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संपादकीय

राष्ट्रपति चुनाव – 2012 प्रणव मुखर्जी का नाम अब भी सबसे आगे

देश के अगले राष्ट्रपति का चुनाव होने में अब दो माह से भी कम का समय रह गया है। सभी राजनीति दल अपनी अपनी गोटियां फिट करने में चुपचाप भीतर ही भीतर शतरंजी चाल चल रहे हैं। जयललिता कुछ अन्य प्रभावी नेताओं को लेकर पूर्व लोकसभाध्यक्ष रहे पी.ए. संगमा को आगे बढ़ाना चाहती हैं, तो ममता बनर्जी वर्तमान लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार को आगे लाना चाहती हैं।
निर्वतमान उपराष्टï्रपति हामिद अंसारी का नाम चलकर खत्म हो लिया है। इसी प्रकार और कई नाम रहे हैं जो दो चारकदम चले और कहीं अनंत में विलीन हो गये। इनमें कई नाम ऐसे रहे हैं जो इस बात से ही संतुष्टï हो गये हैं कि उनका नाम इस पद के लिए उचित माना गया और  इसका मतलब है कि उनका भी कोई वजूद है।
वास्तव में इस समय वजूद के नेता की तलाश नहीं है। इस समय नेता लोग उस आदमी की तलाश कर रहे हैं जो रायसीना हिल्स में जा करके भी उनके वजूद को माने उनसेवहां जाकर भी नमस्कार करता रहे। वजूदों को मिटाने वाली दुनिया में वजूदों की तलाश की बात कहना स्वयं को सबसे बड़े धोखे में रखना होता है। जहां बेरहमी की छुरियां सदा नंगी लहराती हों वहां रहमदिलों को खोजना केवल अपनी नादानी दिखाना होता है।
इस सबके बावजूद देश के (संभवत:) सौभाग्य से एक वजूद अपने आप ही परिस्थितियों पर हावी होता जा रहा है। उसका नाम है प्रणव मुखर्जी। वह देश के वित्तमंत्री हैं और कांग्रेस के बहुत ही मजबूत स्तंभ भी हैं। कांग्रेस उन्हें मजबूत स्तंभ तो स्वीकार करती है, सरकार का सबसे काबिल मंत्री भी स्वीकार करती है, सरकार का संकट मोचक भी मानती है, लेकिन अपना प्रत्याशी उसे ही मानेगी जिसे सोनिया गांधी कहेंगी। सोनिया जानतीं हैं कि प्रणव मुखर्जी के रहते वर्तमान परिस्थितियों में राहुल का प्रधानमंत्री बनना आसान नहीं है। उधर भाजपा भी कांग्रेस से उसके सुयोग्यतम नेता को राष्टï्रपति भवन भेजना ही उचित समझती है। इसलिए एक वजूद का वजूद स्वीकार करते हुए उसको वजूद हीन करने के लिए कांग्रेस की नेता सोनिया उन्हें राष्टï्रपति  भवन भेजना चाहती हैं। यह बात अलग है कि देश का अधिकांश जनमानस श्री मुखर्जी को राष्टï्रपति भवन में देखना चाहता है और उनके हाथों में अपना भविष्य भी सुरक्षित अनुभव करता है। भाजपा के पास प्रणव मुखर्जी को देश का अगला राष्टï्रपति मानने के  सिवाय कोई विकल्प नहीं है। भाजपा के लिए उचित भी यही होगा कि वह प्रणव जैसे सुयोग्य व्यक्ति को राष्टï्रपति भवन भेजे, किसी तीसरी चौथी और पांचवीं पंक्ति के नेता को नहीं। पी.ए. संगमा एक अच्छे उम्मीदवार हो सकते हैं। लेकिन उनके पास अभी समय है, साथ ही उनके साथ बहुमत नहीं है। ये दोनों बातें उन्हें प्रतीक्षा में रखने के लिए कहती हैं। जबकि देश को प्रणव के लिए प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। उनके लंबे राजनीतिक अनुभवों का लाभ लेने के लिए उन्हें मौका मिलना चाहिए।
राजनीति में प्रतिभाएं कहीं निखारी नहीं जाती हैं, अपितु प्रतिभाओं का शोषण और उपेक्षा होती है। कभी कभी दैवयोग से ही प्रतिभायें आगे निकलती हैं और संयोग ऐसा बनता है कि उनके विरोधी रहे लोग भी उनके मित्र बन जाते हैं। भारत के लिए तो यह बात पहले दिन से ही लागू होती है कि राजनीति में प्रतिभाओं का शोषण और उपेक्षा होती है। पंडित नेहरू के सामने सरदार पटेल की उपेक्षा की गयी और एक सर्वाधिक पसंदीदा व्यक्ति की जगह कम पसंद के व्यक्ति को देश का पहला प्रधानमंत्री बना दिया गया। बाद में नेहरू को बेताज का बादशाह लोकतंत्र में घोषित किया गया।
बाद में शास्त्री जी को भी उस समय के कद्दावर नेताओं ने इसलिए पसंद किया कि उनकी प्रतिभा से वो परिचित नही थे। शास्त्री जी शांत और विनम्र व्यक्ति थे जिनसे अपेक्षा की जाती थी कि वह अधिक देर तक शासन नहीं कर पाएंगे। ऐसी ही सोच इंदिरा गांधी के लिए तबके वरिष्ठ कांग्रेसियों की थी। कहने का अभिप्राय ये है कि प्रतिभाओं को मौका देना राजनीति का स्वभाव नहीं है। प्रतिभाएं मौका लेती हैं और फिर निखर जाती हैं। ये बात शास्त्री जी इंदिरा जी और ऐसे ही कई लोगों पर लागू होती है। लेकिन कई बार ऐसा भी होता है कि प्रतिभाएं जबरन थोपी जाती हैं और फिर वो कांच के टुकड़ों की तरह बिखर जाती है। चौधरी चरण सिंह, एच.डी. देवगोड़ा, इंद्र कुमार गुजराल, चंद्रशेखर सरीखे कई लोग इसका उदाहरण है। उन्हीं में से मनमोहन सिंह हैं। 8 साल तक जनाब देश के प्रधानमंत्री पद पर रह लिए हैं लेकिन अभी तक पृथ्वी (सोनिया) के उपग्रह (चंद्रमा) की भांति उसी की परिक्रमा लगा रहे हैं। अब संयोग से यदि प्रणव मुखर्जी का नाम आगे बढ़ रहा है तो यह देश के लिए अच्छा संकेत है। रायसीना हिल्स पर एक तपा तपाया वरिष्ठ राजनीतिज्ञ ही जाना चाहिए। एक ऐसा राजनेता जो कि वहां जाकर पद की गरिमा के अनुसार कार्य करें और जिससे पद की शोभा द्विगुणित हो। पद पर जाकर जो स्वयं सुशोभित होगा, उससे पद की गरिमा को गिरती हैै, जबकि पद पर जाकर पद को सुशोभित करना पद की गरिमा को ऊंचा उठाना होता है। रायसीना हिल्स पर एक ऐसे निष्पक्ष राजनीतिज्ञ का जाना आवश्यक है जो सुलझा हुआ हो और जिसने सार्वजनिक जीवन में एक लंबा काल व्यतीत किया हो।

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