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कविता

कुंडलिया, .. 11 श्रेय मार्ग का पथिक

श्रेय मार्ग का पथिक …..

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चेत सके तो चेत जा, चिड़िया चुग रहीं खेत।
हिय में जो रम रहा, लगा ‘ओ३म’ से हेत।।
लगा ‘ओ३म’ से हेत, पड़े ना फिर पछताना।
नित्य नियम से मेरे मनवा, गीत उसी के गाना।।
मानव तन की नौका का सही करो उपयोग।
समय रहते कुछ कर जतन, मिटते सारे रोग।।

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घटती जाती श्वांसों की, पूंजी दिन और रैन।
सोना इनका ले बना, पाएगा फिर चैन।।
पाएगा फिर चैन, बणज तेरा खूब चलेगा।
बड़ा बनेगा धनी जगत में, दिन-रात फलेगा।।
श्रेय मार्ग का पथिक बनाकर ईश्वर ने तुझे भेजा।
प्रेय मार्ग को क्यों अपनाता बिगाड़ रहा है लेखा।।

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दो पाटों के बीच में, जीवन पिसता जाय।
उत्तर दक्षिण दो अयण , इनमें घटता जाय।।
इनमें घटता जाए , लक्ष्य रह गया अधूरा।
प्रेमी से मिलने का सपना कैसे होगा पूरा ?
घुमावदार जीवन की घाटी बनी है भूलभुलैया।
कितने ही पथ को भूल गए कितने भूले सैंया।।

दिनांक : 29 जून 2023

डॉ राकेश कुमार आर्य
संपादक उगता भारत

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