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5G के दौर में भी नेटवर्क की सुविधा से वंचित गांव

सुनीता जोशी
जगथाना, उत्तराखंड

भारत दुनिया के उन चंद देशों में शामिल होने वाला है जो जल्द ही 6G नेटवर्क को अपनाने वाले हैं. दरअसल न केवल अर्थव्यवस्था बल्कि विज्ञान और तकनीक के मामले में भी भारत दुनिया का सिरमौर बनता जा रहा है. एक ओर जहां ज़मीन से ऊपर चांद और सूरज को छू रहा है तो वहीं धरती पर टेक्नोलॉजी के मामले में इसने अपने झंडे गाड़ दिए हैं. हालांकि एक ओर जहां भारत का शहर तेज़ी से विकसित हो रहा है तो वहीं इसका दूर दराज़ ग्रामीण इलाका आज भी विकास की लौ से बहुत दूर है. भले ही आज भारत फ़ास्ट नेटवर्क उपलब्ध कराने वाले दुनिया के गिने चुने देशों में शामिल है, लेकिन देश के कई ऐसे ग्रामीण क्षेत्र हैं जहां लोगों को मामूली नेटवर्क तक उपलब्ध नहीं हो पाता है. उन्हें इंटरनेट स्पीड मिलना तो दूर की बात है, अपनों से फोन पर भी बात करने के लिए गांव से कई किमी दूर चलकर नेटवर्क एरिया में आना पड़ता है.

पहाड़ी राज्य उत्तराखंड के कई दूर दराज़ ग्रामीण क्षेत्रों की आज यही स्थिति है, जहां सड़क और नेटवर्क का पहुंचना काफी मुश्किल और दुर्गम है. इन्हीं में एक बागेश्वर जिला स्थित कपकोट ब्लॉक का जगथाना गांव भी है. ब्लॉक कपकोट से करीब 20 किमी दूर इस गांव में नेटवर्क की सुविधा रास्तों से भी कहीं अधिक दुर्गम है. आधुनिक युग नेटवर्क का युग है. अब हर चीज़ इंटरनेट पर उपलब्ध है. लेकिन जगथाना गांव के लोगों के लिए इसी इंटरनेट के लिए नेटवर्क प्राप्त करना दुर्लभ है. गांव के लोगों को अपने परिजनों से बात करनी हो, युवाओं को रोज़गार से संबंधित जानकारियां प्राप्त करनी हो, छात्र-छात्राओं को शिक्षा से संबंधित पठन पाठन सर्च करनी हो अथवा किसी ज़रूरतमंद को सरकार की योजनाओं का लाभ उठाने के लिए सूचनाएं एकत्र करनी हो, सभी के लिए इंटरनेट तक सुलभ पहुंच ज़रूरी है. जिसे चलाने के लिए नेटवर्क की सुविधा का होना आवश्यक है. जिसका इस गांव में नितांत अभाव है.

नेटवर्क की कमी के कारण इंटरनेट की सुविधा नहीं होने का खामियाज़ा यहां के स्कूली छात्र/छात्राओं को भी भुगतनी पड़ती है. इस संबंध में गांव की एक 17 वर्षीय किशोरी दिशा दानू कहती है कि कई बार शिक्षक स्कूल ख़त्म होने के बाद व्हाट्सप्प पर होमवर्क भेजते हैं, जिसे नेटवर्क नहीं होने के कारण हम देख नहीं पाते हैं. जबकि अन्य छात्र/छात्राएं उसे पूरा करके लाते हैं. जिसकी वजह से हमें अगले दिन क्लास में शर्मिंदा होना पड़ता है. वहीं 12वीं में पढ़ने वाली दिशा की बड़ी बहन सोनिया दानू कहती है कि वह बोर्ड परीक्षा की तैयारी कर रही है, ऐसे में विषय से संबंधित अपडेट रहने की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन इंटरनेट की सुविधा नहीं होने के कारण वह इससे वंचित है और उसे केवल पुस्तकों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. वह कहती है कि अगर हमारे गांव में इंटरनेट की सुविधा होती तो हमें दूर जंगलों में जाकर इंटरनेट चलाने की जरूरत नहीं पड़ती. वहां जाना हमारी मजबूरी हो जाती है.

नेटवर्क की कमी से जहां युवा और विद्यार्थी परेशान हैं तो वहीं गांव के आम लोग भी इस सुविधा की कमी से परेशान हाल हैं. 52 वर्षीय केदार दानू कहते हैं कि मैं एक दैनिक मज़दूर हूँ. काम की तलाश में अक्सर शहर चला जाता हूं और दो-तीन दिन बाद वापस आता हूं. इस बीच घर की चिंता लगी रहती हैं. लेकिन नेटवर्क नहीं होने के कारण न तो मैं घर वालों का और न ही घर वाले मेरा हालचाल जान पाते हैं. वह बताते हैं कि कई बार दूसरे गांव में रहने वाले रिश्तेदारों के घर किसी की मौत भी हो जाती है तो हमें इसकी सूचना दो या तीन दिन बाद मिलती है. जिससे हम समय पर वहां पहुंच नहीं पाते हैं. केदार दानू कहते हैं कि सरकार लोगों के दुःख दर्द को दूर करने की बात तो बहुत करती हैं लेकिन शायद नेटवर्क नहीं होने के कारण सरकार के कानों तक हमारी तकलीफ की आवाज़ नहीं पहुंच रही है. अगर गांव में नेटवर्क की समस्या दूर कर दी जाए तो गांव वालों की आधी तकलीफ दूर हो जाएगी. इस संबंध में गांव की एक महिला बताती है कि नेटवर्क की समस्या के कारण गांव में एम्बुलेंस की सुविधा नहीं पहुंच पाती है. प्रसव या अन्य इमरजेंसी के लिए सरकार ने फ्री एम्बुलेंस सर्विस मुहैया करवाया है. जिसके लिए एम्बुलेंस को केवल एक कॉल करने की ज़रूरत है, लेकिन यह ज़रूरत उस वक़्त पूरी हो सकती है जब एम्बुलेंस वालों से बात करने के लिए नेटवर्क की सुविधा उपलब्ध हो.

गांव में नेटवर्क की सबसे बड़ी समस्या को स्वीकार करते हुए ग्राम प्रधान बिशन सिंह कहते हैं कि इसके बिना गांव का विकास ठप पड़ जाता है. कई बार गांव के विकास से संबंधित विभागों द्वारा परियोजनाओं की स्वीकृति भी मिल जाती है लेकिन नेटवर्क की सुविधा नहीं होने के कारण मुझे इसका पता ही नहीं चलता है. वह कहते हैं कि पिछले कई सालों से मैं गांव में नेटवर्क की सुविधा को बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत हूँ. पिछल वर्ष नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए दूरसंचार विभाग की ओर से गांव में अतिरिक्त खंभे भी लगाए गए थे और कुछ ज़रूरी उपकरण पहुंचाए गए थे लेकिन उसके बाद विभाग की उदासीन रवैये के कारण इस संबंध में कोई प्रगति नहीं हो पाई और गांव वाले आज भी नेटवर्क की सुविधा से वंचित हैं. ग्राम प्रधान कहते हैं कि जगथाना गांव में बेहतर नेटवर्क कनेक्टिविटी पहुंचाने की दिशा में मेरा प्रयास आज भी जारी है.

बहरहाल, देखा जाए तो आज नेटवर्क हर किसी की ज़रूरत बन चुकी है. दरअसल यह हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है. इतना ही नहीं, यह विकास का भी एक अहम पैमाना माना जाता है. ऐसी परिस्थिति में भी जगथाना और उसके गांवों में नेटवर्क का न होना कल्पना से भी परे लगता है. दरअसल विकास के असमान वितरण के कारण जगथाना जैसे देश के दूर दराज़ गांव पिछड़ते जा रहे हैं. अगर देश को विकसित बनाना है तो हमें विकास के सभी पहलुओं और दूर दराज़ के गांवों को साथ लेकर चलना होगा. ऐसे में ज़रूरी है कि जगथाना जैसे देश के दूर दराज़ गांव को नेटवर्क जैसी ज़रूरतों से पूर्ण किया जाए, ताकि सभी नागरिक संवाद के एक मज़बूत डोर में बंध सकें. लेकिन प्रश्न यह उठता है कि आखिर क्या वजह है कि 5G के इस दौर में भी इस गांव को साधारण नेटवर्क सुविधा से भी वंचित रखा जा रहा है? (चरखा फीचर)

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