“*पुत्र को माता के अनुकूल रहना चाहिए माता की प्रत्येक धार्मिक बात को मानना चाहिए। पुत्र यदि माता-पिता के अनुकूल नहीं है तो समझो माता-पिता का ग्रहस्थ आश्रम सफल नहीं रहा है। पुत्र यदि संस्कारी नहीं है तो कहीं ना कहीं इसमें माता-पिता का भ? दोष है क्योंकि माता प्रथम गुरु होती है दूसरा गुरु पिता होता है तीसरा गुरु आचार्य होता है। आज अनेकों परिवारों में अविद्या के कारण राग द्वेष लड़ाई झगड़ा बखेड़ा मचा रहता है यह सारा ऋषियों की अध्यात्म विद्या से दूर रहने का दुष्परिणाम है। संतान को 5 वर्ष की आयु तक माता ।5 से 8 वर्ष की आयु तक पिता 8, 8 वर्ष से 25 वर्ष की आयु तक आचार्य और 25 से 50 वर्ष की अवधि के बीच वेद के विद्वान सन्यासियों योगियों विद्वान अतिथियों का मार्गदर्शन हमारी संस्कृति में मिलता था कोई भी अपने कर्तव्य से अपने सामाजिक पारिवारिक दायित्वों से खिलवाड़ नहीं करता था।संस्कारों के बगैर संपदा का कोई महत्व नहीं होता।

अपने प्रेरक प्रवचन के समापन पर पूज्य स्वामी जी ने यज्ञशाला में उपस्थित अतिथियों से आग्रह किया कि गुरुकुल हमारी संस्कृति व संस्कृत भाषा के रक्षक हैं हमें गुरुकुलों का तन मन धन से सहयोग करना चाहिए। आपका यह गुरुकुल मुर्शदपुर इस क्षेत्र का इकलौता गुरुकुल है इस गुरुकुल में दिल खोलकर सभी को दान देना चाहिए संसाधनों की यहां कोई कमी नहीं रहनी चाहिए आखिर आपके दान से यदि यह गुरुकुल शक्तिशाली बनता है तो इससे हमारे वैदिक संस्कृति को मजबूती मिलेगी अध्यात्म का स्वरूप चमकेगा विद्वान स्नातक यहां से निकलेंगे जो माँ भारती की सेवा करेंगे वैदिक मूल्यों की रक्षा करेंगे।

पश्चात में यज्ञ के यज्ञमान कमल आर्य जी को आशीर्वाद दिया गया ।इस अवसर पर वहां वानप्रस्थी देव मुनि , ओम मुनि स्वामी प्राण देव ,आचार्य जैनेंद्र आर्य सागर खारी सतीश आर्य अनार आर्य जीता आर्य करतार कसाना ,सामवेद आर्य जयंती मास्टर बाबुराम आर्य, राम अवतार आर्य जी,मास्टर प्रताप आर्य सहित दर्जनों गणमान्य अतिथि यज्ञ प्रेमी सज्जन उपस्थित रहे।

विश्व के कल्याणार्थ पर्यावरण संकट के निवारणार्थ बेहद सादगी से आयोजित किया जा रहा यह यज्ञ अनुष्ठान 5 दिसंबर तक चलेगा। प्रातः कालीन सत्र में ही यज्ञ कार्य संपादित किया जाएगा । अधिक से अधिक सज्जन इसमें सहभागी होकर अपने जीवन को सफल बनाएं पुण्य के भागी बने। प्रातः सत्र में सपरिवार यजमान भी अवश्य बने।

लेखक आर्य सागर खारी 🖋️

Comment:Cancel reply

Exit mobile version