भाग-४

डॉ डी के गर्ग

विष्णु का वाहन गरुड़ का तात्पर्य:

हिंदू धर्म में जितने भी काल्पनिक देवी देवता हैं उनमें अधिकांश को किसी न किसी पशु ,पक्षी के सवारी के साथ अज्ञानतावश जोड़ दिया गया है जबकि किसी भी शरीरधारी का इन पर सवारी करना असंभव ही नहीं ,कल्पना से परे है।जैसे की गणेश जी का चूहा, मां दुर्गा का शेर, शिव जी का नंदी गाय, माता सरस्वती के पास सफेद हंस, माता लक्ष्मी के पास उल्लू होता है। वैसे ही पौराणिक कथाओं में विष्णु का वाहन गरुड़ बताया गया है।यहाँ शब्द पर विशेष ध्यान दे
— सवारी गरुड़ है या गरुड़ पक्षी ?
इस प्रश्न के उत्तर जरुरी है की पुराण में गरुड़ की सवारी बताई है या गरुड़ पक्षी की ? परमपिता परमात्मा ने सूर्य , चंद्रमा,करोड़ों तारे ,समुंद्र ,पृथ्वी , जल, वायु आदि का निर्माण किया है भला वो कैसे एक सामान्य से पक्षी पर सवारी करेगा जो अपने कर्मो का फल भोगने के लिए पैदा हुआ है ,ऐसा कहना या स्वीकार करना मूर्खता की पराकाष्ठा है।
गरुड़ का क्या भावार्थ है ?गरुड़ के पर्यायवाची क्या है? गरुड़ शब्द के अन्य पर्यायवाची सुपर्ण और गरुत्मान् है।जो की वेद के विभिन्न मंत्रो में आये है।चारो वेद में सुपर्ण ८१ बार आया है और सभी जगह परमपिता ईश्वर के लिए अलग अलग भावार्थ के रूप में प्रयोग हुआ है।
गरुड़ पक्षी सभी पक्षियों का राजा कहा जाता है ,ये सभी पक्षियों में सर्वाधिक ऊंचाई तक उड़ता है ,इसकी नेत्र शक्ति बहुत तीव्र होती है और उड़ान के दौरान ही वह संभावित शिकार की पहचान कर लेता है ,ये अपना शिकार स्वयं करता है। गरुड़ एक ऐसा पक्षी है जो विषैला के विषैला जीव जंतु को भी निकल जाता है और अपने अचूक अटैक के लिए जाना जाता है इसीलिए अमेरिका का राष्ट्रीय पक्षी गरुड़ है।
इसलिए गरुड़ की उपमा ऋषि मुनियों को भी दी गई है जिन्होंने योग आदि के बल पर लोक परलोक ,ब्रह्मांड की यात्रा करके ग्रह,उपग्रह और नक्षत्र का ज्ञान दिया ।
कवियों ने अलंकार की भाषा में ईश्वर को विष्णु और उसकी सवारी गरुड़ कहा गया है क्योकि परमाता सभी लोक लोकान्तरो में स्वछन्द रूपसे विचरण करता है। वेद में कहा है:
ओ३म् येन द्यौरुग्रा पृथिवी च दृढा येन स्वः स्तभितं येन नाकः।।
योेअन्तरिक्षे रजसो विमानः कस्मै देवाय हविषा विधेम।।यजुर्वेद -३२.६
विष्णू की सवारी गरुड़ कही गई है , जो समस्त भू मंडल में है जहा एक स्थान पर सूर्य अस्त होता है और अंधेरा हो जाता है परंतु उसी क्षण भूमंडल के दूसरे छोर पर उजाला होने लगता है। ये एक उपमा अलंकार की भाषा है ।
जैसे विष्णू ईश्वर के कल्याणकारी होने के कारण ईश्वर का विष्णु एक उपनाम है , ऐसे ही विष्णू एक विशेष उपाधि भी है। विष्णू उस वैज्ञानिक को कहा जाता है जो अपनी कल्पना की उड़ान से विज्ञानं के अतिसूक्ष्म विषय को खोज करके उसको वास्तविक स्वरूप को धरातल पर लाता है और ये खोज मानव के लिए कल्याणकारी होती है। विश्व में विज्ञानं की खोज के कारण ही चंद्रयान चन्द्रमा पर गया, मंगलयान मंगल गृह पर गया ,मोबाइल फोन एक सेकंड में १००० कम दूरी पैर बात करा देता है आदि। सतयुग में जिस व्यक्ति के पास ज्ञान -विज्ञान की प्रतिभा होती थी और जो अपनी इस प्रतिभा के कारण कल्पना की उड़ान भरता था,जो अपने हृदय में ज्ञान की आहुति देकर विवेक को जगाता था, वह विष्णु की उपाधि को प्राप्त करता था। इसी आलोक में गरुड़ ऐसे महावैज्ञानिक को भी कहा जाता था जिसकी खोज की उड़ान वा ज्ञान की कल्पनाएं ध्रुव मंडल से लेकर जेष्ठा नक्षत्र से आकाशगंगा तक विचरण करती थीं । इस प्रकार गरुड़ नाम ज्ञान और विज्ञान की प्रतिभा को कहा जाता है।
अतः स्पष्ट हुआ की यहाँ प्रयोग किया जाने वाला शब्द गरुड़ पक्षी नहीं है बल्कि ज्ञान विज्ञान की प्रतिभा को गरुड़ कहा जाता है।

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