वरदान और श्राप कितने सच और कितने अविज्ञानिक?*

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Dr D K Garg
भाग-१

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हिन्दू धर्म की अधिकांश मान्यताएं,कथाएं शाप और वरदान से भरी हुई है। महाभारत ,रामायण और किसी भी अन्य देवता जैसे गंगा ,यमुना ,शिव ,गणेश,ब्रह्म ,विष्णु ऐसे हजारों कथानक पौराणिक ग्रंथों में और पुराणों में भरे पड़ें है की किसी ऋषि ने क्रोध में आकर श्राप दिया उसको जानवर बना दिया ,पत्थर का बना दिया,या कोई अन्य दुःख दे दिया या किसी के सेवा , तपस्या से खुश होकर वरदान देकर किसी को अमर कर दिया।

ये श्राप और वरदान देने का काम केवल ऋषि मुनियों तक ही सीमित नहीं है ,बल्कि श्राप और वरदान देने वालो की सूची में तथाकथित ईश्वर के अवतार शिव , ब्रह्मा, राम ,पार्वती,विष्णु,अर्जुन,राजा दशरथ आदि भी हैं।
ध्यान से देखा जाए तो
ये कपोल कल्पनाएं या परी कथायें और अप्रमाणिक, अवैज्ञानिक ही है जिनको लच्छेदार प्रवचनों के द्वारा आधुनिक धर्मगुरु सुना रहे हैं और भक्त सुन भी रहे हैं ,और वह भी बिना कोई प्रश्न किए ,बिना परख किए ?
क्या वरदान और श्राप देना संभव है? जैसा की आपने पुराणों में पढ़ रखा है, या पौराणिक कथाओं में सुन रखा है कि – ” जाओ, आज से तुम्हारा शरीर पत्थर का होगा,अगले जन्म में सर्प बनोगे, तुम अमर हो गए हो।” ऐसा क्या कोई ईश्वर के नियमों के विरुद्ध तो कोई नई व्यवस्था बताने का प्रयास तो नहीं ?
आइये पहले श्राप पर विचार करते है।
पौराणिक साहित्य में कुछ सुप्रसिद्ध श्राप :
१ द्वापरयुग में युद्ध में अश्वत्थामा ने कौरवों का साथ दिया था इसलिए क्रोध में श्रीकृष्ण ने ही ब्रह्मास्त्र चलाने के कारण अश्वत्थामा को चिरकाल तक पृथ्वी पर भटकते रहने का श्राप दिया था।
२ युधिष्ठिर ने स्त्रियों को यह श्राप दे डाला की आज से कोई भी स्त्री किसी भी प्रकार की गोपनीय बात का रहस्य नहीं छुपा पाएगी।
३ माण्डव्य ऋषि का यमराज को श्राप दिया की तुम शुद्र योनि में दासी के पुत्र के रूप में जन्म लोगे। माण्डव्य ऋषि के इस श्राप के कारण यमराज को विदुर के रूप में जन्म लेना पडा।
४ उर्वशी का अर्जुन से कहा की आखिर तुम क्यों नपुंसक की तरह बात कर रहे हो, मैं तुम्हें श्राप देती हूं की तुम नपुंसक हो जाओ तथा स्त्रियों के बीच तुम्हें नर्तक बन कर रहना पड़े।
५ माता दुर्गा ने ब्रह्मा को श्राप दिया, जिसकी वजह से संसार में उनकी पूजा नहीं होती
६ माता सावित्री ने क्रोध में ब्रह्मा जी को कहा कि पुष्कर को छोड़कर और किसी स्थान पर ब्रह्मा जी की पूजा नहीं की जाएगी और ना ही मंदिर स्थापित होगा जो भी मंदिर स्थापित करेगा उसका विनाश हो जाएगा। इस श्राप के कारण ही ब्रह्मा जी की पूजा नहीं की जाती है ।
७ गांधारी ने शाप दिया कि जैसे उसके बेटों और रिश्तेदारों ने आपस में लड़ना खत्म कर दिया है, कृष्ण के परिवार और रिश्तेदारों का भी यही हश्र होगा।
८ एक बार क्रोध में, सीता ने गायों को शाप दिया कि वे अशुद्ध चीजें खाएंगी। उसने फल्गु नदी को भी शाप दिया था कि उसका पानी ऊपर की तरफ सूख जाएगा और पानी पानी के नीचे बह जाएगा। उसने खेत की फूल को श्राप दिया कि इसका उपयोग कभी भी शुभ अवसरों के लिए नहीं किया जाएगा और आग को श्राप दिया कि इसके संपर्क में आने से पानी नष्ट हो जाएगा। उसने वट वृक्ष को आशीर्वाद दिया कि वह सदाबहार रहेगा।
९ श्रवण कुमार की मृत्यु की खबर सुनकर उसके अंधे माता-पिता ने भी दम तोड़ दिया और मरते -मरते दशरथ को शाप दिया कि जिस तरह वे पुत्र वियोग में मर रहे हैं वैसे ही पुत्र वियोग में उसके भी प्राण निकलेंगे I
१० उर्वशी को पुरुवंश की आदिमाता माना जाता था और उन्हीं के वंशज अर्जुन भी थे। इसलिए अर्जुन ने उर्वशी को स्वीकार करने से मना कर दिया। इससे क्रोधित होकर उर्वशी ने अर्जुन को किन्नर बनने का शाप दे दिया।
1। इसी तरह के सैंकड़ों किस्से श्राप की कथाओं से भरे पड़ें है जैसे देवी अहिल्या को श्राप द्वारा पत्थर की बना देना ,शबरी को क्या श्राप देना ,देव ऋषि नारद जी ने केवल भगवान विष्णु जी को श्राप दिया था।शिवपुराण के अनुसार एक बार जब नारद मुनि भगवान विष्णु पर बहुत क्रोधित हुए और उन्होंने भगवान विष्णु को श्राप दिया कि जिस प्रकार तुमने मुझे स्त्री के लिए व्याकुल किया है। उसी प्रकार तुम भी स्त्री विरह का दु:ख भोगोगे। उनके श्राप के चलते ही भगवान विष्णु को राम अवतार लेना पड़ा और उन्होंने इस श्राप को पूरा किया।
श्राप क्या है ? यदि क्रोध वश कोई व्यक्ति दुसरे को जाने -अनजाने में उसके हिट के विरुद्ध कोई बात बोल दे जैसे की तेरा नाश हो जायेगा आदि। अक्सर हम देखते है की क्रोध में माता -पिता गुरुजन आदि कुछ भी कह देते हैं। तो क्या ऐसा सही हो जाता है ? सच ये है की श्राप व्राप कुछ नहीं होता है। यह केवल डायलॉग मात्र है जो पौराणिक कहानियों में गढ़ी गई है। इन कथाओं का उद्देश्य केवल इतना हो सकता है कि लोग श्राप के भय से नैतिक बने रहें। लोगों को डरा डरा कर भय दिखाकर नैतिक बनने को बाध्य किया गया है। जो वर्तमान में समाप्त हो चूका है। पुराणों ने लोगों को नैतिकता का पाठ पढ़ाने के लिए गलत रास्ता चुना। यदि उनके पास दूर दृष्टि होती तो उन्हें पता चल जाता कि भय से लोगों को नैतिक नहीं बनाया जा सकता।
यदि श्राप में तनिक भी वास्तविकता होती तो अब तक मुगल खानदान पीड़ितों के श्राप से खत्म हो गए होते।यदि श्राप में जरा भी सच्चाई होती तो देश के सारे नेता गरीबों के श्राप से जलकर भस्म हो जाते।
हमारे धर्म ग्रन्थ क्या कहते है ?
क्रोध एक दुर्बलता है । मानव-जीवन में वह सहज है, किन्तु तभी तो उसे विजित करने की आवश्यकता है।मानव-जीवन का लक्ष्य ही है – कमजोरी, दुर्बलता को विजित करना तथा मानसिक तथा आत्मिक शक्तियों का विकास करना । अन्यथा मनुष्य का जीवन तथा एक मस्तिष्क विहीन पशु का जीवन दोनों समान ही बन जाते हैं । मनुष्य जीवन की विशेषता उसमें से निकल जाती है ।
दुर्बल व्यक्ति ही अधिक क्रोध करता है । क्योंकि क्रोध के अतिरिक्त वह और कुछ कर ही नहीं सकता ! शक्तिशाली व्यक्ति कुछ कर सकता है, अत…
क्रोधो मूलमनर्थानां क्रोध संसारबन्धनम्।
क्रोध समस्त विपत्तियों का मूल कारण है, क्रोध संसार बंधन का कारण है, क्रोध धर्म का नाश करने वाला है।
मानव में पांच तरह के विकार बताए जाते है -काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। और आत्मा के सात गुण हैं – पवित्रता, शांति, शक्ति, प्यार, खुशी, ज्ञान और गंभीरता। एक तरफ पांच विकार हैं तो दूसरी तरफ सात गुण हैं। परन्तु हम इन पांच विकारों से ज्यादा ग्रसित होकर आत्मा के गुणों से दूर हो जाते है।
मनु ने नीचे लिखे धर्म के 10 लक्षण बताए हैं, जो इनको धारण करता है वो धार्मिक है
धृति: क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रह:।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो दशकं धर्मलक्षणम्॥
धैर्य, क्षमा , संयम , अस्तेय ( चोरी न करना ), पवित्रता , इंद्रियों पर नियंत्रण , बुद्धि , ज्ञान, सत्य , क्रोध न करना।
क्षमा वीरस्य भूषणम्
क्षमा वीरों का भूषण है । कमजोर, असमर्थ अथवा कायर क्षमा कर सकने की शक्ति धारण ही नहीं करता, जो शक्तिधारी है, वीर है, वही क्षमावान हो सकता है
उपरोक्त के आलोक में ये स्पष्ट है की यदि किसी ऋषि /साधु/संत आदि को क्रोध आता है तो वह साधु ,संत बिलकुल ही नहीं है।और ये सभी घटनाएं और इनके पात्र भी मनघडंत ही है ,इनका कोई प्रमाण नहीं है।हमारे ऋषि क्रोध नहीं करते थे ।

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