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राजनीति

भ्रष्ट नहीं है सरदार की सरकार

मनमोहन सिंह सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप इतने बड़े और जघन्य हैं कि कोई भी उनका बचाव नहीं कर सकता है और न ही कोई पूरी सरकार और पार्टी को दूध का धुला साबित कर सकता है । फिर भी कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने सरकार और पार्टी को ईमानदार और बेदाग साबित करने का बीड़ा उठा लिया है। नई दिल्ली में आयोजित कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोमवार को उन्होंने कहा कि सरकार दूध की धुली हुई है और उस पर भ्रष्टाचार के आरोप निराधार हैं। ऐसे आरोप षडय़ंत्र के तहत लगाये जा रहे हैं। विपक्ष और सिविल सोसाइटी इस षडय़ंत्र का हिस्सा हैं।
उन्होंने भारतीय राजनीति के खास अंदाज़ में यह तो कह दिया कि भ्रष्टाचार के आरोप षडय़ंत्र के तहत लगाये जा रहे हैं लेकिन यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि इस षडय़ंत्र का असली सूत्रधार कौन है। ये षड्यंत्रकारी ताकतें कौन हैं ? क्या ये देशी हैं या विदेशी? जाहिर है, सोनिया गाँधी का सरकार को बचाने का यह अंदाज़ भर है। उल्टा चोर कोतवाल को डांटे की तजऱ् पर।
पिछले दिनों से सोनिया गाँधी का अपनी ही सरकार पर नियंत्रण नहीं रह गया है। अमेरिका समर्थक सरकार ऐसी अंधी दौड़ में शामिल हो गयी है कि उसे पार्टी के जनाधार और 2014 के लोकसभा चुनाओं की भी चिंता नहीं रह गयी है। यह ऐसी बात है जिससे सोनिया गाँधी को सचेत हो जाना चाहिए लेकिन वे जिस तरह से अंधी होकर सरकार के बचाव में आई हैं उससे 2014 में राहुल गाँधी के प्रधानमंत्री बनने के सपनों पर पानी फिरना लगभग तय माना जा रहा है।
बैठक में उन्होंने दो टूक शब्दों में टीम अन्ना को कांग्रेस का दुश्मन साबित कर दिया है। हाँ, यह सही है कि हरियाणा की एक लोकसभा सीट के लिए हो रहे उप चुनाव में अरविन्द केजरीवाल ने कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ़ प्रचार किया था। इसकी तटस्थ प्रेक्षकों ने भी आलोचना की थी। लेकिन विरोध करने से कोई दुश्मन कैसे हो जाता है। कहने की जरूरत नहीं कि रामदेव और अन्ना की टीमें कांग्रेस से कोई दोस्ती नहीं निभा रही हैं। और उसे जितना संभव हो सकता है बेपर्दा कर रही हैं। यहाँ तक कि विपक्षी दल भी सरकार का विरोध करने में उनके आगे बौने साबित हो रहे हैं। फि़लहाल सोनिया ने पार्टी से कहा है कि वह भ्रष्टाचार के आरोपों का मुकाबल करे और उसे खारिज करे।
लेकिन यह कोई युद्ध तो है नहीं कि सही और गलत के परवाह किये बिना सब-कुछ जीत पर निर्भर करता है ये आरोप नीति, नैतिकता और चरित्र पर निशाना दाग रहे हैं, क्या इन्हें लडक़र बचाया जा सकता है? पार्टी के वे समर्पित कार्यकत्र्ता जिन्होंने अपने घर से खा-पीकर और पैसा लगाकर कांग्रेस को सत्ता में बैठाया था आज वे भी ठगे महसूस कर रहे हैं। पार्टी कार्यकत्र्ताओं का भरोसा भी कितना बचा है, कहना मुश्किल है।

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