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कविता

कुंडलियां … 13 जग में सब का हो भला …..

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धरम – धरम चिल्लाय कर, अधरम करते लोग।
अधरम के ही कारने , जग में बढ़ते रोग ।।
जग में बढ़ते रोग, शोक भी दिन – दूने बढ़ते।
पाप ,ताप, संताप मनुज पर अपनी रंगत धरते।।
पापी जन निज देव पर , नित बलि पशु की देते।
ऐसी निरीह आहों की आहट हम श्वासों में लेते।।

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देव पर चढ़ता मांस, तो समझो है पाखण्ड।
अपनी ही संतान का , पिता करे ना खण्ड।।
पिता करे ना खण्ड, सबकी रक्षा करता।
निष्पक्ष हो आबाल वृद्ध का पोषण करता।।
न्याय व्यवस्था यही सत्य और सनातन भी।
वैदिक जन कहते , शाश्वत और पुरातन भी।।

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जग में सब का हो भला सबका हो कल्याण।
दुष्टों का होवे शमन, सज्जन का हो त्राण।।
सज्जन का हो त्राण, सदा ही खुशी मनावे।
मनोकामना पूरी होवे, उन्नति – समृद्धि पावे।।
एक चाल हो, एक ताल हो, एक हाल हो सबका।
गंतव्य एक ,मंतव्य एक, एक लक्ष्य हो सबका।।

30 जून 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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