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इतिहास के पन्नों से

भारत के राष्ट्रपति और उनका कार्यकाल ,भाग – 11 डॉ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम (Dr. A. P. J. Abdul Kalam)

डा. एपीजे अब्दुल कलाम भारत के 11वें राष्ट्रपति बने। ये ऐसे पहले राष्ट्रपति रहे हैं जिनका राजनीति से कभी दूर का भी संबंध नहीं रहा। ये भारत के उपराष्ट्रपति नहीं बने, अपितु सीधे ही राष्ट्रपति बनाये गये। 1998 के पोखरण विस्फोट में डा. कलाम का अविस्मरणीय योगदान था। इस परमाणु विस्फोट से भारत ने ऊंची छलांग भरी और एक झटके में ही परमाणु संपन्न देशों की श्रेणी में जा पहुंचा। इसलिए डा. कलाम को लोगों ने सम्मान के रूप में मिसाइल मैन कहकर पुकारना आरंभ कर दिया था।

भाजपा जो कि उस समय केन्द्र में अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व में सत्तारूढ़ थी, इसलिए उसने डा. कलाम को अपना प्रत्याशी बनाया लेकिन कलाम के नाम में ऐसा जादू था कि भाजपा को अछूत मानने वाले दलों ने भी कलाम के नाम पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी। उन्होंने 25 जुलाई 2002 को राष्ट्रपति के रूप में पद की शपथ ली। संभवत: यह राष्ट्रपति हैं जिन्हें विभिन्न संस्थानों ने सर्वाधिक मानद उपाधियां प्रदान कीं। सौभाग्य से वह अब भी हमारे बीच हैं और अब भी वह देश की प्रगति के लिए सदा प्रयत्न शील रहते हैं। वह 2020 तक भारत को विकसित देशों की पंक्ति में लाकर खड़ा करना चाहते हैं। वह कुरान के पाठ के साथ साथ ही भगवदगीता का भी पाठ करते थे और वीणा बजाने का भी शौक रखते थे। वे पूर्णत: मानवतावादी और आध्यात्मिक व्यक्ति थे। उन पर चाणक्य का यह कथन पूर्णत: सच सिद्ध होता था कि राजा दार्शनिक और दार्शनिक राजा (राष्ट्रपति) होना चाहिए। सोनिया गांधी को 2004 में प्रधानमंत्री न बनने की सलाह भी संभवत: कलाम ने ही दी थी, क्योंकि राष्ट्रपति भवन से बाहर निकलकर ही सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री न बनने की घोषणा की थी। डा. कलाम ने राष्ट्रपति के पद पर रहते हुए हमेशा सभी राजनीतिक दलों को नकारात्मक बिंदुओं पर ऊर्जा व्यय करने की बजाए राष्ट्र के विकास के लिए प्रतिबद्ध रहने की सलाह दी। वह स्वयं भी अपने इस विचार के प्रति समर्पित होकर काम करते रहे। राष्ट्रपति भवन से सेवानिवृत्ति के पश्चात भी वह विद्यार्थियों को अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करने और उसे राष्ट्र के हित में व्यय करने के बारे में जागरूक करते रहे।

डॉ राकेश कुमार आर्य
 

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