ओ३म् “यज्ञ करने से मनुष्य को सुख प्राप्ति सहित कामनाओं की पूर्ति होती है”

-मनमोहन कुमार आर्य, देहरादून।
यज्ञ वेदों से प्राप्त हुआ एक शब्द है। इसका अर्थ होता है श्रेष्ठ व उत्तम कर्म। श्रेष्ठ कर्म वह होता है जिससे किसी को किसी प्रकार की हानि न हो अपितु दूसरों व स्वयं को भी अनेक लाभ हों। यज्ञ से जैसा लाभ होता है वैसा अन्य किसी कार्य से नहीं होता। यज्ञ से मनुष्यों को संसार की सबसे मूल्यवान वस्तु ‘शुद्ध प्राणवायु’ की प्राप्ति होती है। मनुष्य के जीवन में वायु, जल, अग्नि सहित अन्न, भोजन, वस्त्र, ज्ञान तथा परस्पर सहयोग की भावना का महत्व होता है। वायु इन सभी पदार्थों में सबसे अधिक मूल्यवान पदार्थ है। इसका कारण यह है कि यदि हमें शुद्ध वायु प्राप्त न हो तो हम एक या दो मिनट में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं। अग्निहोत्र देवयज्ञ दूषित प्राण वायु को गोघृत आदि यज्ञीय पदार्थों को जलाकर शुद्ध व सुगन्धित करता है। यज्ञ से शुद्ध हुआ वायु देश देशान्तर में जाता है जिससे यज्ञ करने वालों को तो लाभ होता ही है, इसके साथ असंख्य प्राणियों को भी लाभ पहुंचता है। इसके अतिरिक्त भी यज्ञ के अनेक लाभ हैं। इनकी कुछ चर्चा हम आगामी पंक्तियों में कर रहे हैं।

परमात्मा ने सृष्टि के आरम्भ में मनुष्यों को अपना जीवन सुखपूर्वक व्यतीत करते हुए भोग व अपवर्ग अर्थात् मोक्ष प्राप्ति के लिये मार्गदर्शन करने के लिए वेदों का ज्ञान दिया था। वेदों में सभी मनुष्यों को अग्निहोत्र यज्ञ करने की प्रेरणा भी की गई है। ऋषि दयानन्द के वेदभाष्य एवं उनके पंचमहायज्ञ विधि आदि ग्रन्थों में यज्ञ से लाभ विषयक तथ्यों व रहस्यों को प्रस्तुत किया गया है। ऋषि दयानन्द ने बताया है कि मनुष्य जिस स्थान पर निवास करता है वहां का वायु व जल आदि उसके दैनिक कार्यों से दूषित होते जाते हैं। भोजन के पदार्थ बनाने के लिये अग्नि का प्रयोग किया जाता है जिससे वायु दूषित होती है। उस दूषित वायु के घर से बाहर न जाने व बाहर का शुद्ध वायु भीतर न आने से वह वायु दूषित व रोग के किटाणुओं से युक्त हो जाती है। उससे रोग आदि की सम्भावना होती है। इस गृहस्थ वा निवास के भीतर की वायु को बाहर निकालने का सुगम मार्ग केवल यज्ञ ही है। यज्ञ करने से न केवल वायु ही बाहर चला जाता है अपितु इससे ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना भी होती है। वेद मन्त्रों में यज्ञों के जो लाभ बताये गये हैं, वह उन वेदमंत्रों का अर्थ जानने से विदित होते हैं। अतः वायु शुद्धि सहित रोग शमन एवं आरोग्य के साथ हमें आध्यात्मिक एवं वह सब लाभ प्राप्त होते हैं जिसकी हम ईश्वर से अपेक्षा करते हैं। यज्ञ करने से ईश्वर की आज्ञा का पालन होता है। इससे ईश्वर हमें हमारे यज्ञरूपी शुभ कर्म का सुख रूपी फल जो हमारी अपेक्षा व आवश्यकताओं के अनुरूप होता है, प्रदान करता है। यज्ञकर्ता को ईश्वर का आशीर्वाद भी प्राप्त होता है। अतः सभी मनुष्यों को प्रातः व सायं यज्ञ करके प्रतिदिन अपने घर की वायु को शुद्ध करना चाहिये जिससे वह स्वस्थ रहते हुए आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नति को प्राप्त हों। 

वेदों व शास्त्रों में सभी गृहस्थों के लिये प्रातः व सायं समय में देवयज्ञ अग्निहोत्र करने का विधान है। यज्ञ प्रातः सूर्योदय के समय तथा सायं सूर्यास्त से पूर्व किया जाता है। यज्ञ में जो घृत, ओषधियों, मिष्ट आदि पदार्थों की आहुतियां दी जाती हैं वह यज्ञ की अग्नि में जलकर अत्यन्त सूक्ष्म होकर हल्की हो जाती है और वायु व सूर्य की किरणों के द्वारा वायु व आकाश में सर्वत्र फैल कर जहां-जहां दुर्गन्ध होती है, उसको दूर करती हैं। इससे सभी सूक्ष्म व स्थूल प्राणियों को लाभ होता है। ऋषि दयानन्द ने यह भी कहा है कि प्राचीन काल में सभी गृहस्थ लोग यज्ञ किया करते थे जिससे देश रोगों से रहित व सुखों से पूरित था। यदि आज भी देश व विश्व में सभी लोग यज्ञ करने लगें, तो प्राचीन काल की सुखों से युक्त अवस्था प्राप्त की जा सकती है। यज्ञ के अनेक लाभ देखे जाते हैं। भोपाल में जो गैस त्रासदी वर्षों पूर्व हुई थी, उससे सहस्रों लोग मृत्यु आदि दुःखों से त्रस्त हुए थे परन्तु वहीं एक परिवार जो प्रतिदिन यज्ञ करता था, वह सकुशल बच गया था। इसका कारण यह था कि उसने स्थिति को जानकर और कोई उपाय न सूझने पर यज्ञ किया था जिससे उसकी व उसके पशुओं के प्राणों की रक्षा हो सकी थी। यज्ञ से चारों ओर ऐसा वातावरण बन जाता है जिससे प्रदुषण आदि का प्रभाव कम व नष्ट हो जाता है। ऐसा ही भोपाल में इस याज्ञिक परिवार के साथ होने का अनुमान किया जाता है। यज्ञ से मनुष्यों की दरिद्रता भी दूर होती देखी जाती है। हमारे सम्पर्क में ऐसे अनेक परिवार आयें हैं जो पहले निर्धन व साधारण स्थिति में थे। आर्यसमाज के विद्वानों की प्रेरणा से उन्होंने स्वाध्याय एवं यज्ञ करना आरम्भ किया जिससे उनको ज्ञान की प्राप्ति होने सहित भौतिक पदार्थों व धन सम्पत्ति की प्राप्ति व वृद्धि हुई। इसका एक कारण यह है कि संसार के समस्त धन, ऐश्वर्य व वैभव का स्वामी परमात्मा है। जब मनुष्य यज्ञ के द्वारा वेदमंत्रों से प्रार्थना करते हुए ईश्वर से ऐश्वर्य की प्राप्ति की कामना भी करते हैं तो सत्यस्वरूप, सर्वान्तर्यामी व परमैश्वयवान् परमात्मा अपने भक्तों की प्रार्थना को सुनकर एवं उसकी पात्रता के अनुरूप उनका शुभ कर्मों में मार्गदर्शन करने के साथ धन की प्राप्ति भी कराते हैं। 

यज्ञ से अनेक लाभ होते हैं। यज्ञ से रोगों को दूर करने सहित पुत्र व सन्तान की कामना आदि अनेकों कामनायें सिद्ध की जा सकती हैं। प्राचीन काल से अनेक काम्य यज्ञों का प्रचलन रहा है। वेद मन्त्रों में इनका विधान व प्रार्थना की गई है। इसी से विधिपूर्वक अग्निहोत्र यज्ञ करने से इनकी प्राप्ति का अनुमान किया जाता है। महाराजा दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ की चर्चा भी हम सुनते हैं। इसी प्रकार अश्वमेध तथा गोमेध यज्ञों सहित राजसूय यज्ञ की चचायें भी प्राचीन ऐतिहासिक ग्रन्थों में पढ़ने को मिलती है। यज्ञ विषयक अनुसंधान करने वाले एक विद्वान पं. वीरसेन वेदश्रमी जी हुए हैं। वह देश भर में जाकर वृहद यज्ञों का आयोजन करते थे। उनका कहना था कि यज्ञ से प्राकृतिक आपदाओं को भी टाला जा सकता है। उन्होंने स्वयं अनेक बार यज्ञ से वर्षा कराई थी। अनेक असाध्य रोगियों को स्वस्थ किया था। ऐसा भी हुआ था कि यज्ञ के प्रभाव से जन्म से बहरे बच्चों ने सुनना आरम्भ कर दिया था तथा हृदय रोगियों पर भी यज्ञ का अच्छा प्रभाव हुआ था। अतः परमात्मा की आज्ञा पालन करने के साथ सुखों व अपनी सभी कामनाओं की पूर्ति के लिये प्रति दिन प्रातः व सायं यज्ञ करना चाहिये। यज्ञ को विस्तार से जानने के लिये वैदिक विद्वान आचार्य डा. रामनाथ वेदालंकार जी की प्रसिद्ध पुस्तक ‘यज्ञ-मीमांसा’ का अध्ययन किया जाना चाहिये। 

ऋषि दयानन्द ने वेद एवं शास्त्रों की आज्ञाओं का पालन कराने के लिये पंचमहायज्ञ विधि पुस्तक लिख कर प्रतिदिन नित्य व अनिवार्य कर्मों में देवयज्ञ अग्निहोत्र को सम्मिलित किया है व इसकी विधि भी लिखी है। अग्निहोत्र करना कोई धार्मिक परम्परा मात्र नहीं है अपितु यह वैज्ञानिक एवं जीवन को लाभ पहुंचाने वाला कार्य है। यदि हम ऐसा करते हैं तो इससे ईश्वर की आज्ञा का पालन होने से यह परम्परा जीवित रहेगी और हमें व भावी पीढ़ियों को इससे होने वाले लाभ मिलते रहेंगे। यदि हम वर्तमान में इसकी अवहेलना करेंगे तो पूर्व की भांति यह परम्परा पुनः विलुप्त होकर आने वाली पीढ़ियों के लिये हानिप्रद सिद्ध होगी। यज्ञ को वेदों, ऋषि दयानन्द व आर्ष साहित्य के ग्रन्थों में दी गई विधियों से ही करना चाहिये। कुछ लोगों ने अपनी अपनी विधियां बनाई हुई हैं। इनसे यज्ञ करने से वह लाभ नहीं होता जो तत्ववेत्ता हमारे ऋषि व विद्वान जानते थे। उनकी बनाई विधियां ही पूर्ण एव सार्थक हैं। ऋषि दयानन्द सरस्वती लिखित विधि भी शास्त्रों पर आधारित होने से पूर्णतया प्रामाणिक है। उन्हीं की विधि से यज्ञ करने से हमारी सभी कामनायें पूर्ण होंगी। हम स्वस्थ व निरोगी होंगे तथा दीर्घजीवी होंगे। हमारे जीवन में सुख अधिक तथा दुःख कम होंगे। यज्ञ करने से मनुष्य को दुरित व बुराईयों को छोड़ने तथा परोपकार आदि सत्कर्मों को करने की प्रेरणा भी मिलती है। ऋषि दयानन्द से इतर विधि व वैदिक यज्ञ विधि में मनमानी करने से वह लाभ नहीं होता जो हम प्राप्त करना चाहते हैं वा कर सकते हैं। आज हमने अग्निहोत्र यज्ञ पर संक्षिप्त चर्चा की है। हम आशा करते हैं लोगों को यह रुचिकर एवं लाभप्रद होगी। ओ३म् शम्। 

-मनमोहन कुमार आर्य
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